सम्पादकीय

एक बार फिर से कुलांचे भरने लगी है देश की अर्थव्‍यवस्‍था, कई मोर्चों पर दिखाई देने लगी है तेजी

Gulabi
7 Jan 2022 5:27 AM GMT
एक बार फिर से कुलांचे भरने लगी है देश की अर्थव्‍यवस्‍था, कई मोर्चों पर दिखाई देने लगी है तेजी
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15 से 18 साल आयु समूह में भी एक करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं
मनोहर मनोज। लगभग एक माह पूर्व कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के आरंभ होने और उससे पैदा आर्थिक जोखिम को फिलहाल यदि छोड़ दें तो अर्थव्यवस्था के कुलांचे भरने के लिए इस समय बेहद अनुकूल जमीन बन गई है। दरअसल 2021 के उत्तरार्ध में कोविड की दूसरी मारक लहर से उबरने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था ने कई मानकों पर उभार दर्ज किया है।अब तक वयस्क देशवासियों को लगभग 150 करोड़ कोरोना रोधी टीके लग चुके हैं। 15 से 18 साल आयु समूह में भी एक करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं।
इसलिए यह उम्मीद बन गई है कि साल 2021 की दूसरी छमाही में औद्योगिक उत्पादन में जो बढ़ोतरी, बाजार मांग में अभूतपूर्व वृद्धि, बुनियादी उद्योगों में जो रफ्तार बढ़ी है, विकास जनित आयात में जिस तरह से वृद्धि हुई है, विदेशी मुद्राकोष से जो खर्च हो रहा है, नए ईपीएफ खातों की संख्या में जो बढ़त दर्ज की गई है, वह सब कायम रहेगा। इसके साथ ही रोजगार की दर में जो आशावाद उपजा है इस कारण से भी 2022 को लेकर सकारात्मक उम्मीदें बढ़ा दी हैं।वैसे इस मामले पर आगे बढ़ने से पहले हमें साल 2021 में घटित उन दो घटनाक्रमों पर नजर दौड़ाना भी बहुत जरूरी है, जिसके मायने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम हैं।
पहला यह कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने कोविड महामारी के उपरांत पेट्रोलियम उत्पादों पर भारी करारोपण कर अपने राजस्व संतुलन को साधने का जो प्रयास किया था, वह लंबे अर्से तक देश की आम जनता पर भारी बोझ का कारण बना। बीते दिनों इस बोझ से निजात तब मिली जब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: दस व पांच रुपये की कटौती की गई। इस कदम से न केवल आम जनता को राहत मिली, बल्कि मुद्रास्फीति की दर को एक सही सीमा तक सीमित करने में मदद मिली। दूसरा कदम मोदी सरकार ने जो उठाया वह था किसानों की बेहतरी के लिए बनाए गए तीन कृषि कानूनों की वापसी का।
वर्ष 2021 के उत्तरार्ध में मोदी सरकार द्वारा लिए गए ये दोनों निर्णय वर्ष 2022 की भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़े उत्प्रेरक का काम कर सकते हैं। यदि केंद्र और राज्य सरकारें अपने राजस्व में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए, अपने उत्पाद और वैट शुल्कों में कटौती करके पेट्रोलियम कीमतों में और कमी लाती हैं तो वर्ष 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पर यह बहुत सकारात्मक असर डालेगा। इसी तरह यदि एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा मिल जाता है, तो भारतीय कृषि के लिए अब तक का सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। यह एक ऐसा कदम होगा जो भारतीय कृषि की उत्पादकता में व्यापक वृद्धि लाने के साथ साथ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी बढ़ाएगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया संबल प्रदान करेगा।
