सम्पादकीय

जातीय आरक्षण के दिन लद गए

Gulabi
10 March 2021 4:52 PM GMT
जातीय आरक्षण के दिन लद गए
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हमारा सर्वोच्च न्यायालय अब नेताओं से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है

हमारा सर्वोच्च न्यायालय अब नेताओं से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है। उसने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे बताएं कि सरकारी नौकरियों में जो आरक्षण अभी 50 प्रतिशत है, उसे बढ़ाया जाए या नहीं ? कौन राज्य है, जो यह कहेगा कि उसे न बढ़ाया जाए? सभी नेता और पार्टियाँ वोट और नोट की गुलाम होती हैं। लगभग आधा दर्जन राज्यों ने 1992 में अदालत द्वारा बांधी गई आरक्षण की सीमा (50 प्रतिशत) का उल्लंघन कर दिया है। महाराष्ट्र में तो सरकारी नौकरियों में 72 प्रतिशत आरक्षण हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद थी कि वह इस बेलगाम जातीय आरक्षण पर कठोर अंकुश लगाएगा बल्कि जातीय आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करेगा। जातीय आधार पर आरक्षण शुरु में सिर्फ 10 साल के लिए दिया गया था लेकिन वह हर दस साल के बाद द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ता ही चला जा रहा है। उसका नतीजा क्या हुआ है ?


क्या इस आरक्षण के कारण देश के लगभग 100 करोड़ गरीब, पिछड़े, ग्रामीण, दलित-वंचित लोगों को न्याय और समान अवसर मिल रहे हैं? कतई नहीं। इन 100 करोड़ों लोगों में से सिर्फ कुछ हजार लोग ऐसे हैं, जिन्होंने सरकारी नौकरियों पर पीढ़ी दर पीढ़ी कब्जा जमा रखा है। उसका आधार उनकी योग्यता नहीं, उनकी जाति है। ये कुछ हजार दलित, आदिवासी और पिछड़े लोग नौकरियों के योग्य हों न हों लेकिन अपनी जाति के कारण वे नौकरियां हथिया लेते हैं। इसके कारण देश के प्रशासन में प्रमाद और भ्रष्टाचार तो बढ़ता ही है, जातिवाद-जैसी कुत्सित प्रथा भी प्रबल होती रहती है। इस प्रवृत्ति ने एक नए शोषक-वर्ग को जन्म दे दिया है। इसका नाम हैं- 'क्रीमी लेयर' याने मलाईदार वर्ग। इस वर्ग में अयोग्यता के साथ-साथ अहंकार भी पनपता है। इन लोगों ने अपना नया सवर्ण वर्ग बना लिया है। यह सवर्णों से भी आगे 'अति सवर्ण वर्ग' है। देश के 100 करोड़ वंचितों को ऊपर उठाने की चिंता इन लोगों को उतनी ही है, जितनी परंपरागत सवर्ण वर्ग को है।


यदि हम भारत को सबल और संपन्न बनाना चाहते हैं तो इन 100 करोड़ लोगों को आगे बढ़ाने की चिंता हमें सबसे पहले करनी चाहिए। उसके लिए जरुरी है कि आरक्षण जाति के नहीं, जरुरत के आधार पर दिया जाए और नौकरियों में नहीं, शिक्षा और चिकित्सा में दिया जाए। जो भी दलित, वंचित, अक्षम, गरीब हो, उसके बच्चों को मुफ्त शिक्षा और मुफ्त भोजन दिया जाए और उसकी मुफ्त चिकित्सा हो। उसकी जाति न पूछी जाए। ऐसे जरुरतमंदों को वे किसी भी जाति के हों, यदि उन्हें शिक्षा और चिकित्सा में 80 प्रतिशत आरक्षण भी दिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ये बच्चे अपनी योग्यता और परिश्रम से भारत को महाशक्ति बना देंगे।


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