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सम्पादकीय
वार्ता से क्या हासिल हुआ? इस प्रश्न पर अधिकारियों ने साफ कहा कि वे किसी सफलता की उम्मीद नहीं रख रहे थे। वास्तव में भी ऐसी कोई सफलता मिली भी नहीं है। तो कुल मिला कर शिखर वार्ता का मकसद यह रहा कि अमेरिका और चीन में चल रही होड़ को जिम्मेदारी के साथ संभाला जाए। (joe biden xi jinping)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बहु-प्रतीक्षित वीडियो वार्ता का निष्कर्ष यह है कि दोनों देशों में मतभेद इतने गहरा चुके हैं कि उनका तुरंत कोई समाधान नहीं है। मतभेद की असल वजह यह है कि दुनिया पर वर्चस्व कायम होने के बाद पहली बार अमेरिका के सामने कोई ऐसी ताकत उभरी है, जो उसे चुनौती दे रही है। सोवियत संघ ने सैनिक मामलों में जरूर उसे चुनौती दी थी, लेकिन वह कभी ऐसी आर्थिक ताकत नहीं बना, जिससे अमेरिका चिंतित होता। लेकिन चीन की असल ताकत आर्थिक ही है। जाहिर है, अमेरिका नहीं चाहता कि चीन इस हद तक उभरे कि वह उसके वर्चस्व को तोड़ दे। जबकि चीन ऐसी कोई शर्त मानने को तैयार नहीं है, जिससे उसके उभार के रास्ते में अड़चन आए। तो बाइडेन-शी वार्ता से अधिक कुछ हासिल नहीं होना था। इसलिए इस बात पर ही अधिकारियों ने संतोष महसूस किया कि बातचीत सम्मान की भावना के साथ हुई। इस दौरान खुलेपन का माहौल रहा और दोनों राष्ट्रपतियों ने बेलाग अपनी बात कही।
लेकिन वार्ता से क्या हासिल हुआ, इस प्रश्न अधिकारियों ने सावधानी भरी बातें ही कहीं। बल्कि मीडिया ब्रीफिंग में तो उन्होंने यह भी कह दिया कि वे किसी सफलता की उम्मीद नहीं रख रहे थे। वास्तव में भी ऐसी कोई सफलता नहीं है, जिसकी सूचना दी जाए। तो कुल मिला कर शिखर वार्ता का मकसद यह था कि अमेरिका और चीन में चल रही होड़ को जिम्मेदारी के साथ संभाला जाए। यानी यह सुनिश्चित किया जाए जब अमेरिका और चीन होड़ बढ़ाने वाले कदम उठाएं, तब उनके बीच संवाद बना रहे। बाकी ताइवान जैसे मुद्दे पर तो दोनों राष्ट्रपतियों की भाषा तीखी हो गई। शी ने बाइडेन के सामने यह चेतावनी दे दी कि अगर ताइवान ने आजादी का एलान करने जैसा कोई कदम उठाया, तो चीन 'निर्णायक कदम' उठाएगा। उन्होंने अमेरिकी को चेताया कि ताइवान की आजादी का समर्थन 'आग से खेलने जैसा' होगा। कहा- 'जो आग से खेलते हैं, वे जल जाते हैँ।' उधर बाइडेन ने यह तो दोहराया कि अमेरिका 'वन चाइना पॉलिसी' के प्रति वचनबद्ध हैं, लेकिन यह भी कहा कि ताइवान की मौजूदा स्थिति को बदलने की एकतरफा ढंग से कोशिश नहीं की जानी चाहिए। ना ही ताइवान में शांति और स्थिरता को भंग करने की कोशिश होनी चाहिए। तो कुल मिलाकर बात जहां थी, वहीं रही।
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