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- उत्तराखंड में चुनाव से...
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ठीक उस समय त्यागपत्र दे दिया, जब उनकी सरकार चार साल का अपना कार्यकाल पूरा करने ही वाली थी। कहा जा रहा है कि केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव के एक वर्ष पहले यह पाया कि उनके मुख्यमंत्री रहते चुनाव जीतना मुश्किल होगा। पता नहीं सच क्या है, लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर चार साल तक उनके कामकाज का आकलन क्यों नहीं किया जा सका? क्या यह मान लिया जाए कि नया मुख्यमंत्री एक वर्ष में उन सब कारणों का निवारण करने में सक्षम हो जाएगा, जिनके चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया गया? इन सवालों का चाहे जो जवाब हो, भाजपा नेतृत्व के लिए यह स्पष्ट करना कठिन होगा कि यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहे थे तो फिर समय रहते हस्तक्षेप क्यों नहीं किया जा सका? आखिर भाजपा नेतृत्व उचित आदेश-निर्देश देकर या फिर राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल करके रावत को यह नसीहत क्यों नहीं दे सका कि वह अपने कामकाज की शैली ठीक करें। भाजपा एक राष्ट्रीय दल है और उसका केंद्रीय नेतृत्व राज्यों के अपने नेतृत्व के तौर-तरीकों से न तो अनभिज्ञ हो सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि वह दखल देने की स्थिति में नहीं रहा होगा। कुल मिलाकर उत्तराखंड में चुनाव से एक वर्ष पहले नेतृत्व परिवर्तन का फैसला भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला साबित हो तो हैरानी नहीं।