सम्पादकीय

सीयूईटी का निर्णय देश में उच्च शिक्षा प्रणाली को सुधारने की दिशा में सराहनीय कदम

Gulabi Jagat
16 April 2022 5:11 PM GMT
सीयूईटी का निर्णय देश में उच्च शिक्षा प्रणाली को सुधारने की दिशा में सराहनीय कदम
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उच्च शिक्षा प्रणाली को सुधारने की दिशा में सराहनीय कदम
कैलाश बिश्नोई। इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में दाखिले के लिए आयोजित होने वाली जेईई और नीट की तर्ज पर केंद्र सरकार ने अब देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नामांकन के लिए कामन यूनिवर्सिटी एंट्रेस टेस्ट (सीयूईटी) लागू करने का फैसला किया है। इस प्रणाली के लागू होने से केंद्रीय विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर नामांकन की विगत कई दशकों से चली आ रही कट आफ वाली व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्वविद्यालय और कालेजों को पढ़ाई और शोध कार्यों पर फोकस करना चाहिए, न कि प्रवेश परीक्षा पर। इसलिए प्रवेश परीक्षा जैसे काम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से करवाने का फैसला स्वागत योग्य है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता बढऩे के साथ ही समय और धन भी बचेगा।
नामांकन की राह आसान : पिछले साल तक देशभर में अलग-अलग विश्वविद्यालय 12वीं कक्षा के अंक या फिर अपनी नामांकन प्रवेश परीक्षा के आधार पर छात्रों का नामांकन करते थे। सीयूईटी के बाद छात्र सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय में दाखिले के योग्य होगा, यदि वह संबंधित विश्वविद्यालय की निर्धारित योग्यता पूरी करता हो। यह प्रक्रिया नई शिक्षा नीति के अनुरूप है।
इसमें अच्छी बात यह है कि यह परीक्षा 13 भाषाओं में आयोजित की जाएगी और परीक्षार्थियों के पास इनमें से किसी भी भाषा में आनलाइन टेस्ट देने का विकल्प रहेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वर्ष तो संयुक्त प्रवेश परीक्षा वर्ष में एक बार ही आयोजित होगी। लेकिन अगले वर्ष से जेईई मेन की तर्ज पर वर्ष में दो या उससे अधिक बार या चरणों में परीक्षा आयोजित की जाएगी। यह परीक्षा कंप्यूटर आधारित होगी जिसमें छात्रों को देशभर के विभिन्न जिलों के केंद्रों पर जाकर कंप्यूटर की मदद से बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर देना होगा। परीक्षा का पाठ्यक्रम, एनसीईआरटी के 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से मिलता-जुलता ही होगा। इस बहुविकल्पीय, कंप्यूटर आधारित परीक्षा में भाषा प्रवीणता, संख्यात्मक क्षमता आदि को परखने के लिए 'सामान्य योग्यता परीक्षाÓ और विषय ज्ञान का आकलन करने के लिए 'विषय विशिष्ट परीक्षा' होगी।
समतापूर्ण और समावेशी प्रवेश : सामान्य प्रवेश परीक्षा प्रणाली छात्रों को नामांकन के लिए उच्च कट-आफ के तनाव से बचाएगी। गौरतलब है कि पिछले वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के आठ कालेजों में 11 पाठ्यक्रमों के लिए 100 प्रतिशत अंकों पर कट-आफ निर्धारित की गई थी। स्नातक पाठ्यक्रम में नामांकन के लिए 100 प्रतिशत का कट-आफ होना हास्यास्पद लगता है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2021 में सीबीएसई कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा में 70 हजार से अधिक छात्रों ने 95 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए थे। इस कारण दिल्ली विश्वविद्यालय के कई शीर्ष कालेजों की कट-आफ 100 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस तरह से 90-100 प्रतिशत अंक लाने वाले बढ़े हैं, उससे नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा ही विकल्प बचा था।
