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- पराली प्रबंधन की...
खेतों में फसलों के अवशेष यानी पराली को जलाने से रोकने के लिए केंद्र सरकार का सक्रिय होना समय की मांग है, क्योंकि इस माह के आखिर तक उसे जलाए जाने का सिलसिला कायम हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण का गंभीर रूप लेना तय है। वैसे तो केंद्र सरकार हर साल इसके लिए जतन करती है कि राज्य सरकारें और खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारें किसानों को पराली जलाने से रोकें, लेकिन वे ऐसा मुश्किल से ही कर पाती हैं। यह तब है जब बीते कई सालों से राज्य सरकारों को इसके लिए कहा जा रहा है कि वे ऐसे प्रबंध करें, जिससे किसान अपने खेतों में पराली न जलाएं। जिस तरह राज्य सरकारें पराली प्रबंधन में नाकाम हैं, उसी तरह किसान भी फसलों के अवशेष जलाए जाने से होने वाले नुकसान से परिचित होने के बावजूद उसे जलाना ही बेहतर समझते हैं। पहले यह समस्या पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित थी, लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों में भी फसलों और खासकर धान के अवशेष जलाए जाने का सिलसिला कायम हो गया है। इसका एक कारण फसलों के अवशेष की उपयोगिता न रह जाना और दूसरा, उसके निस्तारण की कोई ठोस व्यवस्था न हो पाना है। यदि फसलों के अवशेष के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं की जाती तो उसे जलाए जाने से रोकना मुश्किल ही होगा।