सम्पादकीय

देश के अर्थव्यवस्था की भयावह स्थिति

Gulabi
8 Jun 2021 9:43 AM GMT
देश के अर्थव्यवस्था की भयावह स्थिति
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पिछले वर्ष यानी 2020-21 में अर्थव्यवस्था की दशा के आंकड़े सरकार ने जारी कर दिए

राहुल लाल। पिछले वर्ष यानी 2020-21 में अर्थव्यवस्था की दशा के आंकड़े सरकार ने जारी कर दिए। पूरे साल में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी शून्य से 7.3 फीसदी नीचे ही रहा। हालांकि चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में मामूली सुधार दिखा और जीडीपी 1.6 फीसदी रहा। ये आँकड़े आश्चर्यजनक नहीं हैं। पिछले वर्ष कोरोना को लेकर जिस तरह लॉकडाउन की स्थिति थी, उसमें यह संभावित भी था। प्रथम तिमाही में लॉकडाउन कठोर था और विकास दर माइनस 24 प्रतिशत तक पहुँच गया था। ऐसा होने से रोक पाना संभव नहीं था। हाँ, पूर्णबंदी अगर सुविचार और योजनाबद्ध तरीके से की गई होती, तो इस नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है।


महामारी को लेकर पूरा एक वित्त वर्ष हाहाकार में गुजरा। केवल कृषि क्षेत्र ही ऐसा था कि जिसने अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाया। प्रथम तिमाही में कृषि विकास दर 3.5 प्रतिशत था, जबकि विनिर्माण माइनस 36 प्रतिशत, निर्माण माइनस 49.5 प्रतिशत और सेवाएं माइनस 18.7 प्रतिशत था। इसका आशय है कि जब प्रथम तिमाही में सभी क्षेत्र भारी माइनस में प्रदर्शन कर रहे थे, तब भी कृषि क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ बना हुआ था। इसी तरह दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र ने 3 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि दर जारी रखी। विनिर्माण, निर्माण और सेवा क्षेत्र की स्थिति पहली तीन तिमाहियों काफी खराब थी।इसका असर रोजगार, उत्पादन, मांग और खपत पर साफ दिखा। ले देकर चौथी तिमाही में हालत संभलते हुए दिखे।

महामारी और अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात को देखते हुए पिछले साल हुए नुकसान की भरपाई आसान नहीं है। लेकिन उससे सबक तो लिए ही जा सकते हैं। अभी बार-बार सरकार यह कह रही है कि महामारी ने अर्थव्यवस्था की हालत बिगाड़ दी है, लेकिन महामारी से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार गिरावट की ओर अग्रसर थी। वर्ष 2016-17 में प्रथम तिमाही में विकास दर 9.2 प्रतिशत थी, लेकिन संपूर्ण 2016-17 में आर्थिक विकास दर गिरकर 8.26 प्रतिशत हो गई। इसका कारण नोटबंदी रहा। इसी तरह 2018 में सरकार ने बिना किसी योजना के जीएसटी प्रारंभ कर दिया। इस कारण 2017-18 में आर्थिक वृद्धि दर घटकर 7.04 प्रतिशत रह गई। इसके बाद 2018-19 में यह और भी घटकर 6.12 फीसदी पर आ गई।

लेकिन 2019-20 में यह और भी नीचे गिरते हुए 4.2 प्रतिशत पर आ गई, तभी सतर्क हो जाने की जरूरत थी। इस तरह महामारी के पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर लगातार अग्रसर हो रही थी। आज स्थिति और भी चिंताजनक इसलिए है कि देश ने गंभीर दूसरी लहर का सामना किया। इस दूसरी लहर ने भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की भी पोल खोलकर रख दी। हालांकि सरकार का दावा है कि दूसरी लहर का ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। पर ताजा आँकड़े बता रहे हैं कि इस साल मई में वाहनों की बिक्री गिरी है, पेट्रोल-डीजल की खपत भी कम हुई है, उद्योगों में बिजली की माँग में कमी आई है, उत्पादन फिर से 10 महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। इसके अतिरिक्त 97 फीसदी परिवारों की आय घट गई है।

भारत की सरकारें आज भले ही स्वास्थ्य के नाम पर और विभिन्न सामाजिक योजनाओं के नाम पर कितनी भी पीठ थपथपा लें, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी अर्थात सीएमआईई के अनुसार भारत की बेरोजगारी दर मई महीने तक में ही दोहरे अंकों में चली गई है। इससे पहले अप्रैल और मई 2020 में कड़े राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते बेरोजगारी की दर ने दोहरे अंकों को छुआ था। रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2021 से लगातार रोजगार की दर गिर रही है। अकेले जनवरी से अप्रैल 2021 के बीच ही 1 करोड़ रोजगार की गिरावट देखी गई है। जबकि सरकार उस अवधि में अर्थव्यवस्था में सुधार का दावा कर रही थी।

वहीं कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था और सरकार द्वारा की जा रही सामाजिक योजनाओं का मूल्यांकन करती है।जैसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा दी जाने वाली एक रिपोर्ट मानव विकास सूचकांक के अनुसार वर्ष 2020 में भारत 189 देशों में एक स्थान गिरके 131 पर आ गया है। विश्व बैंक के विकास अर्थशास्त्र समूह द्वारा प्रकाशित मानव पूँजी सूचकांक (एचसीएल) 2020 ने भारत को 174 देशों में 116 वाँ स्थान दिया है। सूचकांक इंगित करता है कि भारत में औपचारिक और अनौपचारिक बाजार का पतन हो रहा है, जिसके कारण रोजगार मिलने में बड़ी गिरावट आई है या जिनके पास रोजगार है, उनकी कुल आय 11 से 12 प्रतिशत कमी आ रही है।

सरकार ने कोरोना के प्रथम लहर में 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी,जिसमें 8.5 लाख करोड़ वह राशि थी,जो रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेप इत्यादि से बाजार में तरलता के रूप में आनी थी। इस प्रकार की राशि को दुनिया में कहीं भी आर्थिक पैकेज में नहीं जोड़ा गया। इसके अतिरिक्त भी अधिकांश रकम ऋण प्रदान करने हेतु ही थी। इसे शुद्ध रूप से 2 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज कहा जा सकता है। इस समय कोरोना के दूसरे लहर के बाद देश को एक बड़े शुद्ध और जमीनी आर्थिक पैकेज की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त सरकार को त्वरित तौर पर डीजल और पेट्रोल के मूल्यों में कमी करनी चाहिए। इससे न केवल इस विकट आर्थिक हालत में महंगाई पर नियंत्रण स्थापित होगा,बल्कि 200 से ज्यादा उद्योगों में यह कच्चे माल के रूप में भी प्रयुक्त होता है। केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कई बड़े राजनीतिक निर्णय लिएँ, लेकिन अब बड़े आर्थिक निर्णय लेने का समय आ चुका है।


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