सम्पादकीय

अंतरिक्ष युद्ध का गहराता खतरा

Subhi
12 April 2022 4:54 AM GMT
अंतरिक्ष युद्ध का गहराता खतरा
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अंतरिक्ष में जिसका दबदबा रहेगा, वही दुनिया का सबसे बड़ा बादशाह बनेगा। पिछले वर्ष रूस ने अपने एक उपग्रह से मिसाइल हमला कर दूसरे उपग्रह को मार गिराया था।

निरंकार सिंह: अंतरिक्ष में जिसका दबदबा रहेगा, वही दुनिया का सबसे बड़ा बादशाह बनेगा। पिछले वर्ष रूस ने अपने एक उपग्रह से मिसाइल हमला कर दूसरे उपग्रह को मार गिराया था। तब से रूस का यह कदम अंतरिक्ष को युद्ध के मोर्चे के रूप में बदलने की दिशा में एक बड़ी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं चीन भी बहुत तेजी से अंतरिक्ष जंग के लिए अपने को तैयार कर रहा है।

रूस और यूक्रेन के बीच जंग अब अंतरिक्ष तक पहुंच गई है। रूस की अंतरिक्ष एजंसी के प्रमुख ने अमेरिका को धमकी दी है कि मास्को पर लगाए गए प्रतिबंध अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) पर दोनों देशों के बीच सहयोग को खत्म कर सकते हैं। रूस ने यह भी कहा कि आइएसएस को गिराने के विकल्प भी हैं, जिसका खमियाजा भारत और चीन को भी भुगतना पड़ सकता है। अब खबर है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी- नासा भी इस अंतरिक्ष स्टेशन में रूस के सहयोग को खत्म करने की तैयारी में लग गई है। अमेरिका अब जापान की मदद से इसे चलाने की बात कर रहा है।

रूस और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष में करीब तीन दशकों का घनिष्ठ सहयोग रहा है। लेकिन यूक्रेन पर हमले से नाराज अमेरिका सहित पूरे यूरोप ने रूस पर ढेरों प्रतिबंध थोप दिए हैं। इन प्रतिबंधों की जद में रूस का अंतरिक्ष अभियान भी आ गया है। इससे यह आशंका जताई जा रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का असर अंतरिक्ष में भी देखने को मिल सकता है।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूसी अंतरिक्ष एजंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन ने अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ कड़ी नाराजगी भी जताई है। रोगोजिन ने तो यहां तक धमकी दे डाली कि इन प्रतिबंधों के कारण अंतरिक्ष स्टेशन भारत या चीन के ऊपर कभी भी गिर सकता है। क्या अमेरिका यही चाहता है? रूस ने पश्चिमी देशों के लिए उपग्रहों को प्रक्षेपित करने से इनकार करने की धमकी भी दे दी। रूस के इंजन ही अंतरिक्ष स्टेशन की गतिविधियों पर नियंत्रण रखते हैं। यूक्रेन पर हमले को लेकर रूसी सेना की हर गतिविधि पर अमेरिका अंतरिक्ष से नजर रख रहा है।

कुछ दिन पहले यूक्रेन में चौंसठ किलोमीटर लंबे रूसी सैन्य काफिले की एक तस्वीर वायरल हुई थी। इसमें रूसी सेना का काफिला यूक्रेन की तरफ बढ़ता हुआ नजर आया था। रूस को लगता है कि अमेरिका से मिल रही इन उपग्रह तस्वीरों की मदद से यूक्रेनी सेना आसानी से उसकी सेना को निशाना बना रही है। इससे यूक्रेनी सेना को आसानी से पता चल रहा है कि किस इलाके में रूसी सेना की कितनी तादाद मौजूद है।

उपग्रह से तस्वीरें लेने की सुविधा दुनिया के बहुत कम देशों की सेनाओं के पास है। हालांकि, अब कई कंपनियां भी इस धंधे में आ गई हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इनकी साझा ताकत रूस से काफी ज्यादा हो सकती है। ऐसी जानकारी देने का एक लाभ यह भी है कि पश्चिमी देश यूक्रेन में सीधे अपने सैनिक न भेज कर इन तस्वीरों के जरिए सटीक जानकारी दे रहे हैं और इन तस्वीरों के आधार पर ही रूसी सेना के खिलाफ यूक्रेन तेजी से जवाबी कार्रवाई कर रहा है।

हाल में स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क ने भी यूक्रेन को मदद करने का एलान किया था। स्पेसएक्स अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी निजी अंतरिक्ष कंपनी है। स्पेसएक्स यूक्रेन को न सिर्फ उपग्रहों से मिली तस्वीरें दे सकती है, बल्कि संचार में भी मदद कर सकता है। ऐसी भी रिपोर्ट आई हैं कि एलन मस्क ने यूक्रेन को अपनी उच्च गति वाली इंटरनेट सेवा स्टारलिंक सिस्टम की सुविधा देने की पेशकश भी की थी। ऐसे में अगर रूस यूक्रेन में इंटरनेट सेवा और संचार बंद भी कर देता है, तब भी स्टारलिंक से उसे ये सेवाएं मिलती रहेंगी।

