सम्पादकीय

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से शरणार्थियों का संकट पैदा होने की आशंका

Gulabi
7 March 2022 1:34 PM GMT
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से शरणार्थियों का संकट पैदा होने की आशंका
x
शरणार्थियों का संकट
प्रमोद भार्गव। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (एनएचसीआर) के ताजा आंकड़ों के अनुसार हवाई एवं मिसाइल हमलों से बचने के लिए 15 लाख से ज्यादा नागरिक यूक्रेन से पलायन कर चुके हैं। देश छोडऩे वाले लोगों का यह आंकड़ा यूक्रेन की कुल आबादी के तीन प्रतिशत से अधिक है। ये लोग रोमानिया, पोलैंड, मोल्डोवा, स्लोवाकिया, हंगरी और बेलारूस में शरण ले रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा लगभग सात लाख लोग पोलैंड की शरण में हैं। कुछ लोग निकटवर्ती रूस के सीमा क्षेत्र में भी चले गए हैं। सबसे कम शरणार्थी बेलारूस पहुंच रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बेलारूस रूस का सहयोगी देश है। भारत समेत अनेक देशों के जो नागरिक रोजगार या शिक्षा के लिए यूक्रेन गए थे, वे भी लौट रहे हैं। भारत ने युद्धस्तर पर अभियान चलाकर 20 हजार से अधिक भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने में कामयाबी हासिल की है। युद्ध समाप्ति के बाद इन लोगों की आगे की राह मुश्किल दिख रही है, क्योंकि जिस तरह से यूक्रेन को बर्बाद किया जा रहा है, उसके चलते नहीं लगता कि इस देश में जल्द ही सभी व्यवस्थाएं पटरी पर आ सकती हैं।
इस बीच एनएचसीआर ने आशंका जताई है कि यदि हालात और बिगड़ते हैं तो 40 लाख से भी ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों को पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। युद्ध शरणार्थियों का इससे पहले 2011 में सीरिया में छिड़े गृहयुद्ध के चलते बड़ी संख्या में पलायन शुरू हुआ था, जो 2018 तक जारी रहा। इस दौर में अमेरिका ने अपने मित्र देशों ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर सीरिया पर मिसाइल हमला किया था। सीरिया में मौजूद रासायनिक हथियारों के भंडारों को नष्ट करने के उद्देश्य से अमेरिका ने ऐसा किया था। इसमें रासायनिक हथियारों के भंडार और वैज्ञानिक शोध केंद्रों को निशाना बनाया गया था। इन हमलों में कितनी जनहानि हुई थी, यह तो आज तक नहीं पता चल सका है, लेकिन सीरिया ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून और अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया था। वहीं रूस, चीन और ईरान ने कड़ा विरोध जताया। इनका कहना था कि पहले रासायनिक हथियार रखने और उनका इस्तेमाल किए जाने से संबंधित तथ्यों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए थी? अमेरिका ने ईराक पर भी जैविक एवं रासायनिक हथियारों की उपलब्धता संबंधी आशंका के चलते हमला बोला था।
ये शरणार्थी जिन देशों में रह रहे हैं, उनमें भी अपनी इस्लामिक कट्टरता के चलते संकट का सबब बने हुए हैं। जर्मनी ने सबसे ज्यादा विस्थापितों को शरण दी थी। अब यही जर्मनी इनके धार्मिक कट्टर उन्माद के चलते रोजाना नई-नई परेशानियों से रूबरू हो रहा है। दरअसल सात अप्रैल 2018 को 70 नागरिकों की रासायनिक हमले से मौत के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जवाबी कार्रवाई करने का बीड़ा उठाया था। अपनी सनक के चलते उन्होंने इसे अंजाम तक पहुंचा दिया था। इस मामले में तब रूस के एक प्रमुख नेता ने यह कहा भी था कि यह कार्रवाई अमेरिका की ओर से जबरन हस्तक्षेप के रूप में है। परंतु आज यूक्रेन के मामले में रूस जिस प्रकार से कार्रवाई कर रहा है, उसे भी अमेरिका का समर्थन नहीं प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार दो दशक पहले की तुलना में विस्थापन का संकट दोगुना बढ़ गया है। वर्ष 2019 तक आंतरिक रूप से विस्थापितों की संख्या 4.13 करोड़ थी। इनमें से 1.36 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें 2018 में ही विस्थापन का दंश झेलना पड़ा था।
