सम्पादकीय

अहमद पटेल का निधन ठीक वैसे ही एक बड़ी राजनीतिक क्षति है जैसे अरुण जेटली का अवसान था

Gulabi
9 Dec 2020 5:32 AM GMT
अहमद पटेल का निधन ठीक वैसे ही एक बड़ी राजनीतिक क्षति है जैसे अरुण जेटली का अवसान था
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कोरोना का शिकार बने अहमद पटेल दिन-रात कांग्रेस के काम में लगे रहते थे

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीते एक साल में दो ऐसे नेता विदा हो गए, जो थे तो अलग-अलग राजनीतिक दलों में, लेकिन दोनों की फितरत एक जैसी थी। इसमें एक भाजपा के अरुण जेटली थे और दूसरे कांग्रेस के अहमद पटेल। ये दोनों नेता अपने-अपने दलों में न केवल अहम पदों पर थे, बल्कि बहुत कद्दावर थे। दोनों की अपनी-अपनी पार्टियों में बहुत चलती थी। दोनों अच्छे मित्र भी थे और दोनों के दूसरे दलों के नेताओं से बहुत अच्छे रिश्ते भी थे। दोनों में एक साझा बात यह भी थी कि वे समस्याओं का समाधान निकालने में उस्ताद थे। लोगों की मदद करना भी दोनों की आदत में शुमार था। यदि कोई व्यक्ति उनके पास अपनी परेशानी लेकर जाता था तो वे उसकी सहायता करते या फिर उसकी परेशानी कम से कम करने का प्रयास जरूर करते। अरुण जेटली और अहमद पटेल, दोनों को अपनी-अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भरपूर विश्वास प्राप्त था। दोनों के रिश्ते भी हर तरह के लोगों से थे।


कोरोना का शिकार बने अहमद पटेल दिन-रात कांग्रेस के काम में लगे रहते थे

हाल में कोरोना का शिकार बने अहमद पटेल दिन-रात कांग्रेस के काम में लगे रहते थे। वह कई बार सुबह चार बजे तक लोगों से मेलजोल में लगे रहते थे। वह अक्सर अपनी पार्टी के नेताओं को रात दो बजे फोन कर बात कर लेते थे। संसद में कोई गुत्थी उलझ जाए तो उन्हें ही हल निकालने के लिए बुलाया जाता था। अहमद पटेल ने कभी कोई सरकारी पद नहीं लिया। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अहमद पटेल को अपना संसदीय सचिव बनाया था। इसके अलावा उन्होंने पार्टी संगठन में ही पद लिए, चाहे वह कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव का हो या महासचिव का या फिर कोषाध्यक्ष का। अहमद पटेल ने मनमोहन सरकार के दस साल के कार्यकाल में दर्जनों लोगों को मंत्री बनवाया, लेकिन खुद कभी मंत्री नहीं बने।


अहमद पटेल के घर मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, राज्यपालों, सांसदों, अधिकारियों का जमावड़ा लगा रहता था

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के प्रत्याशी तय करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। उनके घर मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, राज्यपालों, सांसदों, अधिकारियों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन उनके चेहरे पर कभी अहंकार नहीं दिखता था। वह हमेशा बहुत सादगी से रहे और बिना किसी तामझाम एक साधारण सी कार में चलते थे। 2004 से 2014 तक बेहद महत्वपूर्ण रहते हुए भी उन्होंने कभी अपनी सुरक्षा में एक सिपाही तक नहीं लिया, जबकि दूसरों को वह अक्सर जेड प्लस सुरक्षा दिलाने के लिए कोशिश करते। वह खुद हमेशा टाइप-7 घर में रहते थे, जबकि उनके एक फोन पर लोगों को टाइप-8 की बड़ी-बड़ी कोठियां मिल जाती थीं। वह इतने सहज थे कि कोई भी उनके पास 'अहमद भाई' कहकर पहुंच जाता था।

