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हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रकाशित द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड रिपोर्ट-2022 के अनुसार जहां दुनिया में भूख की चुनौती लगातार बढ़ रही है
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रकाशित द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड रिपोर्ट-2022 के अनुसार जहां दुनिया में भूख की चुनौती लगातार बढ़ रही है. वहीं भारत में भूख की चुनौती में लगातार कमी आ रही है। वर्ष 2019 में दुनिया में 61.8 करोड़ लोगों को पर्याप्त पोषण युक्त भोजन न मिलने के साथ-साथ भूख का सामना करना पड़ा था, वहीं यह संख्या वर्ष 2021 में तेजी से बढक़र 76.8 करोड़ हो गई। एक ओर जहां दुनिया में भुखमरी पिछले 15 साल से लगातार बढ़ रही है और इसकी रफ्तार पिछले दो साल में तेज हुई है, वहीं दूसरी ओर भारत में पिछले 15 साल में भूख से जंग के मोर्चे पर थोड़ा सुधार हुआ है और कोरोनाकाल में इसकी रफ्तार नियंत्रित रही है। रिपोर्ट बताती है कि 2004 में भारत की 24 करोड़ आबादी कुपोषित थी, यह संख्या घटते हुए 2021 में 22.4 करोड़ पर पहुंच गई है। गौरतलब है कि 18 जुलाई को वल्र्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के कार्यकारी निदेशक श्री डेविड बस्ली और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बीच नई दिल्ली में आयोजित बैठक में डेविड ने कृषि एवं खाद्य क्षेत्र में भारत के कामकाज की खुलकर सराहना करते हुए कहा कि भारत ने दुनिया में खाद्यान्न की सुचारू आपूर्ति करके जरूरतमंद देशों में भूख की चुनौती को कम किया है। कृषि मंत्री तोमर ने किसानों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से हम कोरोना महामारी के संकटकाल से लगातार अब तक भारत के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज वितरित करके जहां उनकी खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं, वहीं भारत दुनिया के जरूरतमंद अनेक देशों को भी खाद्यान्न उपलब्ध करा रहा है। वास्तव में इस समय वैश्विक भूख संकट दुनिया के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गया है।
दुनिया के 45 देशों में करीब पांच करोड़ लोग अकाल के कगार पर हैं। ऐसे में वैश्विक भूख संकट को कम करने में भारत की भूमिका अहम हो गई है। दुनिया में भुखमरी तेजी से फैलने की बड़ी वजह जहां पिछले वर्षों में लगातार बढ़ता हुआ जलवायु संकट है, वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध से निर्मित खाद्यान्न की भारी कमी भी कारण है। भूख की चुनौती के पीछे भोजन की बड़ी बर्बादी भी एक अहम कारण है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) के अनुसार दुनिया में उत्पादित लगभग एक-तिहाई से अधिक भोजन हर साल बर्बाद होता है। इस समय 23 देशों के द्वारा खाद्यान्न निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण दुनिया में वर्ष 2008-09 के खाद्यान्न संकट जैसा चिंताजनक परिदृश्य निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है। ऐसे में अब वैश्विक भुखमरी की समस्या और बढ़ेगी। नि:संदेह बढ़ते वैश्विक भूख संकट के दौर में भारत में भूख की चुनौती में जो कुछ कमी दिखाई दे रही है, उसके लिए भारत की तीन अनुकूलताएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। एक, गरीबों के सशक्तिकरण की कल्याणकारी योजनाएं और गरीबी में कमी आना। दो, कृषि क्षेत्र में सुधार तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना और तीन, भूख और कुपोषण दूर करने की प्रभावी योजनाएं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जैसे-जैसे गरीबी की दर में कमी आती है, वैसे-वैसे भुखमरी में भी कमी आती है। वस्तुत: भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबों के कल्याण और विकास का नया अध्याय लिखा गया है।
विगत 5 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में डिजिटल इंडिया वीक-2022 का शुभारंभ करते हुए कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा गरीबों, किसानों और कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों के बैंक खातों में डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर (डीबीटी) से 23 लाख करोड़ रुपए सीधे जमा कराए गए हैं। 52 मंत्रालयों की ओर से संचालित 300 सरकारी योजनाओं के लाभ डीबीटी से लाभार्थियों तक पहुंचने से गरीबों का सशक्तिकरण हो रहा है। भारत में भूख के मोर्चे पर दिखाई दे रहे कुछ सुधार के पीछे पिछले 7-8 वर्षों में कृषि विकास का बढऩा महत्त्वपूर्ण कारण है। कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी पिछले तीन वर्षों में कृषि ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसमें विकास दर नहीं घटी है। इसमें कोई दो मत नहीं कि जिस तरह देश में केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा कृषि के विकास और किसानों को सामथ्र्यवान बनाने के लिए लगातार जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनसे खाद्यान्न उत्पादन बढऩे का ग्राफ ऊंचाई प्राप्त कर रहा है। कृषि मंत्रालय के द्वारा प्रस्तुत चालू फसल वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.45 करोड़ टन होगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है और इससे देश के आम आदमी के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति बढऩे से भूख की चिंताएं बहुत कुछ नियंत्रित रहेंगी।
यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि देश में भूख और कुपोषण दूर करने के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। निश्चित रूप से देश को भुखमरी की चुनौती से बचाने के लिए अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। गरीबों का और अधिक सशक्तिकरण जरूरी है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के अधिक प्रयास जरूरी हैं? चूंकि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में उत्पादित लगभग 40 फीसदी भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है, जिसकी कीमत करीब 92000 करोड़ रुपए है। ऐसे में देश में भोजन की बर्बादी को बचाना होगा।
देश में कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए इस क्षेत्र की ओर कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीआरआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर भी बड़ी संख्या में लोगों को कुपोषण और भूख की पीड़ाओं से राहत दी जानी होगी। हम उम्मीद करें कि संयुक्त राष्ट्र की दि स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन दि वल्र्ड रिपोर्ट 2022 के मद्देनजर केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा देश के करोड़ों लोगों को भूख की चुनौती से बाहर लाने के लिए रणनीतिक कदम आगे बढ़ाए जाएंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार के द्वारा सामुदायिक रसोई की व्यवस्था को मजबूत बनाकर उन जरूरतमंदों के लिए भोजन की कारगर व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी, जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ नहीं मिल जा रहा है। साथ ही एक ओर देश में बहुआयामी गरीबी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर व सफल बनाया जाएगा। वहीं दूसरी ओर भारत के द्वारा अधिक कृषि उत्पादन और अधिक कृषि निर्यात से दुनिया के भुखमरी से प्रभावित करोड़ों लोगों की भूख की पीड़ाओं को कम करने में अहम भूमिका निभाई जाएगी।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal
Rani Sahu
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