सम्पादकीय

The Criminal Procedure (Identification) Act, 2022 : आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम से अपराध पर अंकुश की उम्मीद, होगा न्याय एवं सुरक्षा के नए युग का आरंभ

Rani Sahu
27 April 2022 2:40 PM GMT
The Criminal Procedure (Identification) Act, 2022 : आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम से अपराध पर अंकुश की उम्मीद, होगा न्याय एवं सुरक्षा के नए युग का आरंभ
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आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 ने देश में लागू सौ वर्ष से भी अधिक पुराने बंदी शिनाख्त अधिनियम, 1920 का स्थान ले लिया है

डा. तुलसी भारद्वाज।

आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 ने देश में लागू सौ वर्ष से भी अधिक पुराने बंदी शिनाख्त अधिनियम, 1920 का स्थान ले लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य विकसित देशों की तर्ज पर देश की पुलिस को आधुनिकतम तकनीक से लैस करते हुए आपराधिक मामलों में वैज्ञानिक सुबूतों का दायरा बढ़ाते हुए न्यायिक जांच को दक्ष बनाना है, ताकि भारत में दोष सिद्धि की दर में वृद्धि की जा सके। अब पुलिस अपराधियों के निजी, भौतिक एवं जैविक डाटा को सुबूतों के तौर पर एकत्र कर सकती है। जैविक डाटा में अपराधियों के बायोमीट्रिक रिकार्ड जैसे रेटिना एवं आंखों की पुतली के स्कैन, रक्त के नमूने आदि शामिल हैैं, वहीं भौतिक डाटा के रूप में लोगों के मानवीय व्यवहार से संबंधित नमूने जैसे हस्ताक्षर और लेखनी आदि का रिकार्ड भी एकत्र किया जा सकता है, जिससे समय आने पर इस रिकार्ड के माध्यम से अपराधी तक आसानी से पहुंचा जा सके। इस अधिनियम में सुबूतों के साथ-साथ अभियुक्तों का दायरा भी बढ़ाया गया है।

जहां पहले कठोर कारावास वाले अपराधियों का ही रिकार्ड लिया जा सकता था, वहीं अब किसी भी अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का रिकार्ड लेने का प्रविधान किया गया है। प्रमाण एकत्र न करने देने या प्रतिरोध की स्थिति को सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी से रोकने की दशा मानते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 1860 के तहत एक अपराध माना जाएगा। हालांकि राजनीतिक अपराधियों पर यह प्रभावी नहीं होगा, परंतु आपराधिक मामले में पकड़े जाने पर उन्हें भी सामान्य नागरिक की तरह ही माना जाएगा। ब्रेन-मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। थाने के प्रभारी, हेड कांस्टेबल, जेल के हेड वार्डन को भी डाटा एकत्र करने का अधिकार होगा। पुलिस के साथ-साथ मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट भी इन अधिकारों से लैस रहेंगे, ताकि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान किसी भी संदिग्ध व्यक्ति पर इस अधिकार का प्रयोग किया जा सके। यद्यपि दोषमुक्त होने की स्थिति में उसके रिकार्ड को हटा दिया जाएगा। ध्यान रहे अभी तक आपराधिक सुबूतों में केवल हाथ-पैर की अंगुलियों के निशान ही एकत्र किए जा सकते थे, जिसके कारण अपराधियों को सजा दिलाने के मामले में भारत काफी पीछे है
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधियों से सुबूत के तौर पर एकत्र किए गए डाटा का संग्रहण करेगा और समय आने पर उसे सुरक्षा एजेंसियों के साथ सुबूतों के मिलान करने की दृष्टि से साझा करेगा। यह संग्रहित रिकार्ड विशेष सुरक्षा के अंतर्गत 75 वर्ष तक सुरक्षित रखे जाएंगे, जिसमें थर्ड पार्टी का हस्तक्षेप नहीं होगा। इस प्रकार पूर्व संग्रहित आपराधिक रिकार्ड की मदद से अपराधी तक पहुंचने की संभावनाएं काफी बढ़ जाएंगी। इससे अपराधियों पर थर्ड डिग्री के प्रयोग की आवश्यकता के अवसर भी कम होते चले जाएंगे। फलस्वरूप पुलिस पर अमूमन लगने वाले मानवाधिकारों हनन के आरोपों में भी कमी आएगी।
ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया आदि देशों में पहले से ही इस प्रकार के आपराधिक पहचान कानून प्रभावी हैं, जिसके कारण वहां दोष सिद्धि की दर बहुत ऊंची है। आस्ट्रेलिया की बात करें तो हत्या के मामले में केवल तीन प्रतिशत अपराधी ही कानून के शिकंजे से बच पाते हैं, जबकि एनसीआरबी के 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में इस जघन्य अपराध में बच निकलने वालों का प्रतिशत 66 के आसपास है। स्पष्ट है कि यह चिंताजनक स्थिति है। अपने देश में अन्य आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि दर के आंकड़े और भी गंभीर हैं। जैसे कि दुष्कर्म के मामलों में यह केवल 39 प्रतिशत, हत्या के प्रयास में 24 प्रतिशत, चोरी के मामलों में केवल 38 प्रतिशत है, जो कहीं न कहीं सूचना एवं तकनीक के इस युग में न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाने के साथ-साथ समाज में आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाला है।
भारत जैसे विशाल एवं जटिल सामाजिक संरचना वाले देश में अपराध नियंत्रण की चुनौती को स्वीकार करते हुए 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्मार्ट पुलिसिंग की अवधारणा दी थी। इसके तहत न्यायिक एवं प्रशासनिक तंत्र से संबंधित सुधार के अलावा कई सुधारवादी बिल अभी पाइपलाइन में हैं। जैसे अपराधियों से निपटने के लिए नेक्स्ट जेन पुलिसिंग बिल, भारतीय दंड संहिता एवं आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन एवं सुधार बिल, आदर्श कारागार नियमावली आदि। इसके साथ-साथ केंद्रीय फोरेंसिक लैब विश्वविद्यालय की स्थापना भी अहम है। इसमें दो राय नहीं कि इनकी मदद से अपराधियों की गर्दन तक पहुंचना आसान हो जाएगा और पुलिस एवं न्यायिक तंत्र का बोझ भी काफी हद तक कम हो सकेगा।
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम से निजता और मौलिक अधिकारों के हनन और साथ ही डाटा के दुरुपयोग होने की आशंकाएं भी जताई जा रही हैैं। ऐसी आशंका निराधार है। देखा जाए तो मानव अधिकारों का डंका पीटने वाले देश पहले से ही इस प्रकार के कानून को अपनाकर न्याय एवं प्रशासन के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। आज जबकि भारत का कोई भी क्षेत्र आधुनिकतम तकनीक से वंचित नहीं रह गया है तो क्या यह विडंबना नहीं है कि मानव अधिकारों और निजता के हनन के नाम पर स्वयं पुलिस के हाथ बांध दिए जाएं। कुल मिलाकर इस नए अधिनियम के प्रभावी होने पर आपराधिक मामलों में सतत गिरावट दर्ज होने की उम्मीद है, लेकिन यह इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। इसके अभाव में अन्याय के शिकार व्यक्ति को न्याय दिलाना वर्तमान परिवेश जैसा ही कठिन बना रह जाएगा।
Rani Sahu

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