सम्पादकीय

उपेक्षा के भंवर में बिहार को छोड़कर देश आगे नहीं बढ़ सकता

Rani Sahu
29 Sep 2021 8:24 AM GMT
उपेक्षा के भंवर में बिहार को छोड़कर देश आगे नहीं बढ़ सकता
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अब हम बिहार के लिए स्पेशल कैटेगरी स्टेट की मांग करते-करते थक चुके हैं

पुष्यमित्र अब हम बिहार के लिए स्पेशल कैटेगरी स्टेट की मांग करते-करते थक चुके हैं. अब तक हमें यह नहीं मिला है, तो अब हम इसकी मांग ही छोड़ रहे हैं. अब हमने केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग की है. बिहार सरकार के योजना एवं विकास मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने सोमवार, 27 सितंबर को जब यह घोषणा की, तो एक तरह से ऐसा लगा कि लगभग दो दशकों से चली आ रही बिहार की यह मांग अब कभी पूरी नहीं होगी. जब यह मांग केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार के रहने पर भी पूरी नहीं हुई, तो अब क्या होगी.

योजना एवं विकास मंत्री के इस बयान से ऐसा लगने लगा है कि राज्य सरकार इस वक्त खुद को बड़ा असहाय महसूस कर रही है. उसे केंद्र से बिहार के विकास के लिए ऐसा समर्थन नहीं मिल रहा, जो डबल इंजन की सरकार होने की वजह से अपेक्षित था. मंत्री महोदय ने निराशा भरे शब्द में इस मौके पर यह भी कहा कि नीति आयोग भी बिहार के साथ न्याय नहीं कर रहा है. मंत्री ने नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य वाली रैंकिंग पर भी सवाल उठाये और कहा कि सरकार ने इनमें सुधार के लिए मेमोरेंडम भी भेजा है.
केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन को अपना मत देने वाली जनता इस परिस्थिति को देखकर चकित है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. उसे उम्मीद थी कि एक जैसी सरकार सामान्य भाषा में डबल इंजन सरकार बन जाने से परिस्थितियां सुधर जायेंगी. राज्य का तेजी से विकास होगा. नीतीश सरकार जिन मुद्दों को लेकर लगातार केंद्र के आगे गुहार लगाती रही, वे पूरे होंगे. इन मुद्दों में बिहार के लिए विशेष दर्जा के साथ-साथ, बाढ़ के समाधान के लिए फरक्का बराज की डिजाइन में बदलाव और नेपाल के साथ बातचीत के सवाल शामिल रहे हैं.
मगर, केंद्र की तरफ से राज्य को इस बात की कोई सहूलियत नहीं मिली, जैसी एक ही गठबंधन की सरकार को दूसरे राज्यों में मिलती रही है. यहां तक कि बाढ़ राहत के लिए जो राशि बिहार की तरफ से मांगी जाती है, वह भी कई बार राज्य सरकार को मिलती नहीं. इससे ऐसा लगता है कि यह कहने भर के लिए डबल इंजन सरकार है, केंद्र का बर्ताव अभी भी बिहार के प्रति सौतेला ही नजर आ रहा है.
केंद्र सरकारों का बिहार के साथ सौतेला व्यवहार
यह सच है कि आजादी के बाद केंद्र सरकारों ने लगातार बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया है. बिहार के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह फ्रेट इक्वलाइजेशन (किराया समानीकरण) की नीति रही. जिसके तहत देश के किसी भी कोने से कच्चे माल की ढुलाई की दर समान कर दी गई. इसकी वजह से खनिज संपन्न और सस्ते मजदूरों वाले राज्य होने के बावजूद बिहार में उद्योग लगने बंद हो गये. आजादी के बाद संयुक्त बिहार के रांची, जमशेदपुर, बोकारो, बरौनी, मुंगेर, रोहतास आदि शहरों में कई बड़े उद्योग लगे थे, मगर कच्चे माल का रेल किराया समान होने की वजह से ये उद्योग समुद्र तटीय राज्यों में शिफ्ट होने लगे.
