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- अंधविश्वास के अंधेरे
Written by जनसत्ता; खबर के मुताबिक, बच्चे को मार डालने का आरोप जिन दो लोगों पर है, उन्होंने यह कबूल किया कि उन्होंने 'समृद्धि' हासिल करने के लिए बच्चे की हत्या कर दी। यों दिल्ली में हत्या जैसे जघन्य अपराध कोई नई बात नहीं हैं, मगर छह साल के बच्चे का सिर फोड़ कर और गला रेत कर मार डालने की इस घटना की कई परतें हैं।
निश्चित रूप से इसे भी हत्या का अपराध माना जाएगा और दोषियों के लिए सजा भी कानून के ही मुताबिक ही तय की जाएगी। मगर महज किसी भ्रम या लालच को पूरा करने के लिए एक बच्चे की जान ले लेने की क्रूरता का खयाल किसी के भीतर कैसे आता है? यह बात आरोपियों के दिमाग में कहां से आई कि किसी बच्चे की बलि देने से उन्हें समृद्धि हासिल हो सकती है? इस घटना के आरोपी पकड़े गए, मगर क्या उनके दिमाग में यह अंधविश्वास भरने वाले व्यक्ति या स्रोत की भी कभी खोज की जाएगी?
दरअसल, आम जनजीवन में ऐसी बहुत सारी बातें घुली-मिली हैं, जिन्हें लोग कई बार आस्था और विश्वास के नाम पर मानते चलते हैं। पर्व-त्योहार या रोजमर्रा के अभ्यास में कुछ बातें लोग सिर्फ इसलिए निभाते हैं कि परंपरा के मुताबिक वह एक रिवायत रही है। भले उसके पीछे कोई तर्क हो या नहीं या फिर वह अमानवीय ही क्यों न हो! उस पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता।
नतीजा यह होता है कि लोग रीति-रिवाज के नाम पर चलने वाली वैसी गतिविधियों में अगर सीधे शामिल नहीं भी होते हैं तो उसके मूकदर्शक होते हैं या फिर उसे नजरअंदाज करते हैं। धार्मिक कर्मकांडों के तहत 'बलि' भी एक ऐसी मिथ्या धारणा और क्रूर गतिविधि है, जो किसी मनोकामना के पूरा होने के भ्रम से जुड़ी है। पशु-पक्षियों की बलि को तो लोग बेझिझक देखते ही हैं, मगर ऐसी खोखली मान्यताओं की हद इससे समझी जा सकती है कि कोई व्यक्ति किसी मनुष्य की बलि तक को सहज मान ले।
कल्पना की जा सकती है कि बलि के लिए हत्या करने वाले दोनों आरोपियों के दिमाग पर अंधविश्वास हावी होने के बाद उनका विवेक कैसे शून्य हो गया होगा और संवेदना मर गई होगी कि उन्हें छह साल के मासूम पर भी कोई ममता नहीं आई। शिक्षा और अर्थव्यवस्था से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में रोज नई ऊंचाइयां छूने के दावों के बीच ऐसी घटनाएं क्या एक आईना नहीं हैं कि हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी अंधविश्वास के अंधेरे में मर-जी रहा है? संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) के तहत यह दर्ज है कि हर भारतीय नागरिक मानववाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, ज्ञान अर्जन और सुधार की भावना का विकास करेगा।
मगर न तो अशिक्षित से लेकर पर्याप्त शिक्षित लोगों के बीच वैज्ञानिक दृष्टि को लेकर कोई गंभीरता दिखाई देती है, न सरकार को इस बात की जरूरत लगती है कि विज्ञान की चेतना को कुंद करने वाले अंधविश्वासों पर वह कोई ठोस प्रहार करे। बल्कि अंधविश्वास का कारोबार करने वाले बाबा या तांत्रिक खुलेआम अपना धंधा चलाते रहते हैं और उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं होता। नतीजतन, अक्सर बलि के अंधविश्वास में किसी बच्चे तक को मार डालने की घटनाएं सामने आ जाती हैं।