सम्पादकीय

स्वच्छ परिवहन की कीमत : पेड़ों के अवशेष, जगह-जगह बने गड्ढे.. न तो कभी विरोध थमता है, और न ही मेट्रो

Neha Dani
16 Jun 2022 1:45 AM GMT
स्वच्छ परिवहन की कीमत : पेड़ों के अवशेष, जगह-जगह बने गड्ढे.. न तो कभी विरोध थमता है, और न ही मेट्रो
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फिर लोगों और जगहों पर किसी कल्पित शहर के अपने दृष्टिकोण का ठप्पा लगा सकते हैं।

वर्ष 2008 में पहली मेट्रो लाइन की शुरुआत ने बंगलूरू को सतत बदलाव की स्थिति में ला दिया, जो कभी खत्म होता नहीं लगता है। हर लाइन जुड़ने के साथ जगहें और पहचान चिह्न गायब हो जाते हैं, तथा इसके चलते मलबे, कटे हुए पेड़ों के अवशेष एवं गड्ढे रह जाते हैं। न तो कभी विरोध थमता है, और न ही मेट्रो। कांच के भीतर से केवल बाहर और बाहर ही देखा जा सकता है।

एक छोटे शहर से ताल्लुक रखने वाले अशोक पर्पल लाइन पर मेट्रो ट्रेन ऑपरेटर हैं। बंगलूरू के एमजी रोड पर अपनी पहली यात्रा को याद करते हुए वह कहते हैं, 'मुझे लगा कि कोई चिड़िया शहर के ऊपर से सभी शानदार जगहों को देखते हुए उड़ रही है...यह काफी रोमांचक था।' ट्रेन से शहर सुचारू ढंग से बढ़ता दिखता है, क्योंकि आप ट्रैफिक की यातायात के शोर, धूल और गंदगी के ऊपर से गुजरते हैं।
यात्रियों का दृश्य-पथ धुएं से धुंधले क्षितिज तक फैला हुआ है, जो ऊंची-ऊंची इमारतों से घिरा हुआ है और हर गुजरते दिन के साथ बढ़ता ही जाता है। इसके बावजूद कि घर से मेट्रो के बीच की कनेक्टिविटी खराब है, महिलाओं का कहना है कि वे सफर के लिए मेट्रो को पसंद करती हैं, क्योंकि यह 'स्वच्छ', 'सुरक्षित' है और इसका उपयोग 'सभ्य लोगों' द्वारा किया जाता है।
सभ्य लोगों से उनका तात्पर्य अच्छी तरह से तैयार, व्यवस्थित मध्यम वर्गीय व्यक्ति है। अपनी पूरी दक्षता और आभा के साथ इस हाई-टेक ड्रीम मशीन मेट्रो ने हजारों लोगों के शहर में आवागमन को आसान बना दिया है, लेकिन यह कई अंतर्विरोधों से भरा है। ये अंतर्विरोध कभी-कभी कर्मचारियों की अचानक हड़ताल और तकनीकी गड़बड़ियों के रूप में सामने आते हैं।
इसकी निर्बाध गतिविधि उन अनसुलझी लड़ाइयों पर निर्भर है, जो पर्यावरणविदों, भूमि गंवाने वालों और शहर के अन्य लोगों द्वारा वर्ष 2007 से सड़क पर और अदालतों में लड़ी जा रही हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश लड़ाइयों ने ट्रेन को ज्यादा प्रभावित नहीं किया है, क्योंकि यह निर्बाध चलती है, पूरे शहर में नए मार्ग बनाती है और हर बढ़ते शहर के भीतरी इलाकों में अपनी जगह बनाती है।
इन पंक्तियों की लेखिका को दिए अपने एकमात्र इंटरव्यू में बंगलूरू मेट्रो कॉरपोरेशन के निदेशक ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुझे अधिकारियों, कर्मचारियों या यात्रियों से इंटरव्यू नहीं लेने दिया जाएगा। इसलिए मैंने केवल गुपचुप बातचीत और गुप्त बैठकों के जरिये मेट्रो कर्मचारियों के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त की है, और किनारे रहकर मेट्रो की खुदाई के दौरान आवासीय जगहों और उसके आसपास को नष्ट होते देखा है।
तीन साल पहले, निर्माणाधीन पिंक लाइन ने अपना मार्ग बदल दिया और 2.5 किमी से भी कम क्षेत्र में फैले तीन खेल मैदानों को निगल लिया। तीन घनी एवं निम्न आय वर्ग के लोगों की बस्तियों के लिए यही एकमात्र खुला सार्वजनिक स्थान था, जिसे स्टेशन बनाने के लिए ले लिया गया और इस तरह बच्चों एवं वयस्कों को इकट्ठा होने, खेलने, इबादत करने और जश्न मनाने के लिए जगह से वंचित कर दिया गया।
