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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। संसद द्वारा किसानों के हित में बनाए गए तीन कानूनों के खिलाफ कुछ किसान संगठनों द्वारा दिल्ली में प्रदर्शन से लगभग एक वर्ष पूर्व नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन की यादें ताजा हो गईं। कभी आरक्षण, कभी नागरिकता, कभी कृषि-कानून तो कभी किसी अन्य मुद्दे पर केंद्र सरकार को चुनौती देना दर्शाता है कि देश में कुछ ऐसी शक्तियां सक्रिय हैं जो अपने मन की न होने पर संसद को खुली चुनौती देने से भी पीछे नहीं हटतीं। संसद को कानून बनाने की शक्ति संविधान और जनता से मिली है। अत: कानूनों के विरुद्ध सड़क पर प्रदर्शन संविधान, संसद और जनता को चुनौती देने जैसा है, जबकि ये शक्तियां इनकी दुहाई भी देती हैं। क्या वास्तव में उनकी निष्ठा तभी तक लोकतंत्र में है जब तक उनके समर्थक दल की सरकार हो। जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है तबसे किसी न किसी मुद्दे पर विपक्षी दल बराबर ऐसे ही प्रयास कर रहे हैं। यदि सर्वोच्च न्यायालय उनके अनुकूल निर्णय नहीं देता तो वे उस पर भी अंगुली उठा देते हैं। फिर आम नागरिक का क्या होगा? यदि उसकी आस्थाएं लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं से उठ गई तो पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ही ग्रहण लग जाएगा।