सम्पादकीय

सर्वोच्च न्यायालय का 'कोरोना कवच'

Subhi
10 May 2021 5:00 AM GMT
सर्वोच्च न्यायालय का कोरोना कवच
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भारत के लोकतन्त्र की शुरू से ही यह खूबसूरती रही है कि संविधान की बुनियाद पर रखी हुई जब इसकी प्रशासनिक प्रणाली का कोई भी अंग शिथिल पड़ने लगता है

आदित्य चोपड़ा: भारत के लोकतन्त्र की शुरू से ही यह खूबसूरती रही है कि संविधान की बुनियाद पर रखी हुई जब इसकी प्रशासनिक प्रणाली का कोई भी अंग शिथिल पड़ने लगता है तो स्वतन्त्र न्यायपालिका उसे अपने कर्त्तव्य का बोध कराते हुए पूरे तन्त्र को न केवल दिशा-निर्देश देती है बल्कि उसमें नई ऊर्जा भी भर देती है। यह ऊर्जा समूची शासन व्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए इस प्रकार भरी जाती है कि पूरी अलसायी व्यवस्था फिर से सावधान होकर अपने दायित्व का निर्वाह करने लगे। कोरोना संक्रमण काल में जिस तरह विभिन्न राज्य सरकारें अपने आक्सीजन आवंटन के लिए केन्द्र से उलझ रही हैं और न्यायालयों की शरण में जा रही हैं उसके मद्देनजर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा फार्मूला ईजाद किया जिससे किसी भी राज्य को उसके हिस्से की जायज आक्सीजन मिल सके। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कोरोना के तेज रफ्तार कहर को देखते हुए पूरे देश में सरकारों के हाथ-पैर फूल रहे हैं और वे इस पर काबू पाने के लिए इस तरह बेचैन हो रही हैं जिस तरह रेगिस्तान में पानी की तलाश में हिरण कुलाचे मारता है। मगर इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास किसी लावारिस बच्चे की तरह ही किया गया है और हालत यह है कि इस पर हम अपने सकल उत्पाद का केवल एक प्रतिशत ही खर्च करते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर भारत के गांवों में प्रवेश कर चुकी है और हमारा ग्रामीण चिकित्सा तन्त्र वीराने में बसी किसी झोपड़ी में जलते हुए दीये की तरह टिमटिमा रहा है। यह स्थिति तब है जब हमने भू से लेकर अन्तरिक्ष के क्षेत्र तक में अपनी वैज्ञानिक तरक्की के झंडे गाड़ दिये हैं। देश की बढ़ती आबादी के अनुपात में हमने स्वास्थ्य सेवाओं में आधारभूत स्तर पर इजाफा नहीं किया जिसकी वजह से पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर गांवों में दस्तक दे रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे संक्रमण काल में देश को दिशा दिखाने का काम करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर 'कोरोना प्रतिरक्षा दल' बनाने का आदेश दिया है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे जो केवल वैज्ञानिक आधार पर इस बीमारी से लोगों को बचाने के लिए अपनी सिफारिशें केन्द्र सरकार को देंगे। इस दल में देश के जाने-माने चिकित्सा प्रबन्धक शामिल होंगे। ये दल ही अब तय करेगा कि विभिन्न राज्यों में आक्सीजन का आवंटन उनकी जरूरत के मुताबिक किया जाये तथा आवश्यक दवाओं की भी किसी राज्य में कमी न हो। यह कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ इस प्रकार होना चाहिए कि कोई भी राज्य आक्सीजन की कमी को लोगों की मृत्यु की वजह न बता सके। अगर हम गौर से देखें तो आज भारत की हालत यह हो गई है कि श्मशानों में शवों के अन्तिम संस्कार के लिए परिजनों की कतारें लगी हुई हैं। क्या कभी सोचा गया था कि किसी का अन्तिम संस्कार करने के लिए भी प्रतीक्षा सूचियां जारी होंगी और कब्रिस्तानों में जमीन नहीं बचेगी। आज भारत के 26 करोड़ परिवारों में से कोई भी स्वयं को सुरक्षित नहीं समझ रहा है और सरकारें आक्सीजन के लिए न्यायालयों की शरण में जा रही हैं। सवाल यह पैदा होता है कि किसी भी राज्य सरकार को आक्सीजन के लिए गुहार क्यों लगानी पड़े जबकि देश में इसका उत्पादन जरूरत से अधिक मात्रा में होता है? हमने पिछली सदी का महामारी कानून तो लागू कर दिया मगर इसकी विभीषिका से अनजान रहे।
2005 का आपदा का प्रबन्धन कानून भी लागू कर दिया मगर आपदा से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई कारगर प्रबन्धन योजना ही तैयार नहीं की। आक्सीजन की कमी का जब शोर मचा तो हम एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में लग गये। अतः सर्वोच्च न्यायालय को यह आदेश देना पड़ा कि 'कोरोना प्रतिरक्षा दल' का तुरन्त गठन किया जाये। यदि दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल 'लेनसेट' आज यह चेतावनी दे रहा कि आगामी 1 अगस्त तक भारत में कोरोना संकट के चलते दस लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो सकती है तो हमें स्वयं से ही पूछना होगा कि आखिर हमारे प्रयासों में कहां और किस स्तर पर कमी है। अभी तक दो लाख से ऊपर लोग तो मर ही चुके हैं। आज हालत यह है कि पूरे देश में 50 हजार लोग कोरोना के चलते सघन चिकित्सा केन्द्रों में पड़े हुए हैं जबकि साढे़ 14 हजार से अधिक वेंटिलेटर पर हैं। इसके साथ एक लाख 37 हजार लोग आक्सीजन के सहारे जिन्दा हैं। यह सब कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप है जबकि पिछली पहली लहर के दौरान जब संक्रमण अपने पूरे आक्रमण पर था तो पूरे देश में सितम्बर महीने में केवल 23 हजार लोग ही सघन चिकित्सा केन्द्र में थे और चार हजार के लगभग वेंटिलेटर पर और 40 हजार आक्सीजन के सहारे सांस ले रहे थे।
बेशक कोरोना की दूसरी लहर किसी तूफान की तरह आयी है मगर इसकी आहट तो हमने विगत फरवरी महीने में महाराष्ट्र में ही सुन ली थी। यह सब बयान करता है कि हम वैज्ञानिक सोच से हट कर कोरोना प्रबन्धन को किसी आपदा के निपट जाने के रूप में लेने लगे जबकि ब्रिटेन में इसकी दूसरी लहर ने पूरी दुनिया को चेतावनी दे दी थी। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार बीच में पड़ कर कोरोना प्रतिरक्षा दल के गठन की सिफारिश की है वह भारत की वर्तमान सरकारी व्यवस्था को एक निश्चित दिशा देगी और तय करेगी कि आने वाले अगले छह महीनों तक हम उसी प्रकार सजग और सचेत रहें जिस प्रकार सीमा पर कोई सैनिक रात-दिन चौकन्ना रह कर देश की सीमाओं की सुरक्षा करता है। यह कार्य दल अगले छह महीनों तक काम करेगा।


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