जेपी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन की अगुआई की कीमत बिहार ने चुकायी. यहां एक वक्त में लगातार अस्थिर सरकारें रहीं. यहां दिन और महीने के हिसाब से मुख्यमंत्री बनते और हटाये जाते थे. इससे राज्य विकास की दौर में लगातार पिछड़ता चला गया. इसके बाद भी राजनीतिक रूप से जागरूक बिहार ने बीपी सिंह की अगुआई में शुरू हुए आंदोलन में हिस्सा लिया और यहां की कांग्रेस सरकार को हमेशा के लिए विदाई दे दी. मगर तब से ज्यादातर वक्त ऐसा ही रहा कि केंद्र और राज्य में एक दल की सरकार नहीं रही और आजादी के एक-डेढ़ दशक बाद शुरू हुआ सौतेलापन बरकरार रहा.
इसी बीच झारखंड अलग हो गया और पहले से ही पिछड़ा बिहार और पीछे चला गया. उसके बाद से बिहार के राजनीतिक दल और मुखर होकर राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग करते रहे. वैसे तो जदयू ने इस मांग को सबसे अधिक जोर-शोर से उठाया मगर एक वक्त में राजद ने भी इस मांग का समर्थन किया था. एक वक्त तो इस मांग को लेकर सभी राजनीतिक दल एकजुट दिख रहे थे.
2005 में नीतीश सरकार बनने के बाद …
जब 2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनी तो 2008 में विभिन्न तथ्यों के साथ एक पुस्तक स्पेशल कैटेगरी स्टेटस-ए केस ऑफ बिहार का भी प्रकाशन सरकार की तरफ से किया गया. उस वक्त से तब तक बिहार सरकार केंद्र से पूरे दम-खम से स्पेशल कैटेगरी मांगती रही, जब तक केंद्र में दूसरे दल की सरकार थी. 2014 में जब केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार बन गई, तो नीतीश कुमार इस मांग को लेकर सुस्त पड़ गये. फिर जब भाजपा से अलग होकर राजद के साथ उन्होंने सरकार बनायी तो फिर से वे इस मांग को लेकर मुखर होने लगे.
यह भी देखा गया कि जब राज्‍य सरकार के संबंध केंद्र के साथ बेहतर नहीं होते हैं तो वे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर मुखर रहते हैं. मगर जैसे ही उनका रिश्ता ठीक हो जाता है, वे इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं. वे इस मांग का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक वजहों से करते हैं, ऐसा लगने लगा है. इसलिए, इन दिनों फिर से उनकी पार्टी ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग का मुद्दा छेड़ा है. राजनीतिक दल कयास लगाने लगे हैं कि केंद्र के साथ उनके रिश्ते फिर से असहज हो रहे हैं. अब विपक्षी दल राजद ने इस मुद्दे को लपक लिया है.
स्‍पेशल स्‍टेटस पर विपक्षी दलों का वार…
राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि जिस रोज बिहार के मतदाता महागठबंधन को 40 में से 39 लोकसभा सीटें दे देंगे, पीएम को पटना आकर खुद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना होगा. मगर यह भी कुल मिलाकर राजनीतिक बयान ही है. सच यही है कि लगातार अनदेखी की वजह से पिछड़ेपन के जिस भंवर में बिहार फंसा है, उससे उसे उबारने के लिए केंद्र सरकार को बिहार की विशेष मदद करनी ही होगी.
मगर वह मदद सड़कों, फ्लाइओवरों, भवनों और एयरपोर्टों के जरिये नहीं होगी. वह मदद राज्य की अत्यंत पिछड़ी आबादी को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और उद्योग की संभावना देने से होगी. इसके लिए राज्य के सभी दलों को एकजुट होकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना होगा और केंद्र को भी समझना होगा कि बिहार को इस हालत में छोड़ कर वे देश को आगे नहीं बढ़ा सकते.


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