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डा. तुलसी भारद्वाज।
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 ने देश में लागू सौ वर्ष से भी अधिक पुराने बंदी शिनाख्त अधिनियम, 1920 का स्थान ले लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य विकसित देशों की तर्ज पर देश की पुलिस को आधुनिकतम तकनीक से लैस करते हुए आपराधिक मामलों में वैज्ञानिक सुबूतों का दायरा बढ़ाते हुए न्यायिक जांच को दक्ष बनाना है, ताकि भारत में दोष सिद्धि की दर में वृद्धि की जा सके। अब पुलिस अपराधियों के निजी, भौतिक एवं जैविक डाटा को सुबूतों के तौर पर एकत्र कर सकती है। जैविक डाटा में अपराधियों के बायोमीट्रिक रिकार्ड जैसे रेटिना एवं आंखों की पुतली के स्कैन, रक्त के नमूने आदि शामिल हैैं, वहीं भौतिक डाटा के रूप में लोगों के मानवीय व्यवहार से संबंधित नमूने जैसे हस्ताक्षर और लेखनी आदि का रिकार्ड भी एकत्र किया जा सकता है, जिससे समय आने पर इस रिकार्ड के माध्यम से अपराधी तक आसानी से पहुंचा जा सके। इस अधिनियम में सुबूतों के साथ-साथ अभियुक्तों का दायरा भी बढ़ाया गया है।