देश में 12वीं की परीक्षाएं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और आइसीटीई समेत 50 से अधिक राज्य माध्यमिक बोर्डों द्वारा संचालित की जाती हैं, जिनके मूल्यांकन पैमानों में एकरूपता नहीं है। अब जो बच्चा उपयुक्त होगा, वही दाखिला ले पाएगा। यहां यह बताना जरूरी है कि देश में प्रत्येक बोर्ड के मार्किंग के पैरामीटर अलग-अलग हैं। खासकर केंद्रीय बोर्ड मसलन सीबीएसई अंक देने के मामले में अतिशय उदारता दिखाता है। इसी कारण राज्यों के परीक्षा बोर्ड से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों के अंक केंद्रीय बोर्डों की तुलना में कम होते हैं।
इससे कुछ बोर्ड के छात्रों को 12वीं में ज्यादा नंबर मिलने की वजह से अंतर स्नातक पाठ्यक्रम में नामांकन में अनुचित फायदा मिलता है। ऐसे में यदि सभी बोर्ड के छात्रों के विश्वविद्यालयों में नामांकन के लिए संयुक्त परीक्षा होगी तो मूल्यांकन का एक ही पैरामीटर होगा। कट-आफ आधारित प्रवेश प्रणाली छात्रों को उन बोर्डों के छात्रों के लिए नामांकन में बाधा बनती है जहां अंकन सख्त होता है। इस पहल से न केवल सभी बोर्डों के छात्रों के मूल्यांकन में एकरूपता आएगी, बल्कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश-प्रक्रिया भी एकसमान हो जाएगी। जब तक विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रवेश कट-आफ आधारित थी, तब तक समतापूर्ण और समावेशी प्रवेश संभव नहीं था। नई पहल से छात्रों तथा विश्वविद्यालयों के समय, धन और ऊर्जा का सदुपयोग हो सकेगा।
अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कालेजों की कट-आफ सूची बहुत उच्च होती है। ऐसे में कई अच्छे छात्र अंक बेहतर होने के बावजूद अच्छे कालेज में नामांकन से चूक जाते हैं। विश्वविद्यालयों में नामांकन के लिए छात्रों पर अधिक प्रतिशत बनाने का बेहद तनाव रहता था, लेकिन अब नई व्यवस्था लागू होने से बोर्ड परीक्षा यानी 12वीं में प्राप्त अंकों का कोई वेटेज यानी भारांक नहीं मिलेगा। हालांकि विश्वविद्यालयों को बोर्ड परीक्षा के अंकों के आधार पर न्यूनतम पात्रता निर्धारित करने की अनुमति होगी।
आगे की राह : कामन एंट्रेंस टेस्ट एक हद तक हाई कट-आफ की समस्या का समाधान करता है, लेकिन कई दूसरे सवाल उभरते हैं कि क्या देश में नीट और जेईई की तरह बीए और बीकाम जैसे कोर्स के लिए भी एक एडमिशन टेस्ट की जरूरत है? कई शिक्षाविदों का मानना है कि इससे छात्रों पर एक और परीक्षा का दबाव बनेगा। यह परीक्षा उन्हें एक कोचिंग की ओर रुख करने को मजबूर कर सकती है। इससे कोचिंग उद्योग के फलने-फूलने के अवसर बढ़ेंगे। नीट परीक्षा के लिए गठित एक समिति की रिपोर्ट बताती है कि नीट के जरिए मेडिकल कालेजों में एडमिशन पाने वाले 99 प्रतिशत उम्मीदवार वे हैं, जिन्होंने कोचिंग सेंटर की मदद ली है यानी अगर किसी के पास कोचिंग सेंटर जाने के लिए पैसे नहीं हैं, या कोई दूरदराज क्षेत्र में रहता है, जहां कोचिंग सेंटर नहीं हैं, या किसी लड़की का परिवार अगर उसे कोचिंग के लिए बाहर नहीं भेज रहा है तो उसे मेडिकल कालेज में एडमिशन शायद ही मिल पाएगा।
ऐसे में यह चिंता स्वाभाविक है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नामांकन के लिए भी कोचिंग सेंटर पर छात्रों की निर्भरता बढ़ सकती है। ऐसे में गरीब एवं पिछड़े क्षेत्र में रह रहे छात्रों पर इसका असर पड़ सकता है। लिहाजा राज्य सरकारों को वंचित पृष्ठभूमि वाले छात्रों को मुफ्त कोचिंग की व्यवस्था करनी चाहिए और साथ ही एनटीए यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को प्रवेश परीक्षा में प्रश्नों का प्रारूप कुछ इस तरह रखना चाहिए कि वे कोचिंग के प्रशिक्षण से अलग छात्रों की मौलिकता को परख सकें। प्रवेश परीक्षा किसी छात्र के उत्तर रट लेने की क्षमता की कसौटी नहीं होनी चाहिए। कुछ छात्रों को आशंका है कि इससे आरक्षण व्यवस्था पर असर पड़ सकता है। हालांकि यह स्पष्ट करना जरूरी है कि कामन एंट्रेंस टेस्ट में आरक्षण की व्यवस्था यथावत रहेगी। इसके अलावा, एक चिंता यह भी है कि राज्य शिक्षा बोर्ड से पढ़कर आने वाले छात्र एनसीईआरटी से पढ़े छात्रों से कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। इस पर यूजीसी की राय है कि देश के अधिकतर राज्यों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम अपनाया जा चुका है। और अगर नहीं अपनाया गया है तो प्रश्न पत्र का मानक कुछ इस तरह रखा जाएगा कि राज्य बोर्ड में पढ़ाई करने वालों छात्रों का भी नुकसान न हो।