यह सही है कि विकसित या पूंजीपति देश अपने वर्चस्व के लिए युद्ध के हालात पैदा करते हैं, जैसा कि हम यूक्रेन के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका और रूस के वर्चस्व की लड़ाई देख रहे हैं। ये वही देश हैं, जिन्होंने 1993 तक तीसरी परमाणु शक्ति रहे देश यूक्रेन को 1994 में बुडापेस्ट परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कराकर उसके सभी परमाणु हथियार समुद्र में नष्ट करा दिए थे। अमेरिका और ब्रिटेन ने यूक्रेन को इस समझौते के लिए राजी किया था और इन्हीं देशों के साथ रूस ने भी सहमति जताते हुए यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी ली थी। लेकिन अब रूस ने सीधा यूक्रेन पर हमला बोल दिया और अमेरिका व ब्रिटेन दूर खड़े रहकर न केवल तमाशा देख रहे हैं, बल्कि उसे उकसाकर पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंचाने का काम भी कर रहे हैं। यदि यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियार नष्ट न किए होते तो उसे शायद युद्ध से पैदा होने वाली इस बर्बादी का सामना न करना पड़ता और न ही उसके 15 लाख से भी ज्यादा नागरिकों को विस्थापन का संकट झेलने को मजबूर होना पड़ता।
यही वे अमीर देश हैं, जो सबसे ज्यादा युद्ध व पर्यावरण शरणार्थियों को शरण देते हंैं। वर्ष 2015 में सीरिया में जो हिंसा भड़की थी, उससे बचने के लिए लाखों लोगों ने जान जोखिम में डालकर भूमध्य सागर को महिलाओं व बच्चों के साथ पार किया और ग्रीस एवं इटली में शरण ली थी। इन दोनों देशों ने तब कहा था कि समय के मारे शरणार्थियों को आश्रय देने की नीति बनाना आवश्यक है। वेनेजुएला में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के चलते 40 लाख से ज्यादा लोगों ने पलायन किया है। इनमें से बमुश्किल पांच लाख लोगों को ही औपचारिक रूप से शरणार्थी होने का दर्जा प्राप्त है।
युद्ध एवं गृहयुद्ध के हालात के चलते सबसे ज्यादा सीरिया के 67 लाख, अफगानिस्तान के 27 लाख, दक्षिण सूडान के 23 लाख, म्यांमार के 11 लाख और सोमालिया के नौ लाख लोग शरणार्थियों के रूप में विभिन्न विकसित देशों के सीमांत इलाकों में शरण लिए हुए हैं। भारत में बांग्लादेश और म्यांमार के गृहयुद्ध से पलायन करके करीब चार करोड़ लोग घुसपैठ करते हुए यहां रह रहे हैं। भारत इनकी धार्मिक कट्टरता का संकट भी झेल रहा है। स्थानीय संपदा पर वर्चस्व जमाने के चलते मूल भारतीय नागरिक और इनके बीच खूनी संघर्ष भी देखने में आते हैं।
यदि अपने ही देश की बात करें तो यहां कश्मीर में आतंकवाद के चलते पिछले तीन दशकों में पांच लाख हिंदू विस्थापित हुए हैं। विडंबना यह कि एक लंबा अरसा बीतने के बावजूद इनका पुनर्वास नहीं हो पाया है। तय है, रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त होने के बाद यूक्रेन को भी भीतरी और बाहरी विस्थापित शरणार्थियों की समस्या का सामना करना पड़ेगा।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
Next Story