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
पं. विजयशंकर मेहता। हमारे सार्वजनिक जीवन में कुछ बातें ऐसी आती और जाती रहती हैं जो घोर चर्चा का विषय बन जाती हैं। इन दिनों ऐसी ही चर्चा हो रही है बीमारी की तीसरी लहर को लेकर। लगभग हर चर्चा में कहीं न कहीं इसकी बात निकल ही आती है। जब अज्ञात पर अनुमान लगाया जाता है तो मनुष्य या तो दार्शनिक हो जाता है या ज्योतिष। और, आजकल डिजिटल माध्यम से डॉक्टर तो सभी बन गए हैं। अब आगे क्या होगा, यह तो कोई नहीं जानता, पर पहले जो हो चुका है, वह सबको पता है। ऐसी स्थिति में हमें गीता का सहारा लेना चाहिए। 11वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप दिखाया था। इसे विश्वरूप भी कहते हैं। कृष्ण ने उस रूप के दर्शन इसीलिए करवाए थे कि जीवन का एक पक्ष यह भी जान लें कि कुछ समस्याएं विराट रूप लेकर भी आ सकती हैं। वह रूप ऐसा था कि अर्जुन ने उसकी स्तुति तो की, पर डर भी गया, क्योंकि उसके भीतर सबकुछ दिख रहा था। संक्षेप में कहें तो जीवन और मृत्यु के साक्षात दर्शन कर लिए थे अर्जुन ने। भगवान समझ चुके थे यह डर गया है। तो भयभीत अर्जुन को धीरज दिया- 'भीतम आश्वासयामास'। फिर अर्जुन ने कहा था- 'दृष्टवा इदानीम सचेत:'। यह देखकर अब मैं स्थिर चित्त हो गया। इस दृश्य से हम भी सीखें कि बीमारी का विकराल रूप आए या सामान्य से गुजर जाए, हर स्थिति में स्थिर चित्त रखना है।
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