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जापान में ओलिंपिक खेल, अपने तय कार्यक्रम के अनुरूप प्रारंभ होने जा रहे हैं
जापान में ओलिंपिक खेल, अपने तय कार्यक्रम के अनुरूप प्रारंभ होने जा रहे हैं। उद्घाटन समारोह सादगी से होगा। भाग लेने वाले देशों की संख्या 206 है और हर देश से पांच खिलाड़ी उद्घाटन परेड में भाग ले सकेंगे। जापान में आम आदमी ओलिंपिक निरस्त कराना चाहता था, परंतु खेल जारी रखने की परंपरा के निर्वाह के लिए खेला होगा। गौरतलब है कि खिलाड़ियों के रहने के लिए बनाए गए स्थान पर खिलाड़ियों को कोविड हो जाने के कारण इसे रद्द करने की मांग की जा रही थी।
मनुष्य के द्वारा हर हाल में जीना ही चाहिए के महान आदर्श के कारण ओलिंपिक खेल जारी रखने का निर्णय किया गया है। उत्सव में भाग लेने वालों के लिए भोजन की व्यवस्था महीनों से की जा रही है। पाक कला में प्रवीण लोग पूरी तरह से तैयार हैं। खाली कुर्सियों और खाली-खाली घेरे में खेला होबे।
खेलों से प्रेरित फिल्में भी बनी हैं। 'व्हील्स ऑफ फायर' 'चक दे इंडिया' 'गोल्ड' और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत 'मैरी कॉम' यादगार फिल्में मानी जाती हैं। हिटलर के दौर में वृत्त चित्र बनाने में प्रवीण, लेनी रेफेन्स्थाल का वृत्तचित्र 'ओलिंपिया' भी बना है। खेल के दौरान लगी चोट के इलाज में प्रवीण डॉक्टर और फिजियोथेरेपिस्ट और रिकॉर्डिंग के लिए कैमरे व तकनीशियन भी पूरी तरह तैयार हैं। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में ओलिंपिक आयोजन के द्वारा बाजार को गर्म बनाए रखने का काम कुछ हद तक अपने अंजाम पर पहुंच सकता है।
अंग्रेजों द्वारा शासित भारत ने हॉकी के जादूगर ध्यानचंद और उनके भाई रूप चंद के सहयोग से लगातार ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीते थे। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत द्वारा मेडल जीतने के सफल प्रयास पर अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'गोल्ड' बनाई गई। इंदौर के निकट महू का एक खिलाड़ी लक्ष्मण अत्यंत सफल गोलकीपर रहा। महू को बाबा अंबेडकर के लिए भी याद किया जाता है।
विश्व युद्ध के समय अंग्रेजों ने मिलिट्री हेड क्वार्टर इस स्थान पर बनाया था। महू का नामकरण इस तरह हुआ है। हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा के पहले भाग 'क्या याद रखूं क्या भूल जाऊं' में भी महू का जिक्र किया गया है। खेलकूद पर बनी फिल्मों में आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान की 'लगान' भी यादगार फिल्म मानी जाती हैं।
आमिर खान अभिनीत 'दंगल' भी टेलीविजन पर बार-बार प्रसारित की जाती है। अनुष्का शर्मा और सलमान खान अभिनीत फिल्म 'सुल्तान' भी बहुत लोकप्रिय रही।अपनी श्रेष्ठता के भरम के प्रदर्शन के लिए लड़े जाने वाले युद्ध में खून बहाया जाता है। इसी के पर्याय के रूप में ओलिंपिक गेम्स का आयोजन किया गया।
विजय पाने वाले देश का ध्वज विदेश के आकाश में लहराता है। इस तरह युद्ध का हिंसा रहित स्वरूप खेल कूद रहे हैं। ध्यानचंद के खेल से मुग्ध स्टेडियम में मौजूद अंग्रेज भी ताली बजाते थे और जर्मन लोग भी किसी तरह अपनी प्रसन्नता जाहिर करते थे।
जिस समय 'हू तू तू' और 'खो-खो' ओलिंपिक में शामिल किए जाएंगे, भारत को दो गोल्ड मेडल अवश्य प्राप्त होंगे कुछ और भी क्षेत्र हैं, जिनमें भारत महान और श्रेष्ठ है परंतु वे ओलिंपिक में अभी शामिल नहीं किए गए हैं। लंबे समय पूर्व चीन और जापान के बीच भी युद्ध हुआ। भारत के डॉक्टर कोटनीस ने चीन के घायलों की सेवा करते हुए अपने प्राण दे दिए थे।
शांताराम जी ने सत्य से प्रेरित फिल्म, डॉक्टर कोटनीस की अमर कथा बनाई थी। इस फिल्म के अंतिम भाग में डॉक्टर कोटनीस की चीन में जन्मी पली हुई महिला अपने ससुराल आती है। वह तांगे पर सवार है और डॉक्टर कोटनीस की आवाज उसके अवचेतन में घूमती है कि 'बायीं ओर वह स्कूल दिखेगा, जहां उन्होंने पढ़ाई की। जब तांगा घर पहुंचेगा, तो मेरी मां तुम्हारी आरती उतारेगी।' फिल्मकार शांताराम का बायोपिक भी बनाया जा सकता है।
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