सम्पादकीय

महाराष्ट्र के सांगली में एक परिवार के नौ सदस्यों की मौत और तंत्र-मंत्र का खेल! अंधविश्वास की जंजीरों में आज भी जकड़ा है देश

Rani Sahu
29 Jun 2022 5:45 PM GMT
महाराष्ट्र के सांगली में एक परिवार के नौ सदस्यों की मौत और तंत्र-मंत्र का खेल! अंधविश्वास की जंजीरों में आज भी जकड़ा है देश
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महाराष्ट्र के सांगली जिले में दो सगे भाइयों के परिवारों के नौ सदस्यों की एक साथ मौत के राज धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

महाराष्ट्र के सांगली जिले में दो सगे भाइयों के परिवारों के नौ सदस्यों की एक साथ मौत के राज धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. इन लोगों के शव 20 जून को म्हैसल गांव में मिले थे. मृतकों में एक भाई शिक्षक तथा दूसरा चिकित्सक था. इस मामले में अब हत्या का कोण सामने आया है और पुलिस इसमें एक तांत्रिक को भी लिप्त बता रही है.
इस जघन्य प्रकरण से एक बात स्पष्ट हो गई है कि लोग उच्च शिक्षित भले ही हो रहे हों लेकिन तंत्र-मंत्र और अन्य तरह के अंधविश्वास की जंजीरों में वे आज भी जकड़े हुए हैं. देश का ऐसा कोई हिस्स नहीं बचा है, जहां तंत्र-मंत्र की आड़ में जघन्य अपराध न हो रहे हों. दिल्ली में 2018 में एक ही परिवार के 11 लोगों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली थी.
हालांकि आत्महत्या का रहस्य अभी तक पूरी तरह उजागर नहीं हुआ है लेकिन जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि परिवार तंत्र-मंत्र में अगाध श्रद्धा रखता था और तांत्रिक अनुष्ठान किया करता था. तंत्र-मंत्र के नाम पर भारत में होने वाले अपराधों की संख्या हर साल हजारों में है. हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होता है, उसका निदान उसे तंत्र विद्या में ही नजर आता है.
तांत्रिक आम आदमी की इसी मानसिकता का फायदा उठाते हैं. भारतीय अध्यात्म दर्शन में तंत्र विद्या को भौतिक सुखों से मुक्त होकर ईश्वर से साक्षात्कार करवाने का साधन माना गया है. यह तन और मन की शुद्धि का मार्ग माना जाता है. दुर्भाग्य से तंत्र-मंत्र की आड़ में बेशुमार अपराध हो रहे हैं. लोग अपनी जान, धन, इज्जत सब गंवा रहे हैं. आधुनिक विज्ञान तंत्र विद्या को नहीं मानता.
भारत के कई राज्यों में भी अंधविश्वास तथा तंत्र-मंत्र पर लगाम कसने के लिए कानून बनाए गए हैं. तांत्रिकों-मांत्रिकों की करतूतों के खिलाफ जन-जागृति आज से नहीं, सदियों से चल रही है. संत कबीर, गुरु नानक देवजी, एकनाथ, तुकाराम, रैदास जैसे संतों की लंबी फेहरिस्त है जिन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई थी.
ढाई हजार साल पहले भगवान बुद्ध तथा महावीर ने भी अंधविश्वास मुक्त समाज की स्थापना का संदेश दिया था. आम आदमी तो दूर सत्ता के गलियारों तक तांत्रिकों की पहुंच होती है. हमारे देश में राजनेताओं का बड़ा वर्ग तंत्र-मंत्र में विश्वास रखता है और तांत्रिक अनुष्ठान करवाता रहता है. ये अनुष्ठान सत्ता तक पहुंचने तथा अपने विरोधियों को पस्त करने के लिए होते हैं.
दस साल पहले जयपुर विश्वविद्यालय में तंत्र विद्या की शिक्षा देने का प्रयास किया गया था. तांत्रिक चंद्रास्वामी और धीरेंद्र ब्रह्मचारी की सत्तर और अस्सी के दशक में तूती बोलती थी. बड़े-बड़े राजनेता उनके भक्त हुआ करते थे. दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध अध्यात्म गुरु के भक्तों में राजनेता ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षित वर्ग जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, विधिवेत्ता आदि भी शामिल थे. तंत्र-मंत्र के नाम पर घृणित प्रथाएं आज भी प्रचलित हैं.
राजस्थान में भीलवाड़ा जिले में एक जगह महिलाओं को गंदे जूते का पानी पीकर खुद का 'शुद्धिकरण' करना पड़ता है. तांत्रिक के असर का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिहार के चौरीचौरा में तांत्रिक के कहने पर एक महिला ने अपनी दो मासूम बच्चियों को तालाब में फेंक दिया. तांत्रिक ने इन बच्चियों को डायन का रूप बता दिया था.
गांवों में किसी भी महिला को डायन करार देकर निर्वस्त्र घुमाने की घटनाएं भी आए दिन होती रहती हैं. तांत्रिकों के हाथों सन्‌ 2000 से 2016 के बीच ढाई हजार लोगों की हत्या हो चुकी है. आज हम चांद तथा मंगल पर पहुंच चुके हैं. ब्रह्मांड में जीवन खोजने के प्रयास निर्णायक दौर में पहुंच चुके हैं मगर तांत्रिकों का प्रभाव भारतीय समाज में कम नहीं हुआ है.
राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा सहित कई राज्यों में अंधविश्वास के विरुद्ध बने कानून प्रभावहीन साबित हो रहे हैं क्योंकि कानूनी मशीनरी खुद अंधविश्वास से ग्रस्त है. अंधविश्वास से मुक्ति के लिए समाज को खुद पहल करनी होगी. अकेला कानून कुछ नहीं कर सकता.
Rani Sahu

Rani Sahu

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