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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बृहस्पतिवार (26 अगस्त) को भारत में कोविड-19 के 44,658 नए दैनिक मामले पाए गए
चंद्रकांत लहारिया.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बृहस्पतिवार (26 अगस्त) को भारत में कोविड-19 के 44,658 नए दैनिक मामले पाए गए, जिनमें से तीस हजार से ज्यादा मामले अकेले केरल में पाए गए। हालांकि अधिकांश राज्यों में संक्रमण में गिरावट आई है, लेकिन देश के दो राज्य-केरल और महाराष्ट्र-में अब भी निरंतर संक्रमण हो रहा है। वास्तव में, पिछले कई हफ्तों से भारत में जितने कुल दैनिक मामले सामने आते हैं, उसका लगभग आधा संक्रमण अकेले केरल में हो रहा है। केरल में परीक्षण सकारात्मकता दर(टीपीआर) 10 प्रतिशत से अधिक है, जबकि राष्ट्रीय औसत मात्र दो प्रतिशत है। क्या यह भारत के लिए चिंता का कारण है?
आइए, इस पर निष्पक्ष ढंग से विचार करें। महामारी में कम से कम तीन मुख्य पैमाने के संयोजन पर प्रभावी प्रतिक्रिया का आकलन किया जा सकता है। एक, संक्रमण को धीमा करना, जिससे स्वास्थ्य प्रणाली को तैयार करने का समय मिलता है। दूसरा, संक्रमण बढ़ाने वालों पर प्रभाव को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के जरिये कम करना, जैसा कि मृत्यु दर के आधार पर आकलन किया गया है। और तीसरा, संक्रमण को रोकने के लिए नियंत्रण उपायों को लागू करना, यानी टीकाकरण, रोकथाम और अन्य प्रतिबंधों के जरिये। किसी भी अन्य भारतीय राज्य की तुलना में केरल संक्रमण को धीमा करने में ज्यादा सफल रहा है, जैसा कि चौथे राष्ट्रीय सीरोप्रेवेलेंस सर्वेक्षण में बताया गया है। सर्वेक्षण में शामिल 21 राज्यों में से केरल में सबसे कम 44.6 प्रतिशत में सीरोप्रेवेलेंस पाया गया।
जैसा कि होता है, अनिवार्य रूप से इसका मतलब यह था कि केरल में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में आनुपातिक रूप से अधिक संवेदनशील लोग हैं। डेल्टा वेरिएंट के आने के साथ, जो अधिक संक्रामक है, राज्य में ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। जहां तक प्रभाव को कम करने के दूसरे पैमाने की बात है, केरल में मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत 1.3 प्रतिशत की करीब एक तिहाई 0.5 फीसदी है। यहां तक कि जब दूसरी लहर चरम पर थी और कई राज्यों में बिस्तरों, ऑक्सीजन आपूर्ति और महत्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति का संकट पैदा हो गया था, केरल में भी स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव था, लेकिन वह कभी चरमराई नहीं। राज्य में बुजुर्गों की आबादी अधिक है और गैर-संचारी रोगों का बोझ है, ऐसे में खराब स्वास्थ्य प्रणाली के कारण अधिक मौतें हो सकती हैं। लेकिन इस मामले में राज्य ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
महामारी के प्रसार को दबाने और रोकने के उपाय की बात करें, तो केरल उन कुछ राज्यों में से है, जो अब भी व्यापक स्तर पर संपर्क का पता लगा रहे हैं और उच्च जोखिम वाली आबादी और उच्च संक्रण क्षेत्रों में लक्षित कोविड-19 परीक्षण कर रहे हैं। यह उच्च टीपीआर का एक विश्लेषण है। अन्य अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने वाला राज्य महाराष्ट्र है, जहां 12 संक्रमणों में से एक पाया जाता है। किसी भी राज्य में, लगभग हर 100 संक्रमणों में से केवल एक ही मामला उठाया जा रहा है। केरल में टीकाकरण की गति भी तेज है और करीब 20 फीसदी आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है, जबकि 55 फीसदी आबादी ने कम से कम टीके की एक खुराक ले ली है।