गुजराती होने के नाते नरेंद्र मोदी उन्हें हमेशा 'बाबू भाई' कहते थे

कहते हैं गुजराती होने के नाते नरेंद्र मोदी उन्हें हमेशा 'बाबू भाई' कहते थे। कांग्रेस पार्टी में यदि कोई दुखी होता तो वह अपना दुखड़ा रोने अहमद पटेल के पास ही जाता था और यदि कोई खुश होता तो उन्हें ही धन्यवाद देने जाता था। वह हर बात का श्रेय सोनिया गांधी को देते थे और हर एक की नाराजगी अपने सिर पर ले लेते थे। उनके इसी सरल स्वभाव के कारण कई बार दूसरे दलों के लोग भी कहते थे कि यदि कभी गठबंधन की सरकार हो और सर्वसम्मति से किसी को राष्ट्रपति बनाना हो तो अहमद पटेल से बढ़िया कोई व्यक्ति नहीं होगा। प्रणब मुखर्जी से उनके बेहतरीन रिश्ते थे और राष्ट्रपति बनने के बाद भी वह उनसे सलाह लेते रहते थे।

अहमद पटेल की तरह अरुण जेटली भी नीचे से उठकर ऊपर तक पहुंचे

अहमद पटेल की तरह अरुण जेटली भी नीचे से उठकर ऊपर तक पहुंचे। छात्र राजनीति से शुरुआत करके उन्होंने अपने आप को देश के सबसे बड़े वकीलों की पंक्ति में खड़ा किया। उनके पिता महाराज कृष्ण जेटली भी नामी गिरामी वकील थे। जेटली खुद सर्वोच्च न्यायालय के श्रेष्ठतम वकीलों में रहे। उन्हें 1977 में जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रखा गया और उसके बाद पार्टी की अंदरूनी राजनीति के चलते 20 साल तक कुछ नहीं मिला, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और चुपचाप पार्टी का काम करते रहे। वर्ष 2000 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और वह अटल जी की सरकार में मंत्री भी बन गए। पहले वह राज्यमंत्री बने, लेकिन काबिलियत देखकर अटल जी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया। मैं और जेटली जी एक साथ 2000 में राज्यसभा में आए थे। 18 साल तक मैंने सदन में उनकी कार्यशैली और भाषणशैली देखी। दस साल तक वह नेता विपक्ष भी रहे। मैं संसदीय कार्यमंत्री के रूप में उनसे तालमेल रखता था। वह हर समस्या का मिनटों में हल निकाल देते थे। हल निकालते वक्त वह सिर्फ विपक्ष की बात पर ही नहीं अड़ते थे, बल्कि सरकार की मजबूरियां समझकर उसकी बात भी मान लेते थे। उनके सहयोग से राज्यसभा में मैंने तमाम विधेयक पारित करवाए और अन्ना हजारे का आंदोलन समाप्त कराया।

मोदी को 2001 में सीएम बनवाने में और 2013 में पीएम बनवाने में जेटली ने निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

नरेंद्र मोदी को 2001 में मुख्यमंत्री बनवाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 2013 में उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए सबसे पहले उन्होंने ही पहल की। मोदी जी ने उन्हें वित्त और रक्षा सरीखे दो बड़े मंत्रालय दिए। उन्होंने आखिरी वक्त तक उन्हें भरपूर महत्व दिया। वह मोदी जी के लिए हमेशा उतने ही महत्वपूर्ण रहे, जितना सोनिया जी और मनमोहन सिंह के लिए अहमद पटेल संप्रग शासन के दौरान रहे।

संसद में जेटली जी के दफ्तर में हर दल के नेताओं का जमावड़ा रहता था

संसद में जेटली जी के दफ्तर में हर दल के नेताओं का जमावड़ा रहता था। वह सबसे दोस्ती रखते थे और सबकी समस्याओं का हल निकालते थे। हर सत्र में अपने दफ्तर में मित्र सांसदों को बुलाकर भोज देते थे, जिसमें विपक्षी सांसद अधिक रहते थे। उन्होंने भी अहमद पटेल की तरह दर्जनों लोगों को मंत्री, मुख्यमंत्री, संसद सदस्य और राज्यपाल बनवाया। अरुण जेटली और अहमद पटेल का स्वभाव, नजरिया, काम करने की शैली और रिश्ते निभाने की कला कमोबेश एक जैसी थी। आज ये दोनों भारत के राजनीतिक पटल पर नहीं हैं। यह देश का बहुत बड़ा नुकसान है। उन्हें जानने वाले हमेशा उनकी कमी महसूस करेंगे।


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