सम्पादकीय

बहुआयामी गरीबी की चुनौती

Rani Sahu
5 Dec 2021 7:06 PM GMT
बहुआयामी गरीबी की चुनौती
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इन दिनों देशभर में बहुआयामी गरीबी की चुनौती से संबंधित नीति आयोग की 26 नवंबर को प्रकाशित रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है

इन दिनों देशभर में बहुआयामी गरीबी की चुनौती से संबंधित नीति आयोग की 26 नवंबर को प्रकाशित रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। इस बहुआयामी गरीबी सूचकांक (मल्टीडायमेंशनल पोअर्टी इंडेक्स या एमपीआई) में यह तथ्य सामने आया है कि देश में बहुआयामी गरीबी सबसे बड़ी आर्थिक-सामाजिक चुनौती बन गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश देश के सर्वाधिक गरीब आबादी वाले राज्य हैं। इस सूचकांक के अनुसार जहां बिहार में 51.91 प्रतिशत, झारखंड में 42.16 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 36.65 प्रतिशत और मेघालय में 32.67 प्रतिशत आबादी गरीब है। इस सूचकांक के तहत केरल में 0.71 प्रतिशत, गोवा में 3.76 प्रतिशत, तमिलनाडु में 4.89 प्रतिशत और पंजाब में 5.59 प्रतिशत जनसंख्या गरीब पाई गई है। इस रिपोर्ट में बहुआयामी गरीबी के आकलन के लिए वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के चौथे दौर के समंको को आधार बनाया गया है। नीति आयोग के मुताबिक बहुआयामी गरीबी सूचकांक में एनएफएचएस के द्वारा वर्ष 2019-20 में किए गए पांचवें दौर के सर्वे के परिणामों से बड़ा परिवर्तन होगा।

कारण यह है कि एनएफएचएस के चौथे राउंड के बाद देश में प्रधानमंत्री आवास जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत मिशन, सहम बिजली हर घंटे बिजली, उज्ज्वला योजना, जनधन योजना, पोषण अभियान समग्र शिक्षा योजना शुरू की गई है। इनसे सभी राज्यों में गरीबी के स्तर में कमी आने की संभावना है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2014-15 की तुलना में 2019-20 के दौरान रसोई गैस से वंचित लोगों की संख्या 58.5 प्रतिशत से घटकर 41.4 प्रतिशत, स्वच्छता से वंचित आबादी की संख्या 29.8 फीसदी और बिजली से वंचित आबादी का प्रतिशत 12.2 फीसदी से घटकर 3.2 प्रतिशत रह गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोविड-19 ने भारत में गरीबी और भूख की चुनौती को बढ़ाया है। पिछले दशक में देश में जिस तेजी से गरीबी में कमी आ रही थी, उसे अकल्पनीय कोरोना संकट ने बुरी तरह प्रभावित किया है और देश के अधिक जनसंख्या वाले बड़े प्रदेशों में गरीबी का स्तर बढ़ गया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2005-06 में भारत में 51 फीसदी लोग गरीबी में थे। यह प्रतिशत 2015-16 में 27.9 फीसदी रह गया और इसमें लगातार कमी आती जा रही थी। कोरोना के एक साल में देश को गरीबी के मामले में देश को कई वर्षों पीछे धकेल दिया और कोरोना ने करोड़ों लोगों को गरीब बना दिया।
अमरीकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है। रिपोर्ट में प्रतिदिन 2 डॉलर यानी करीब 150 रुपए कमाने वाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जहां सरकार गरीबी, भूख, परिवार कल्याण और स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाते हुए आगे बढ़ रही है। कोविड-19 के बाद इन सभी क्षेत्रों में सरकार ने जो पहल की और जो अभियान चलाए उन्हें हर व्यक्ति अनुभव कर रहा है और दुनिया के विभिन्न वैश्विक संगठनों ने भी इसकी सराहना की है। यदि कोरोनाकाल में सरकार के ऐसे सफल अभियान नहीं होते तो देश में बहुआयामी गरीबी और बढ़ी हुई दिखाई देती। स्थिति यह है कि देश की दो तिहाई आबादी को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में लाया गया है। स्थिति यह है कि अप्रैल 2020 से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना लागू की गई और इससे देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है। यह योजना मार्च 2022 तक के लिए बढ़ाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक जनधन, आधार और मोबाइल (जैम) के कारण गरीब व कमजोर वर्ग के करोड़ों लोग डिजिटल दुनिया से जुड़ कर प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। देश में करीब 43 करोड़ जनधन खातों, 130 करोड़ आधार कार्ड और 118 करोड़ लोगों के पास मोबाइल उपभोक्ता, होने के कारण पिछले वर्ष 2020 में सरकार के द्वारा घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान से 40 करोड़ से अधिक गरीब वर्ग के लोगों तक उनके खातों में सीधी राहत पहुंचाई गई। कोरोनाकाल में दुनिया के किसी देश में ऐसा डिजिटल माध्यम से राहत का काम कहीं नहीं हुआ।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक देश के छोटे किसान सरलतापूर्वक बैंकिंग सुविधाओं का लाभ लेने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। पीएम किसान योजना के अंतर्गत अगस्त 2021 तक 11.37 करोड़ किसानों के बैंक खातों में डीबीटी के जरिये 1.58 लाख करोड़ रुपए जमा किए जा चुके हैं। निश्चित रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बहुआयामी गरीबी को दूर करने में स्वामित्व योजना को एक नई आर्थिक शक्ति बनाया जा सकता है। विगत 6 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के हरदा में आयोजित स्वामित्व योजना के शुभारंभ कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल होते हुए देश के 3000 गांवों के 1.71 लाख ग्रामीणों को जमीनों के अधिकार पत्र सौंपे हैं। इस योजना के सूत्र मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा वर्ष 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते तैयार की गई मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना से आगे बढ़े हुए दिखाई देते हैं। इसके तहत 2 अक्तूबर 2008 को हरदा के दो गांवों में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे ग्रामीण आवास अधिकार पुस्तिका के माध्यम से दोनों गांवों के किसानों व मजदूरों को सौंपे गए थे। इन दोनों गांवों के किसानों व मजदूरों का जोरदार आर्थिक सशक्तिकरण हुआ है। इस अभियान से दोनों गांवों में अनेक लोगों ने अपनी स्वामित्व की जमीन पर बैंकों से सरलतापूर्वक ऋण लेकर छोटे-कुटीर और ग्रामीण उद्योग शुरू किए हैं।
इन गांवों में किसानों की आय बढ़ी है। गरीबी व बेकारी कम हुई है और किसानों की खुशियां बढ़ी हैं। ऐसे में देशभर के गांवों में स्वामित्व योजना के तेजी से लागू होने से किसानों की गैर कृषि आय बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चमकीली स्थिति बनाई जा सकेगी। निश्चित रूप से इस समय देश में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के साथ-साथ उनके जीवनस्तर को ऊपर उठाने की दिशा में अभी लंबा सफर तय करना है। स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि के साथ-साथ गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार के द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं दूसरी ओर कौशल प्रशिक्षण के साथ नए स्किल्स सीखना होंगे। हम उम्मीद करें कि देश में बहुआयामी गरीबी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित नई जनकल्याण योजनाओं, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर व सफल बनाया जाएगा। हम उम्मीद करें कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 के पांचवें दौर के अंतिम परिणामों के आधार पर जब आगामी नया बहुआयामी गरीबी सूचकांक प्रस्तुत होगा, तब उसमें अधिक जनकल्याण और गरीबी में कमी आने का स्पष्ट परिदृश्य दिखाई देगा।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
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