कोचिंग की बढ़ती संस्कृति पर नियमन जरूरी : देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में नामांकन करवाना हो या फिर प्रतियोगी परीक्षा पास करनी हो, कोचिंग या ट्यूशन को छात्रों तथा अभिभावकों द्वारा आशा भरी नजर से देखा जाता है। हमारे देश में कोचिंग उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से प्रगति की है और आज आलम यह है कि यह उद्योग शिक्षा प्रणाली के लिए एक चुनौती बन चुका है। एसोचैम यानी एसोसिएटेड चैंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेट्रो शहरों में प्राइमरी स्कूल के 87 प्रतिशत और माध्यमिक शिक्षा के 95 प्रतिशत बच्चे कोचिंग लेते हैं। आज हमारे देश में ट्यूशन उद्योग का सालाना कारोबार अरबों रुपये का हो चुका है। एसोचैम रिपोर्ट के मुताबिक देश में निजी कोचिंग उद्योग हर वर्ष 35 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में वर्ष 2022 के अंत तक प्राइवेट कोचिंग का कारोबार 227 अरब डालर तक पहुंच जाएगा। भारत में हर चार में से एक बच्चा पढ़ाई के लिए अपने स्कूल से ज्यादा ट्यूशंस पर निर्भर है और हमारे देश में लगभग सात करोड़ बच्चे प्राइवेट ट्यूशंस लेते हैं।
आज से दो-तीन दशक पहले तक कोचिंग या ट्यूशन वही छात्र लेते थे जो पढ़ाई में कमजोर होते थे। अब अगर बच्चे को डाक्टर, इंजीनियर, मैनेजर, प्रशासनिक अधिकारी या किसी सरकारी दफ्तर में क्लर्क ही बनना हो तो औपचारिक शिक्षा की डिग्री के साथ-साथ किसी कोचिंग संस्थान का मार्गदर्शन होना अनिवार्य माना जाने लगा है अन्यथा गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उसका पिछडऩा तय है। सरकारों को इससे चिंतित होना चाहिए कि कोचिंग का बाजार न केवल बढ़ रहा है, बल्कि महंगा होता जा रहा है। सवाल यह भी है कि महंगी होती कोचिंग गरीब एवं निम्न-मध्यवर्ग के परिवार के लिए कितना बोझ बढ़ाती है? क्या वे इस भार को झेलने में सक्षम होते हैं? हालांकि अच्छी बात यह है कि नई शिक्षा नीति कोचिंग संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बजाय नियमित रूप से मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित कर स्कूली बच्चों को निजी ट्यूशन और कोचिंग कक्षाओं से दूर रखना चाहती है। लेकिन इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ढंग से क्रियान्वित करना जरूरी है।
इस संबंध में एक कड़वा सच यह भी है कि आज हमारे देश में ज्यादातर लोगों ने ट्यूशन को ही अच्छी शिक्षा हासिल करने का एकमात्र समाधान मान लिया है। कोचिंग औपचारिक शिक्षा-व्यवस्था का हिस्सा नहीं है, कोचिंग संस्थानों की इस कदर प्रभावशाली उपस्थिति दरअसल शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि ज्यादातर शिक्षाविद कोचिंग कारोबार को अच्छी नजर से नहीं देखते। कोचिंग संस्थानों पर बच्चों की हद से ज्यादा बढ़ती निर्भरता समाज तथा सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। ट्यूशन और कोचिंग उद्योग की सफलता ने से हमारे शिक्षा ढांचे की जिस बुनियादी नाकामी का अंदाजा मिलता है, उससे निपटने के उपाय तो हमें खोजने ही होंगे। बहुत से मामलों में देखने में आता है कि कोचिंग सेंटर्स में छात्रों से मनमानी फीस वसूल की जाती है और सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं दिया जाता। ऐसे में कोचिंग सेंटर्स की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए सरकार को नियम बनाने चाहिए।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]
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