सम्पादकीय

10 मिनट में इंस्टेंट डिलीवरी के भयानक खतरे और 5 कानूनी सवाल

Gulabi Jagat
27 March 2022 8:42 AM GMT
10 मिनट में इंस्टेंट डिलीवरी के भयानक खतरे और 5 कानूनी सवाल
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10 मिनट में ऑनलाइन डिलीवरी देने के ‘जोमैटो इंस्टेंट’ के पायलट प्रोजेक्ट पर बड़ा विवाद शुरू हो गया है
10 मिनट में ऑनलाइन डिलीवरी देने के 'जोमैटो इंस्टेंट' के पायलट प्रोजेक्ट पर बड़ा विवाद शुरू हो गया है. मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस प्लान के बारे में कंपनी को चेतावनी देते हुए कहा है कि 10 मिनट की डिलीवरी के चक्कर में डिलिवरी करने वाले या सड़क में चलने वालों की जान को यदि कोई खतरा हुआ तो इसके लिए जोमैटो जिम्मेदार होगी. कांग्रेस के सांसद कीर्ति चिदंबरम, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और सुहेल सेठ जैसे कई लोगों ने इसे लोगों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बताया है.
कंपनी के संस्थापक दीपिंदर गोयल ने सफाई देते हुए कहा कि 10 मिनट की डिलीवरी उतनी ही सुरक्षित है जितनी की आधे घंटे की डिलीवरी. गोयल के अनुसार 30 मिनट का समय काफी लंबा होता है और कम समय में डिलीवरी के लिए जोमैटो अगर इनोवेशन नहीं करेगा तो अन्य कंपनियां बढ़त हासिल कर लेगी. जोमैटो को पिज़ा-हट से भी प्रेरणा मिल रही होगी, जहाँ अब 60 फीसदी आर्डर 10 मिनट के भीतर डिलीवर हो रहे हैं. व्यापार और मुनाफे के दांव पेंच रैट रेस के बीच देश के क़ानून, गिग वर्कर्स की सुरक्षा और लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े कानूनी सवालों की पड़ताल जरूरी है.
ऑनलाइन डिलीवरी के कारोबार में गिग वर्कर्स का बढ़ता संकट
भारत में क्विक ऑनलाइन कॉमर्स का बाजार 300 मिलियन डॉलर है, जो 2025 में बढ़कर 5 बिलियन डॉलर हो जाएगा. ओला, उबर, स्विगी और जोमैटो जैसी कंपनियां इस खेल की बड़ी खिलाड़ी हैं. कोरोना की महामारी में वर्क फ्रॉम होम और लॉक डाउन की वजह से ऑनलाइन डिलीवरी कंपनियों का कारोबार कई गुना बढ़ा, लेकिन उसके साथ गिग वर्कर्स की दुश्वारियां भी बढ़ गई हैं. भयानक बेरोजगारी के दौर में ऑनलाइन डिलीवरी एप्स, युवाओं को रोजगार का एक बड़ा प्लेटफार्म देते हैं. इसमें काम कर रहे ड्राईवर और डिलीवर पर्सन्स जैसे लोगों को गिग वर्कर्स कहते हैं.
देश में लगभग 1.5 करोड़ गिग वर्कर्स हैं. ऐसे लोगों के पास नौकरी का कोई निश्चित अनुबंध नहीं है. इसलिए उन्हें श्रम सुरक्षा, पीएफ, पेंशन और अन्य मेडिकल सुरक्षा जैसी कोई सहूलियत नहीं मिलती. गिग वर्कर्स के काम के घंटे भी निश्चित नहीं हैं. जबरदस्त दबाव में काम कर रहे इन करोड़ों लोगों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए ऐप कंपनियों के पास कोई कार्य योजना नहीं है, जिसकी वजह से सरकार और अदालतों से हस्तक्षेप की मांग होने लगी है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिसम्बर में सरकार से जवाब माँगा
सुप्रीम कोर्ट में दिसंबर 2021 इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट वर्कर्स की पीआईएल पर नोटिस जारी करके सरकार से जवाब मांगा था. याचिका के अनुसार गिग वर्कर्स को सन 2008 के वर्कर सोशल सिक्योरिटी एक्ट के तहत सभी प्रकार की सुरक्षा मिलनी चाहिए. संसद ने 2019 में जिस नए श्रम कानून के मसौदे को मंजूरी दी है उसके अनुसार संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में न्यूनतम मजदूरी और फ्लोर वेजेस का प्रावधान है. सन् 2020 के कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी के अनुसार गिग वर्कर्स को विशेष दर्जा दिया गया है, जिसके तहत उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मिलेगी, लेकिन उन प्रस्तावों को अभी कानूनी ताकत नहीं मिली है.
