सम्पादकीय

देश को चाहिए मुफ्तखोरी से मुक्ति: सरकारें जनता को मुफ्त सेवाएं देने के बजाय सुविधाओं को हासिल करने में बनाएं सक्षम

Tara Tandi
27 July 2021 6:53 AM GMT
देश को चाहिए मुफ्तखोरी से मुक्ति: सरकारें जनता को मुफ्त सेवाएं देने के बजाय सुविधाओं को हासिल करने में बनाएं सक्षम
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तमाम देशों में इस समय जनता को मुफ्त सुविधाएं बांटकर वोट हासिल करने का सिलसिला जोर पकड़ रहा है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | [ भरत झुनझुनवाला ]: तमाम देशों में इस समय जनता को मुफ्त सुविधाएं बांटकर वोट हासिल करने का सिलसिला जोर पकड़ रहा है। इंग्लैंड के पिछले चुनाव में मुफ्त ब्राडबैंड, बस यात्रा एवं कार पार्किंग की घोषणा की गई। हम भी पीछे नहीं। कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में मुफ्त लैपटाप, तमिलनाडु के हालिया चुनावों में किचन ग्राइंडर एवं साइकिल, दिल्ली में मुफ्त बिजली एवं पानी और केंद्र सरकार द्वारा गैस कनेक्शन दिए गए हैं। इनसे जनहित तो होता है, मगर कहावत है कि किसी को 'मछली बांटने के स्थान पर यदि उसे मछली पकड़ना सिखाएं तो वह अधिक लाभप्रद होता है।' विचारणीय है कि ऐसे मुफ्त वितरण से क्या वास्तव में जनहित होता है? चुनाव पूर्व ऐसी घोषणाएं निश्चित रूप से अनैतिक हैं, क्योंकि इनमें सार्वजनिक धन का उपयोग वोट मांगने के लिए किया जाता है। जैसा कि कांग्रेस ने किसानों की ऋण माफी एवं मनरेगा जैसी योजनाओं से जीत हासिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव पूर्व ऐसी बंदरबांट पर रोक लगाने की पहल की थी।

Country, freedom from freebies, governments, public, free services, facilities, capableबड़ा सवाल यही है कि क्या चुनाव के बाद भी ऐसा वितरण सही है? भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद की प्रोफेसर रितिका खेड़ा के अनुसार सरकारी सेवाएं तीन प्रकार की होती है। पहली श्रेणी में सार्वजनिक सेवाएं होती हैं। जैसे रेल, हाईवे अथवा कोविड के बारे में जानकारी जो कि केवल सरकार ही उपलब्ध करा सकती है। नि:संदेह ये सुविधाएं सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराई जानी चाहिए। दूसरे प्रकार की सुविधाएं वे होती हैं जो व्यक्ति स्वयं हासिल कर सकता है, परंतु किसी व्यक्ति को ये सुविधाएं मिलने से समाज का भी हित होता है। जैसे यदि किसी को मास्क मुफ्त दे दिया जाए तो कोविड संक्रमण कम होगा। यद्यपि मास्क व्यक्तिगत सुविधा है, परंतु उसे उत्तम अथवा मेरिट वाली सुविधा कहा जाता है। तीसरे प्रकार की सुविधाओं में लाभ व्यक्ति विशेष को ही होता है। जैसे दिल्ली में एक तय सीमा तक मुफ्त बिजली देना। ऐसे वितरण का सामाजिक सुप्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए सरकार को इससे बचना चाहिए। उसे सीधे देने के स्थान पर जनता को सक्षम बनाना चाहिए कि वह इस सुविधा को स्वयं बाजार से खरीद सके।

मेरिट और व्यक्तिगत सुविधा में भेद

विषय यह रह जाता है कि मेरिट और व्यक्तिगत सुविधा में भेद कैसे किया जाए? इसका स्पष्टीकरण दो योजनाओं की तुलना से हो सकता है। केंद्र सरकार ने किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष नकद देने की योजना लागू की है। वहीं दिल्ली सरकार ने मुफ्त बिजली और पानी देने का वादा किया है। दोनों मुफ्त सुविधाएं हैं। अंतर है कि किसान को नकद राशि मिलने से उसका खेती के प्रति रुझान बढ़ता है और देश की खाद्य व्यवस्था सुदृढ़ होती है, जबकि बिजली मुफ्त बांटने से ऐसा लाभ नहीं मिलता। इसलिए किसान को दी जाने वाली नकद मदद को मेरिट सुविधा में गिना जाना चाहिए जबकि मुफ्त बिजली को व्यक्तिगत सुविधा में। इसका यह अर्थ नहीं कि किसान को नकद राशि देना ही सर्वोत्तम है। उत्तम यह होता कि किसान को पराली न जलाने, भूजल के पुनर्भरण, रासायनिक उर्वरक का उपयोग घटाने के लिए सब्सिडी दी जाती। इससे किसान की आय भी बढ़ती और समाज का हित भी होता।

