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सम्पादकीय
झारखंड में कांग्रेस पार्टी सरकार में जरुर है, लेकिन इसमें कोई दम नहीं है
Gulabi Jagat
31 March 2022 1:34 PM GMT
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कांग्रेस पार्टी में नेता महा डरपोक और स्वार्थी-मतलबी भरे पड़े हुए हैं
Laxmi Narayan Munda
कांग्रेस पार्टी में नेता महा डरपोक और स्वार्थी-मतलबी भरे पड़े हुए हैं, या फिर अंदर ही अंदर अपने पार्टी के नेताओं से जलन ईर्ष्या भाव रखते हैं. ऐसा एक बार नहीं कई बार देखा गया है. इससे बंधु तिर्की के मामले में बखूबी समझा जा सकता है. केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के षड्यंत्र के तहत कोर्ट द्वारा बंधु तिर्की को महज छः लाख अठाईस हजार छः सौ अंठानब्बे रुपये आय से अधिक मामले में जब तीन साल जेल और तीन लाख रुपये जुर्माना का फैसला सुनाया गया. तब पार्टी के सभी नेता इस मामले में चुप्पी साध लिए है. वहीं दूसरी ओर यही सीबीआई कोर्ट ने इससे बड़े-बड़े आरोपियों को या तो कम सजा दी है या बरी कर दी है. इस मामले में कांग्रेस पार्टी का कोई प्रतिक्रिया नहीं आना एक कमजोर आत्मबल हीन पार्टी का परिचय है.
कांग्रेस के नेताओं ने छोड़ा बंधु का साथ
बंधु तिर्की के सजा होने के बाद ऐसी स्थिति बनी कि खुद बंधु ने मीडिया के सामने आकर सही-ग़लत रखना पड़ा. कांग्रेस के सभी पदाधिकारी, नेता, विधायक और मंत्रियों ने भी अपने जुबान में ताला लगा लिया और शांत होकर बैठ गये.
बंधु तिर्की के सदस्यता जाने पर कौन लोग हो रहे खुश
हालांकि यह भी सच है कि बंधु तिर्की की विधायिकी जाने से कई लोग अंदर ही अंदर खुश हो रहे हैं. इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. भाजपा-आजसू पार्टी के अलावा कांग्रेस पार्टी का एक खेमा भी काफी खुश हैं. वहीं इस बात से इंकार नही किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मन ही मन खुश होंगे. क्योंकि उनको पता है बंधु तिर्की ने जमीनी संघर्षों के बल पर अपनी पहचान स्थापित किया है .जबकि हेमंत सोरेन गुरुजी शिबू सोरेन के पुत्र हैं यही उनकी असली पहचान है. हेमंत सोरेन की अनुकंपा के तहत राजनीति में इंट्री हुई हैं. भले वह आज मुख्यमंत्री हैं. पर एक जमीनी संघर्षशील राजनेता नही हैं. इस तरह देखा जाये तो तुलनात्मक रुप से बंधु तिर्की के सामने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राजनीति तौर पर ज्यादा नहीं होंगे. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मालूम है कि जमीनी संघर्ष से राजनीति में आने वाले बंधु तिर्की ही प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं. देश/राज्य की राजनीति में ऐसा अकसर होता आया है. वर्तमान परिस्थिती में यह भी कहना उचित होगा कि इन सब के बावजूद आम जनमानस, आदिवासी-मूलवासी जनता के नेता बंधु तिर्की ही रहेंगे. झारखंड की जनता सीबीआई के षड्यंत्र को समझ रही है , आदिवासी मूलवासियों के अधिकारों को लेकर किये गये आंदोलनों में बंधु तिर्की मुखर रहे है. वहीं उनके विधानसभा क्षेत्र में बंधु तिर्की के सजा सुनाये जाने के बाद सौकड़ों धरो में चूल्हा नहीं जला.
डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं.
Gulabi Jagat
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