सम्पादकीय

हमारे सामने बदलता जलवायु

Triveni
26 July 2021 4:41 AM GMT
हमारे सामने बदलता जलवायु
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हाल की घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन की समस्या को दुनिया की चिंता के केंद्र में ला लिया है।

हाल की घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन की समस्या को दुनिया की चिंता के केंद्र में ला लिया है। जर्मनी ने याद इतिहास में कभी वैसी बाढ़ नहीं देखी थी, जैसी हाल में वहां देखी गई। उधर कनाडा में गर्म हवाओं से 500 लोगों की मौत, अमेजन के जंगल के कार्बन उत्सर्जन का स्रोत बन जाने, यूरोप के आल्प्स में 1000 से अधिक झीलें बनने, हिमालय के जंगलों में आग आदि भी ऐसी घटनाएं रही हैं, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन को हम सबके सामने हो रही परिघटना के रूप में चित्रित किया है। पिछले एक महीने में एक के बाद एक लगातार आती इन सुर्खियों ने एक बार फिर मौसम के बिगड़ैल मिजाज और पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते विनाशकारी प्रभावों पर मुहर लगा दी है। कनाडा जैसे ठंडे इलाके और अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में तापमान का 50 डिग्री तक पहुंच जाना ए स्पष्ट संदेश है कि क्लाइमेट चेंज हो रहा है और आने वाले दिनों में हालात अधिक बिगड़ेंगे।

दरअसल, यूरोप में भी हीट वेव का साफ असर दिखा है। उधर बीते हफ्ते प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला कि यूरोप के आल्प्स पर्वतों पर ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और इस कारण वहां आज करीब 1000 झीलें बन गई हैं। जलीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर काम करने वाले स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट की इस रिसर्च में बताया गया कि आल्प्स पर साल 1850 के बाद से ही झीलों की संख्या बढ़ने का सिलसिला चल रहा है। अब सालाना 18 झीलें बढ़ रही हैं और इनके कुल क्षेत्रफल में डेढ़ लाख वर्ग मीटर की बढ़ोतरी हो रही है। खतरा दुनिया के दूसरे हिस्सों में स्थित पर्वत शृंखलाओं पर भी है। मिसाल के तौर पर एशिया के हिन्दुकुश-हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में रिसर्च करने वाली संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने अपनी ताजा रिसर्च में कहा है कि साल 2100 तक हिन्दुकुश-हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर अपनी दो-तिहाई बर्फ खो देंगे जिससे पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में गंभीर जल और खाद्य संकट हो सकता है, जिससे 200 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। तो खतरा साफ है। लेकिन उसका मुकाबला करने के लिए कहीं दुनिया तैयार हो रही है, इसके संकेत नहीं मिलते। जब कभी कोई योजना आती है, उसके साथ ही कंपनियों और धनी देशों के स्वार्थ खड़े हो जाते हैं। नतीजा है कि हर साल बात खूब होती है, काम कुछ होता नहीं और हालात और बिगड़ जाते हैँ।


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