सम्पादकीय

उत्तराखंड में चुनाव से एक वर्ष पहले नेतृत्व परिवर्तन का फैसला भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है

Neha Dani
10 March 2021 2:01 AM GMT
उत्तराखंड में चुनाव से एक वर्ष पहले नेतृत्व परिवर्तन का फैसला भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है
x
जहां एक परिवार ही पार्टी पर हावी है और उसके फैसलों के आगे किसी की नहीं चलती।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ठीक उस समय त्यागपत्र दे दिया, जब उनकी सरकार चार साल का अपना कार्यकाल पूरा करने ही वाली थी। कहा जा रहा है कि केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव के एक वर्ष पहले यह पाया कि उनके मुख्यमंत्री रहते चुनाव जीतना मुश्किल होगा। पता नहीं सच क्या है, लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर चार साल तक उनके कामकाज का आकलन क्यों नहीं किया जा सका? क्या यह मान लिया जाए कि नया मुख्यमंत्री एक वर्ष में उन सब कारणों का निवारण करने में सक्षम हो जाएगा, जिनके चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया गया? इन सवालों का चाहे जो जवाब हो, भाजपा नेतृत्व के लिए यह स्पष्ट करना कठिन होगा कि यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहे थे तो फिर समय रहते हस्तक्षेप क्यों नहीं किया जा सका? आखिर भाजपा नेतृत्व उचित आदेश-निर्देश देकर या फिर राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल करके रावत को यह नसीहत क्यों नहीं दे सका कि वह अपने कामकाज की शैली ठीक करें। भाजपा एक राष्ट्रीय दल है और उसका केंद्रीय नेतृत्व राज्यों के अपने नेतृत्व के तौर-तरीकों से न तो अनभिज्ञ हो सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि वह दखल देने की स्थिति में नहीं रहा होगा। कुल मिलाकर उत्तराखंड में चुनाव से एक वर्ष पहले नेतृत्व परिवर्तन का फैसला भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला साबित हो तो हैरानी नहीं।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के त्यागपत्र से यह धारणा और अधिक पुष्ट ही हुई कि इस पर्वतीय राज्य में किसी मुख्यमंत्री के लिए अपना कार्यकाल पूरा करना मुश्किल होता है। नि:संदेह यह तथ्य चकित करता है कि अलग राज्य के गठन के बाद से नारायण दत्त तिवारी के अलावा अन्य कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है-वह चाहे भाजपा का रहा हो या कांग्रेस का। अपेक्षाकृत एक छोटे राज्य में ऐसा होना आश्चर्यजनक है। ध्यान रहे कि जब ऐसा होता है तो इसका नुकसान कहीं न कहीं राज्य की जनता को भी उठाना पड़ता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के त्यागपत्र के बाद उत्तराखंड की भाजपा सरकार की कमान चाहे जिसके हाथ में आए, जिन परिस्थितियों में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ रहा है, उनसे भाजपा को सबक सीखने की जरूरत है। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि जैसे हालात उत्तराखंड में बने, वैसे अन्य कहीं न बनने पाएं और यदि बनते हुए दिखें तो तत्काल हस्तक्षेप कर उन्हें ठीक किया जाए। भाजपा से यह अपेक्षा इसलिए की जाती है, क्योंकि वह कांग्रेस सरीखा राजनीतिक दल नहीं है, जहां एक परिवार ही पार्टी पर हावी है और उसके फैसलों के आगे किसी की नहीं चलती।


Next Story