आज बांदा ग्राउंड सबसे बड़ा गड्ढा है। रात के अंधेरे में यहां के निवासियों के घरों की दीवारें भूमिगत सुरंग के झटके से हिलने लगती हैं। लोगों के घरों में पीले निशान हैं, जो बताते हैं कि उन्हें ध्वस्त कर दिया जाएगा। किसी भी निवासी को पुनर्वास की किसी योजना की जानकारी नहीं है। जब स्टेशन बनेंगे, तो पता ही नहीं चलेगा कि वहां क्या था और क्या खो गया है।
मेट्रो कॉरपोरेशन पर लगातार अपारदर्शी होने और सहभागी प्रक्रियाओं को दरकिनार करने का आरोप लगाया गया है। न केवल हरे रंग के टीन के बैरिकेड्स के भीतर निर्माण कार्य चलता रहता है, बल्कि अचानक स्थान परिवर्तन के फैसलों के बारे में भी चुप्पी छाई रहती है और उन लोगों को भी कुछ नहीं बताया जाता, जो उससे सीधे प्रभावित होते हैं। पिछले साल यात्रियों को प्लेटफॉर्म के किनारे से दूर रखने वाली एक महिला गार्ड स्वयं बेहोश होकर पटरियों पर गिर पड़ी।
सौभाग्य से वह बच गई और उसे घर भेज दिया गया। लेकिन उसके फिर से काम पर लौटने की सूचना नहीं मिली। मेट्रो कर्मचारी यूनियन के नेता स्वामी ने बताया कि हो सकता है कि वह थकावट के कारण गिर गई हो। इस तरह की कहानियां मेट्रो संचालन करने वाले लोगों के साथ उसके सामाजिक संबंधों के बारे में बताती हैं। मेट्रो अत्याधुनिक डिजिटल तकनीक पर चलती है।
इसका कार्यस्थल उच्च तकनीक वाला है, लेकिन सामाजिक संबंध पुराने ढर्रे को दर्शाता है, जो 'प्रबंधन और 'काम' करने वालों के बीच बड़े पैमाने पर विभाजन पैदा करते हैं। सात साल पहले बनी यूनियन को अब तक मान्यता नहीं मिली है। प्रबंधन के अनुसार, कोई श्रमिक नहीं है, क्योंकि सभी कर्मचारी टेक्नोलॉजी के साथ काम करते हैं।
इसलिए, कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम (1947) द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा का दावा करने में असमर्थ हैं, जिससे उचित वेतन और काम की परिस्थितियों के लिए सौदेबाजी के अधिकार सहित कई अधिकार प्राप्त होते हैं। इसके अलावा, श्रमिकों को एक गुप्त समझौते पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है, जो उन्हें रोजगार की विसंगतियों और शिकायतों सहित कार्यस्थल की गतिविधियों को सामने लाने से रोकता है।
मेट्रो लाइनें शहर में स्थानों, लोगों और रोजमर्रा की जिंदगी पर उनके प्रभाव के आधार पर पदानुक्रम पैदा करती हैं। मेट्रो को तालियों की गड़गड़ाहट मिल रही है, जिसकी वे हकदार भी हैं, लेकिन इसकी आड़ में उन कहानियों को छिपा दिया जाता है, जो इसके स्याह पक्ष को दर्शाती हैं। निकट भविष्य में लगभग 50 और शहर मेट्रो को अपना सकते हैं, मगर ऐसे हर शहर को विरासत में जटिल सांगठनिक प्रवृत्तियां और कार्यशैली मिलती है, जो शायद ही पारदर्शी या समावेशी हैं।
इससे रहने लायक शहर के लिए निवासियों की जद्दोजहद बढ़ जाती है। इन प्रतिस्पर्धाओं के परिणाम मेट्रो को या तो समावेशी शहरी भविष्य के लिए एक भागीदार में बदल सकते हैं, या फिर लोगों और जगहों पर किसी कल्पित शहर के अपने दृष्टिकोण का ठप्पा लगा सकते हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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