ट्रैफिक अराजकता बढ़ने से सड़कों में सभी की सुरक्षा को खतरा
पिछले साल जोमैटो कंपनी के शेयर का आईपीओ आया था जो 66 फीसदी प्रीमियम के साथ खुला, लेकिन पिछले महीने उसका दाम इशू प्राइस 76 रुपए से नीचे चला गया. निवेशकों को आकर्षित करने और मुनाफा बढाने के लिए कंपनियां इस तरह की नई स्कीम ला रही हैं, लेकिन उसमे जनता और समाज की सुरक्षा का मुद्दा नज़रंदाज़ है. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कई तरह के क़ानून और योजनाएं बना रहे हैं. लेकिन जोमैटो की होड़ में अन्य कंपनियां भी ऐसी स्कीम लेकर आएँगी, जिससे गिग वर्कर्स के साथ आम लोगों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ेगी.
जोमैटो के संस्थापक के अनुसार डिलीवरी साझेदारों को सड़क सुरक्षा के लिए शिक्षित और प्रशिक्षित किया जा रहा है. कंपनी के अनुसार देर से डिलीवरी होने पर डिलीवरी पर्सन्स के खिलाफ कोई जुर्माना नहीं लगेगा. लेकिन कंपनी के इस बढे व्यापार से साझेदारों की सुरक्षा कैसे बढ़ेगी और उनके हितों के संवर्धन कैसे होगा इस बारे में कंपनी ने कोई खुलासा नहीं किया है?
जंक फ़ूड के चलन बढ़ने के खतरे
जंक फूड से बच्चों में मोटापा और अवसाद बढ़ता है, इसके लिए यूरोप के कई देशों में कठोर कानून बन रहे हैं. भारत में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कुछ दिनों पहले एक प्रस्ताव रखा है जिसके अनुसार जंक फूड के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए. 10 मिनट की डिलीवरी के नए इंस्टेंट मॉडल में खाने का सामन पहले से पका कर रखा जाएगा और आर्डर आने पर दो मिनट में दोबारा गर्म करके पार्सल से भेजा जाएगा. नए प्लान में ब्रेड आमलेट, पोहा, कॉफी, चाय, बिरयानी, मोमोज, मैगी छोले भटूरे और बिरयानी जैसे खाद्य पदार्थ भी अस्वास्थ्यकर हो जायेंगे. इसकी वजह से ग्राहकों विशेष तौर पर बच्चों और युवाओं में बीमारियां बढ़ने के खतरे की जवाबदेही भी तो कंपनियों के ऊपर आनी चाहिए.
इंसान के मशीनीकरण की प्रोग्रामिंग से समाज में उत्तेजना और हिंसा बढ़ेगी. ऑनलाइन की होड़ में कामगारों को भी मशीन बनाया जा रहा है. लोग 10 मिनट में खाने का आर्डर नहीं दे पाते तो फिर इसकी डिलीवरी करने का प्लान बेतुका है. जब 10 मिनट में एंबुलेंस या पुलिस नहीं आती तो फिर फूड डिलीवरी का सिस्टम बनाने का आइडिया कितना लम्बा टिकेगा? कंपनियां कितने मिनट में डिलीवरी के पार्सल दे रही हैं, इसका डाटा डिस्क्लोज होता है. लेकिन डिलीवरी की होड़ में रोजाना कितने एक्सीडेंट हो रहे हैं या इस से कामगारों के ऊपर कितना मानसिक दबाव बढ़ रहा है, इसका कोई डेटा सामने नहीं आता?
डिलीवरी समय पर नहीं पहुचाने पर डिलीवरी बॉयज को ग्राहकों के गुस्से का सामना करना पड़ता है. पिछले साल मई में बंगलुरु में जोमैटो के डिलीवरी बॉय के ऊपर एक मॉडल ने हमला कर दिया था. मीडिया में हो-हल्ले के बाद महिला मॉडल के ऊपर एफआईआर दर्ज की गई और उसके बाद जोमैटो ने भी पीड़ित लड़के के कानूनी खर्चे की भरपाई का आश्वासन दिया. ऐसे हादसों के बावजूद कंपनियों में काम कर रहे वर्कर्स बारगेन करने की स्थिति में नहीं है. कंपनियों के मुनाफे के साथ ऐसे मशीनीकरण की प्रोग्रामिंग से अनेक कानूनों के उल्लंधन के साथ समाज में उत्तेजना और हिंसा बढ़ेगी. मुनाफे से परे जाकर इन पहलुओं पर भी विचार के लिए टेक कंपनियां 10 मिनट का समय निकाल सकें तो समाज और मानवता का बहुत कल्याण हो सकेगा.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

विराग गुप्ता एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 6 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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