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भाजपा की जीत पर आप बेशक इतराते रहें. दूसरे धर्म और विपक्षी पार्टी को औकात बता कर कुछ होते रहें
Soumitra Roy
भाजपा की जीत पर आप बेशक इतराते रहें. दूसरे धर्म और विपक्षी पार्टी को औकात बता कर कुछ होते रहें. लेकिन आपके लिये यह भी समझ लेना जरूरी है कि देश की अर्थव्यवस्था की ज़मीन खिसक चुकी है. अर्थव्यवस्था का धंसना एक बड़ा झटका होने वाला है. अंकटाड (यूनाईटेड नेशन कंफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट) ने कल भारत की जीडीपी बढ़त का अनुमान घटाकर 4.6% कर दिया है, जो कि 9.27% के बजट अनुमान का आधा है. इसके अभी और गिरने की आशंका है. क्योंकि क्रूड के दाम 120$ के ऊपर हैं और इसमें पूरे साल उतार-चढ़ाव होता रहेगा.
बीते 4 महीने में क्रूड के अंतरराष्ट्रीय दाम में 40$ की बढ़ोतरी हुई है. इससे भारत की दोनों तेल कंपनियों को 19000 करोड़ का घाटा हुआ है. इसकी सीधे वसूली अब आम लोगों की जेब से होने लगी है, जो आज की मूल्यवृद्धि को मिलाकर प्रति लीटर 2.40₹ है. सवाल यह है कि इस बढ़ोतरी का जीडीपी से क्या संबंध है और इससे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम कहां तक बढ़ेंगे?
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट से इकोनॉमी पर क्या असर होगा? फिच (फेबुलियस इंटेलिजेंट ट्रूथफुल चीयरफुल हर्टनिंग) ने दिसंबर में रुपए की कीमत में 3% गिरावट की उम्मीद जताई थी, जो अब 3.2% है. इसके 3.5% से भी ज़्यादा होने की आशंका है.
घरेलू स्तर पर मुद्रा के मूल्य में 10-15% की गिरावट महंगाई में आग लगा देती है, इसलिए इस साल महंगाई दर 7-8% रहने की उम्मीद रखें, साथ ही बैंक ब्याज़ दरों में वृद्धि की कोई उम्मीद भी न पालें.
आप इस बात से गौरवान्वित नहीं हो सकते कि हमारे पास 630 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, तो कोई क्या बिगाड़ लेगा. क्योंकि यह पैसा चीन और दक्षिण कोरिया की तरह निर्यात से जमा नहीं हुआ है. यह विदेशी क़र्ज़ और इक्विटी पोर्टफोलियो का पैसा है. यानी देनदारी है. चिंताजनक बात यह है कि क्रूड के बढ़े दाम ने भारत के चालू खाते का घाटा जीडीपी के करीब 2% के बराबर कर दिया है.
संसद में नेहरू और कश्मीर की बात करने वाली वित्त मंत्री इस सवाल पर चुप हैं कि क्रूड की 70-75$ कीमत के अनुमान पर बना उनका बजट कितना फ़ेल हुआ है? नए वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल तक तेल के घरेलू दाम अगर 125 रुपये प्रति लीटर या उससे ज़्यादा बढ़ते हैं, तो मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से बजट के सभी मदों में 60% अधिक का समायोजन करना होगा और तब पता चलेगा कि बजट फेल है. अमेरिका के चालू व्यापार खाते का घाटा भारत से 23 गुना ज्यादा है, लेकिन डॉलर मज़बूत होने से नुकसान भारत जैसे ग़रीब देशों को ही है.
बेहतर होता कि सरकार तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए आयल बांड जारी करती, लेकिन शायद वह 150₹ प्रति लीटर के दाम के बाद ही होगा, या शायद न भी हो. तो बात वहीं पर, यानी 4% के ग्रोथ पर आ टिकी है. यकीन जानिए, इस सरकार की औकात इससे ज़्यादा विकास की है ही नहीं.
निर्यात बढ़ा है, लेकिन आयात पर निर्भरता भी बढ़ी, क्योंकि सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं. इसलिए, 4% के ग्रोथ पर ही चलना देश को चलना होगा और देश के लोगों को 5 किलो मुफ़्त राशन लेकर धार्मिक नारे लगाकार संतुष्ट होना होगा.

Rani Sahu
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