भारत के दैनिक कोविड-19 मामलों में से आधा हिस्सा केरल का होना खतरे की घंटी हो सकता है, हालांकि केरल अधिक मामलों का पता लगा रहा है और उसकी सूचना दे रहा है, जो कि किसी भी बेहतर रोग निगरानी प्रणाली को करना चाहिए। हम सही काम करने के लिए किसी राज्य को दोष नहीं दे सकते। यह बेहतर ढंग से काम करने वाली स्वास्थ्य प्रणालियों में संक्रामक रोग मामले में अपेक्षित है। केरल में हो रहे निरंतर संक्रमण का एक कारण डेल्टा वेरिएंट है, जिसने दूसरी लहर में पूरे राष्ट्र को प्रभावित किया और जो कुछ हफ्ते बाद केरल पहुंचा। कम समय में अधिक लोगों को प्रभावित करने वाले इस वेरिएंट का प्रसार केरल में धीमा है, जो प्रभावी प्रतिक्रिया का संकेत है। ऐसा नहीं है कि केरल ने हमेशा सब कुछ ठीक ही किया है।
उदाहरण के लिए, इसने 2020 में ओणम में और फिर 2021 में चुनावी रैलियों की अनुमति दी। इनमें से कुछ सभाओं के चलते संक्रमण में वृद्धि हुई और इसलिए मामले बढ़े। साफ है कि अतीत की गलतियों से सीखने की जरूरत है। जब तक निरंतर संक्रमण हो रहा है, केरल और अन्य राज्यों को किसी भी कीमत पर ऐसी सभाओं पर रोक लगानी होगी। हालांकि हमें निरंतर संक्रमण वाले हर क्षेत्र पर निगरानी रखने की जरूरत है, लेकिन केरल को कुछ बातों पर विचार करना चाहिए। सबसे पहले, राज्य को स्थानीय महामारी विज्ञान के मापदंडों के उपयोग के साथ एक अधिक सूक्ष्म और गतिशील 'रोकथाम और अनलॉक' रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।
दूसरा, समुदाय के लोगों और स्थानीय निकायों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। तीसरा, राज्य को त्योहारों के दौरान छूट देने से बचना होगा। चौथा, कोविड उपयुक्त व्यवहार के पालन में सुधार के लिए नए अभियान शुरू किए जाने चाहिए। पांचवां, केरल में कोविड-19 टीकाकरण की गति को और तेज करने की जरूरत है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन रणनीतियों को स्थानीय दृष्टिकोण के साथ उच्च और निरंतर प्रसार क्षेत्र में लक्षित तरीके से लागू किया जाना चाहिए। भारत में अब भी महामारी जारी है, विभिन्न दरों के साथ सभी राज्यों में वायरस फैल रहा है। तीसरी लहर की आशंका बनी हुई है और बीमारी के स्थानिक होने में कई महीने लगेंगे। कोविड के टीके संक्रमण को कम नहीं करते हैं; हालांकि, वे मृत्यु दर को कम जरूर कर सकते हैं।
इसलिए सभी राज्यों को अगली लहर के लिए तैयार रहने के लिए टीकाकरण में तेजी लाने की जरूरत है। केरल में मामलों के निरंतर संचरण और उच्च रिपोर्टिंग ज्यादा संवेदनशील आबादी का परिणाम है, जो चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि यह प्राकृतिक नोवल वायरस है, जो सतर्क हस्तक्षेप की मांग करता है। कई राज्यों में मामले कम हैं, लेकिन अगर वायरस का कोई दूसरा रूप सामने आता है, तो स्थिति बदल सकती है, जिसकी आशंका है। इसलिए कम संक्रमण के बावजूद सभी राज्यों को मामलों में वृद्धि के लिए तैयार रहना चाहिए, स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत बनाना चाहिए और टीकाकरण में तेजी लानी चाहिए। इसके अलावा एक-दूसरे से सीखने की भी जरूरत है। तभी हम इस महामारी से जीत पाएंगे।
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