सम्पादकीय

चीन से व्यापार घाटे की चुनौती

Subhi
21 Feb 2022 3:25 AM GMT
चीन से व्यापार घाटे की चुनौती
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स्थानीय बाजारों में चीनी उत्पादों को टक्कर देने और चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना जरूरी है।

जयंतीलाल भंडारी: स्थानीय बाजारों में चीनी उत्पादों को टक्कर देने और चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना जरूरी है। हम देश में मेक इन इंडिया अभियान को आगे बढ़ा कर स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बना सकते हैं। इसके लिए सरकार को सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू करना होगा।

इस महीने के शुरू में बेजिंग शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार के बाद भारत-चीन संबंधों पर कई रिपोर्टें आई हैं। इनमें इस बात पर हैरानी जताई गई है कि दोनों देशों के बीच पिछले दो साल से चल रहे तनाव के बावजूद भारत में चीन से रिकार्ड आयात हुआ है। यदि हम भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार के ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो पाते हैं कि जनवरी से नवंबर-2021 के बीच दोनों देशों में कुल आठ लाख सत्तावन हजार करोड़ रुपए का रिकार्ड कारोबार हुआ, जो पिछले साल के मुकाबले 46.4 फीसद ज्यादा है।

इन ग्यारह महीनों में भारत ने चीन से छह लाख उनसठ हजार करोड़ रुपए का सामान खरीदा है। यह पिछली अवधि यानी वर्ष 2020 के मुकाबले उनचास फीसद ज्यादा है। वहीं चीन को भारत ने एक लाख अनठानवे हजार करोड़ रुपए मूल्य का सामान निर्यात किया है, जो पूववर्ती वर्ष की तुलना में साढ़े अड़तीस फीसद ज्यादा है। इन ग्यारह महीनों में चीन से व्यापार घाटा भी रिकार्ड स्तर यानी चार लाख इकसठ हजार करोड़ रुपए की ऊंचाई पर पहुंच गया।

यदि हम पिछले चार वर्षों के जनवरी से नवंबर तक की अवधि के दौरान भारत-चीन व्यापार के आंकड़ों को देखें, तो पता चलता है कि वर्ष 2017 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा चार लाख पैंतालीस हजार करोड़ रुपए था। वर्ष 2018 में घट कर यह चार लाख तीस हजार करोड़ रुपए, वर्ष 2019 में घट कर तीन लाख तिरासी हजार करोड़ रुपए और वर्ष 2020 में घट कर तीन लाख तीस हजार करोड़ रुपए रह गया। लेकिन 2021 में यह घाटा सर्वोच्च ऊंचाई पर पहुंच गया। वर्ष 2021 में चीन से भारत के आयात में हुई वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा चिकित्सा उपकरणों और दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का भी है।

इस समय चीन से तेजी से आयात बढ़ना इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि केंद्र सरकार ने काफी समय से आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने में लगी है। चीन को आर्थिक चुनौती देने के लिए सरकार ने टिकटाक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी वस्तुओं पर शुल्क में वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति जैसे विभिन्न कदम उठाए हैं। वर्ष 2020 में चीन से तनाव के कारण देशभर में चीनी सामान का जोरदार बहिष्कार दिखाई दिया था।

'मेड इन इंडिया' का बोलबाला था। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवदुर्गा, दशहरा और दीपावली जैसे त्योहारों पर बाजार में भारतीय उत्पादों की बहुतायत थी और चीनी सामान बाजार में बहुत कम दिखाई देने लगे थे। भारत में चीन से होने वाले आयात में बड़ी गिरावट आने लगी थी। व्यापार घाटे में तेजी से कमी आने लगी थी। इससे चिंतित होकर चीन ने कई बार अपनी बौखलाहट भी जाहिर की थी।

इसमें कोई दो मत नहीं कि हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ कर चीन से बढ़ते आयात और बढ़ते व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं। भारत में दवा उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग, बिजली सामान और उपकरण निर्माण उद्योग अभी भी बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर निर्भर हैं। हालांकि चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले एक-डेढ़ वर्ष में सरकार ने पीएलआइ (प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेटिव) स्कीम के तहत तेरह उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं। देश के कई उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में कामयाब भी हुए हैं। अब इन क्षेत्रों में अतिरिक्त निवेश की मांग पूरी होती हुई दिखाई दी है।

आगामी वित्त वर्ष (2022-23) के बजट में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) संबंधी नई अवधारणा के प्रावधानों को लागू कर सेज में उपलब्ध संसाधनों के भरपूर उपयोग से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण किया जा सकेगा। इससे चीन को निर्यात बढ़ा कर आयात भी कम करने में मदद मिलेगी। वस्तुत: अब सेज की नई अवधारणा के तहत सरकार अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाएं देगी। सेज में खाली जमीन और निर्माण क्षेत्र का इस्तेमाल निर्यात के लिए भी हो सकेगा। सेज में पूर्णकालिक पोर्टल के माध्यम से सीमा शुल्क संबंधी मंजूरी की सुविधा होगी और विनिर्माण के लिए जरूरी सभी प्रकार के मंजूरियां भी वहीं दे दी जाएंगी। इस प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल किया जाएगा।

इसका बड़ा लाभ यह होगा कि ढांचागत सुविधाएं बढ़ेंगी, खासकर से आपूर्ति शृंखला की सुविधा बढ़ने से उत्पादन लागत कम होगी और भारतीय वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसानी से मुकाबला कर सकेंगीं। रेल, सड़क, बंदरगाह जैसी सुविधाओं के बड़े नेटवर्क से भारतीय लागत वैश्विक स्तर की हो जाएगी और भारत को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। सेज के तहत देशी-विदेशी निवेश को आकर्षित करने के मद्देनजर देशी-विदेशी निवेश के साथ नए उपक्रमों की स्थापना को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

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