मीडिया के एक खास वर्ग में जो कृषि विशेषज्ञ तीन कृषि कानून को वापस लिए जाने के कदम को सुधारों से पीछे हटने की कवायद मान रहे हैं, वे भारतीय कृषि की सामाजिक, आर्थिक और पेशेवर परिस्थितियों से अनजान हैं। एमएसपी प्रणाली में आधिकाधिक कृषि उत्पादों को शामिल करना, एमएसपी की दरों को लागत के हिसाब से युक्तिसंगत बनाना, कृषि उत्पादों के मूल्यों को समयानुसार भुगतान सुनिश्चित करना तथा इन सभी को एक व्यापक कानूनी दायरा प्रदान करना ही सबसे बड़ा सुधार होगा। इसके बाद ही कारपोरेट क्षेत्र के कृषि क्षेत्र में निवेश को आकर्षित किए जाने का प्रश्न उठता है। इन दोनों कदमों के इतर वर्ष 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी का बड़ा कारक मोदी सरकार के सार्वजनिक परिसंपत्ति के मुद्रीकरण का अभियान होगा।
वर्ष 2021-22 के बजट की घोषणा के तहत अगले चार साल यानी वर्ष 2025 तक सार्वजनिक परिसंपत्तियों- सड़क राजमार्ग, रेलवे, पावरग्रिड, बिजली उत्पादन, गैस पाइपलाइन, बंदरगाहों, टेलीकाम टावर, शहरी रियल एस्टेट, हवाई अड्डे, स्टेडियम और खानों को निजी उपयोग की अनुमति देकर लगभग छह लाख करोड़ रुपये की उगाही किए जाने का एक रोडमैप प्रस्तुत किया गया है। यह एक ऐसा कदम है, जो विगत में नई आर्थिक नीति के तहत निजी व सार्वजनिक भागीदारी तथा एक नियमन व किराया प्राधिकरण के तहत निजी सार्वजनिक प्रतियोगिता के माड्यूल से बिल्कुल अलग दिखाई पड़ रहा है। इस कदम की घोषणा में सरकार का न तो कोई नीति वक्तव्य था और न ही कोई लेवल प्लेइंग की अवधारणा।
इस कदम के जरिये मोदी सरकार ने अपना जो रोडमैप बनाया है, उसके तहत मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 में 88 हजार करोड़ रुपये, वर्ष 2022-23 में 162 हजार करोड़ रुपये, वर्ष 2023-24 में 179 हजार करोड़ रुपये और वर्ष 2024-25 में 167 हजार करोड़ रुपये की उगाही का लक्ष्य है। अलग अलग सेक्टर की बात करें तो राजमार्गो के जरिये सर्वाधिक 160 हजार करोड़, रेलवे से 152 हजार करोड़, बिजली ट्रांसमिशन से 45 हजार करोड़ तथा बिजली उत्पादन से 40 हजार करोड़, गैस पाइपलाइन से 24 हजार करोड़, टेलीकाम से 35 हजार करोड़, भंडार गृहों से 29 हजार करोड़, खानों से 29 हजार करोड़, बंदरगाहों से 13 हजार करोड़, स्टेडियमों से 11 हजार करोड़ तथा शहरी रियल एस्टेट से करीब 15 हजार करोड़ की उगाही का लक्ष्य है।
कुल मिलाकर इन सभी सार्वजनिक परिसंपत्तियों से उपयोग शुल्क के जरिये आमदनी प्राप्त करने का विचार ऊपरी तौर पर सही लगता है। सरकार के सभी संसाधन चाहे वह आधारभूत संरचनाएं हों या फिर इसके मानव संसाधन ही क्यों न हांे, उनकी समुचित उत्पादकता को समग्रता में दोहन करने से संबंधित है। परंतु इन सभी कदमों को बिना एक समूचा परिचालन माडयूल व कार्य प्रणाली लाए तथा बिना एक बड़े नीतिगत वक्तव्य जारी किए जो लाया गया है, वह कई सारे संदेहों को जन्म देता है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि इस मामले में थोड़ा सोच-समझकर आगे बढ़े, ताकि विपक्ष को किसी तरह का आरोप लगाने का अवसर कम से कम मिल सके। कहा जा सकता है कि साल 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का समूचा परिदृश्य लगभग इन्हीं कदमों से निर्धारित होने जा रहा है।
(लेखक आर्थिक मामलों के पत्रकार)
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