रूसी अंतरिक्ष एजंसी के प्रमुख रोगोजिन ने कहा था कि अगर हमारे साथ सहयोग को बाधित किया गया, तो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को बेकाबू होकर कक्षा से बाहर जाने और अमेरिका या यूरोप में गिरने से कौन बचा पाएगा? उन्होंने यह आशंका भी जताई कि पांच सौ टन का यह ढांचा भारत या चीन पर भी गिर सकता है। रोगोजिन का कहना था- 'आइएसएस रूस के ऊपर से उड़ान नहीं भरता है, इसलिए सभी जोखिम आपके हैं।

क्या आप उनके लिए तैयार हैं?' अंतरिक्ष स्टेशन आइएसएस को अंतरिक्ष में घूमता हुआ एक घर कह सकते हैं, जिसमें अंतरिक्ष यात्री रहते हैं और यह स्टेशन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए घर और प्रयोगशाला की तरह है। इसमें अंतरिक्ष यात्री हफ्तों या महीनों तक रहते हैं और विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते हैं। रूस, अमेरिका, जापान, कनाडा और यूरोप की मदद से यह मिशन 1998 में शुरू किया गया था। अब तक करीब बीस से ज्यादा देशों के दो सौ से ज्यादा अंतरिक्ष यात्री इस स्टेशन की यात्रा कर चुके हैं। रूस और अमेरिका आइएसएस कार्यक्रम में प्रमुख भागीदार हैं। हालांकि कनाडा, जापान, फ्रांस, इटली और स्पेन जैसे कई यूरोपीय देश भी इसमें शामिल हैं।

गौरतलब है कि आइएसएस पर 2 नवंबर, 2000 को पहली बार कोई मनुष्य पहुंचा था। इसके बाद से आज तक यह कभी खाली नहीं रहा। इस अभियान पर अब तक सौ अरब डालर से ज्यादा की रकम खर्च हो चुकी है। यह लगभग पचहत्तर खरब रुपए से बनाई गई दुनिया की सबसे महंगी चीजों में से एक है। पृथ्वी से सौ किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष शुरू होता है। अंतरिक्ष स्टेशन लगभग चार सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर है। ये एक जगह स्थिर नहीं है। यह करीब अट्ठाईस हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इतनी गति से यह नब्बे मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है।

रूस अब अपने बलबूते अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और प्रबंधन करने की योजना बना रहा है, जिसे वह 2030 तक कक्षा में स्थापित करना चाहता है। इंटरफैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूस के अंतरिक्ष माड्यूल को एनर्जिया कारपोरेशन तैयार कर रहा है। इसकी लागत फिलहाल पांच अरब डालर आंकी गई है। खास बात यह भी कि रूस 2025 तक खुद आइएसएस से अलग होने की घोषणा कर चुका है। रूस के बयान के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी रूसी मदद के बिना अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के परिचालन के तरीके तलाशने शुरू कर दिए हैं।

हालांकि उसके लिए यह आसान नहीं होगा। आइएसएस मिशन में अमेरिका का काम इसके लिए ऊर्जा और यहां आने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खाने-पीने से लेकर अन्य जरूरी चीजों का इंतजाम करना है। वहीं रूस का काम स्टेशन के परिचालन और तकनीकी मदद मुहैया कराना है। ऐसे में नासा को नए सिरे से इसके परिचालन का तरीका तलाशना होगा। आइएसएस की कक्षा और अंतरिक्ष में स्थान निर्धारण का काम रूसी इंजन करते हैं और इन्हें रूस ही नियंत्रित करता है। अगर रूस इससे अलग होता है तो यह स्टेशन अनियंत्रित होकर कक्षा से बाहर चला जाएगा जिससे यह पृथ्वी पर गिर सकता है।

दरअसल जंग अब जल, जमीन और आसमान से ऊपर अंतरिक्ष तक जा पहुंची है। इस जंग में रूस और अमेरिका बड़े खिलाड़ी बन कर उभरे हैं। वैसे तो इस जंग की तैयारी अमेरिका, रूस और चीन बहुत पहले से कर रहे हैं। इन्हें लग रहा है कि अंतरिक्ष में जिसका दबदबा रहेगा, वही दुनिया का सबसे बड़ा बादशाह बनेगा। पिछले वर्ष रूस ने अपने एक उपग्रह से मिसाइल हमला कर दूसरे उपग्रह को मार गिराया था। तब से रूस का यह कदम अंतरिक्ष को युद्ध के मोर्चे के रूप में बदलने की दिशा में एक बड़ी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं चीन भी बहुत तेजी से अंतरिक्ष जंग के लिए अपने को तैयार कर रहा है। रूस और चीन की साझा चुनौती से अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए संकट पैदा हो गया है।


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