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साल 1959 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी
सुरेंद्र किशोर।
साल 1959 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने दलाई लामा (Dalai Lama) को भारत में शरण दे दी थी. किंतु प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सन 1966 में स्टालिन की बेटी स्वतेलाना को यहां शरण नहीं दी, जबकि स्वेतलाना (Svetlana Alliluyeva) भारत की बहू थीं. इस तरह इंदिरा गांधी ने भावना पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर अधिक ध्यान दिया था. उन्हें आशंका थी कि स्वेतलाना को शरण देने से सोवियत संघ से भारत का संबंध खराब हो सकता है. दूसरी ओर, जवाहरलाल नेहरू तिब्बत में चीनी ज्यादतियों की खबरों से भावुक हो गए थे और उन्होंने दलाई लामा और उनके अनुयायियों के साथ अपनी एकजुटता दिखाई थी.
आज की पीढ़ी के कम ही लोग यह जानते होंगे कि सोवियत संघ के शासक जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना भारत की बहू थीं. उनके पति ब्रजेश सिंह के असामयिक निधन के बाद उनकी अस्थि भस्म लेकर वह भारत आई थीं. पूर्ववर्ती कालाकांकर राज्य के राजा दिनेश सिंह ब्रजेश सिंह के भतीजे थे. दिनेश सिंह पहले जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव थे. बादमें वे केंद्रीय मंत्री बने. स्वेतलाना यहीं बसना चाहती थीं. पर भारत सरकार ने उसकी इजाजत नहीं दी. क्योंकि सोवियत संघ ऐसा नहीं चाहता था. उन दिनों लियोनिद ब्रेझनेव सोवियत संघ के शासक थे. अंततः स्वेतलाना पहले अमेरिका गयीं. बाद में ब्रिटेन की भी नागरिक बनी. पर 2011 में आर्थिक परेशानियों के बीच अमेरिका में स्वेतलाना का 85 साल की उम्र में निधन हो गया.
भारत में शरण नहीं मिलने पर वह अमेरिका चली गयीं
स्वेतलाना की जीवनी के प्रकाशक ने स्वेतलाना को 25 लाख डालर दिया था. उस समय की यह बहुत बड़ी राशि थी. पर इसमें से अधिकांश पैसे स्वेतलाना ने बांट दिए थे. बाद में वह आर्थिक परेशानी में रहीं. याद रहे कि ब्रजेश सिंह कम्युनिस्ट थे और मास्को में रहते थे. उत्तर प्रदेश के एक राज घराने से संबंध रखने वाले ब्रजेश सिंह का कम्युनिस्ट होना उतना ही चकित करता था, जितना स्टालिन की बेटी का अपने परिवार और कम्युनिस्ट विचारधारा से विद्रोह करना.
स्वेतलाना ने कहा था कि 'मुझे राजनीति से नफरत है. मैं खुले वातावरण में रहना चाहती हूं.' खैर ब्रजेश सिंह और स्वेतलाना जब अपने-अपने इलाज के सिलसिले में क्रेमलिन के एक अस्पताल में थे तो उन दोनों के बीच प्रेम हो गया. स्वेतलाना ने ब्रजेश से शादी कर ली. पर तकनीकी तौर पर उस शादी की वहां मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन व्यावहारिक रूप से सन 1964 से दोनों पति पत्नी की तरह रहते थे. गंभीर बीमारी के कारण जब सन 1966 में ब्रजेश सिंह का निधन हो गया तो स्वेतलाना भारत आईं. पर उन्हें यहां शरण नहीं मिलने पर वह अमेरिका चली गयीं. इस बीच वह कई देशों में घूमती रहीं. स्वेतलाना के गुप्त तरीके से अमेरिकी दूतावास की मदद से भारत से चले जाने के बाद लोकसभा में इस पर तीखी चर्चा भी हुई थी.
विदेश मंत्री एम.सी. छागला ने कहा कि 'स्वेतलाना के प्रति मेरे मन में भी गहरा सम्मान है. कानून उसे विवाहिता माने या न माने मैं उसे विवाहिता मानता हूं. उसकी वफादारी और उसका प्रेम किसी भी विवाहिता पत्नी से अधिक है. लेकिन मैं यह पूरी सच्चाई के साथ कहना चाहता हूं कि उसने विदेश मंत्रालय के किसी भी मंत्री या अफसर से शरण नहीं मांगी थी न ही वीजा बढ़ाने का आग्रह किया था. वह जब भी भारत आना चाहेगी, भारत उसका स्वागत करेगा.'
2011 में स्वेतलाना का निधन हो गया
लेकिन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सासंद डॉ. राम मनोहर लोहिया ने स्वेतलाना के प्रश्न को भारत की विदेश नीति के सवाल के रूप में उठाया. मंत्री की बात का खंडन करते हुए डॉ. लोहिया ने इलाहाबाद के देवेंद्र बाहरी को लिखे स्वेतलाना के पत्र को सदन में उधृत किया. उस पत्र के अनुसार 'अब मैं कालाकांकर में न रह सकूंगी. क्योंकि राजा साहब यह जानकर खुश हैं कि मैं मास्को जा रही हूं.' स्वेतलाना ने इलाहाबाद के जजों तक से अनुरोध किया था कि वे उसे भारत में रहने की इजाजत दिलाएं. डॉ.लोहिया ने यह भी कहा कि 'बेहतर होता कि अमेरिका के बजाए स्वेतलाना भारत में ही रहतीं. क्योंकि अमेरिका तो स्वेतलाना को हथियार बना सोवियत संघ को खरोंचेगा.'
कांग्रेसी सांसद लक्ष्मी कांतम्मा ने कहा कि यदि हमारे आश्रमों और तीर्थों में सैकड़ों विदेशी स्त्रियां रह सकती हैं तो स्वेतलाना भारत में क्यों नहीं रह सकतीं. प्रजा समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र नाथ द्विवेदी के अनुसार विदेश मंत्री ने राज्यसभा में कहा है कि स्वेतलाना और दिनेश सिंह के बीच व्यक्तिगत मामला है और सरकार उसमें नहीं पड़ना चाहती. सुरेंद्र नाथ द्विवेदी ने यहां तक कहा कि यह चाची और भतीजे का झगड़ा नहीं है बल्कि एक राजनीतिक मामला है.
वह सब कुछ छोड़कर भारत में रहने आईं और भारत सरकार ने उसे रहने की इजाजत नहीं दी. मधु लिमये ने सदन को बताया था कि न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के अनुसार स्वेतलाना ने कहा था कि अगर मुझे भारत छोड़ने के लिए कहा गया तो मैं यमुना में कूद जाऊंगी या कुतुब मिनार से छलांग लगा लूंगी. सी.पी.एम. के उमानाथ ने यह कह कर सदन में सनसनी फैला दी कि स्वेतलाना लखनऊ में एक सी.आई.ए. के एजेंट के साथ सिनेमा देखने गयी थीं. उसे एक अमेरिकी एजेंट ने रातोंरात भारत से बाहर जाने दिया. भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत ने बाद में यह लिखा था कि उन्होंने स्वेतलाना को भारत से सुरक्षित बाहर भेजने का प्रबंध कर दिया था. स्वेतलाना को सन 1978 में अमेरिकी नागरिकता भी मिल गयी थी. कुछ समय के लिए वह ब्रिटिश नागरिक भी रहीं. 1984 में वह सोवियत संघ वापस लौटी थीं. पर फिर वह अमेरिका गयीं. वहीं 2011 में स्वेतलाना का निधन हो गया. कुल मिलाकर स्वेतलाना का जीवन हलचलपूर्ण और उदास ही रहा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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