सरकार को कल्याणकारी योजनाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए

केंद्र सरकार को तमाम कल्याणकारी योजनाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए। वर्तमान में केंद्र द्वारा किसान पेंशन के अतिरिक्त मातृत्व वंदना योजना में गर्भवती महिलाओं को नकद राशि दी जा रही है। उन्नत जीवन योजना के अंतर्गत एलईडी बल्ब वितरित किए जा रहे हैं। ग्रामीण कौशल योजना एवं दीनदयाल अंत्योदय कौशल योजना के अंतर्गत लोगों को उपयुक्त क्षमताओं में ट्रेनिंग दी जा रही है। इन योजनाओं को बनाए रखना चाहिए, लेकिन केंद्र द्वारा तमाम मुफ्त सुविधाएं भी दी जा रही हैं। जैसे आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री बीमा सुरक्षा योजना एवं प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत बीमा पर सब्सिडी दी जा रही है। अटल पेंशन योजना के अंतर्गत पेंशन प्रदान की जा रही है। जन-धन योजना में बैंक में खाते खुलवाए जा रहे हैं। अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत गरीबों को लगभग मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। इन तमाम योजनाओं का विशेष सामाजिक सुप्रभाव नहीं दिखता। उलटे प्रशासनिक भ्रष्टाचार से रिसाव का जोखिम और पैदा होता है। इन योजनाओं की रकम को लोगों के खाते में सीधे वितरित कर दिया जाए तो बेहतर। इससे न केवल इन योजनाओं में प्रशासनिक व्यय और भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म हो जाएगी, अपितु लाभार्थी तक वास्तविक लाभ भी पहुंचेगा। दूसरा लाभ यह होगा कि जनता अपने विवेक एवं आवश्यकता के अनुसार उस रकम का उपयोग कर सकेगी।

देश के नागरिक जागरूक

आज हमारे देश के नागरिक जागरूक हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखा जाता है कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा दिलाने के लिए खर्च करने से गुरेज नहीं करते। अब उस धारणा को तिलांजलि दे देनी चाहिए कि जन आकांक्षाओं की पूर्ति केवल सरकारी तंत्र ही कर सकता है। हमें जनता पर भरोसा कर उसे इन तमाम योजनाओं में उलझाने के बजाय सीधे रकम देनी चाहिए। ऐसे वितरण के विरोध में कहा जाता है कि यदि देश के सभी नागरिकों को यह रकम दी जाएगी तो यह अमीरों को भी मिलेगी, जिसका कोई तुक नहीं। मान लीजिए किसी अमीर को किसान की भांति 6,000 रुपये सालाना नकद दिए गए तो वे उससे अतिरिक्त कर के रूप में वसूल भी किए जा सकते हैं। इससे लाभ यह होगा कि गरीब पर 'गरीब' का ठप्पा नहीं लगेगा और नौकरशाही के खेल से देश मुक्त हो जाएगा।

सुविधाएं मुफ्त प्रदान करने से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था चरमरा गई

कल्याणकारी खर्चों का दूसरा पक्ष सरकार की वित्तीय क्षमता का है। सरकार को निर्णय करना होता है कि वह सड़क बनाएगी अथवा गरीब को पेंशन देगी। सरकार जब जनता को मुफ्त सुविधाएं देती है तो उसकी हाईवे इत्यादि बनाने की क्षमता कम हो जाती है। वह नई तकनीक में निवेश नहीं कर पाती। इसका आखिरकार देश के आर्थिक विकास पर ही कुप्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप गरीब का ही जीवन दुष्कर हो जाता है। वेनेजुएला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। तमाम सुविधाएं मुफ्त प्रदान करने से आज उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। समय आ गया है कि भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी पर विराम लगाना चाहिए। इसके बजाय नई तकनीकों में निवेश किया जाए और नागरिकों को सीधे रकम दी जाए।

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