सम्पादकीय

हिंदी को प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती

Triveni
22 Feb 2023 2:19 PM GMT
हिंदी को प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती
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फिजी की नाडी शहर में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन मनाया गया।
फिजी की नाडी शहर में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन मनाया गया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में भी मुझे हिट का अवसर मिला। सम्मेलन में ऐसे कई आरोप दिए गए, जो राजनयिक और भाषाई दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भारतीय विदेश मंत्री डॉ सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा कि विश्व हिंदी सम्मेलन एक महाकुंभ की तरह है। उन्हें उम्मीद है कि यह हिंदी के विषय में एक वैश्विक नेटवर्क का मंच बनेगा और हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि किस तरह से हिंदी वैश्विक भाषा बने।
विदेश मंत्री ने फिजीजी के राष्ट्रपति रातु विलियम कातोनिवेरे से अपनी बातचीत का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्रपति कातोनिवेर ने बताया कि उनकी पसंदीदा फिल्म 'शोले' है और उन्हें 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' गाना हमेशा याद रहेगा। भौतिक विज्ञान के उप प्रधान मंत्री बिमान प्रसाद ने स्थिति को भौतिक विज्ञान के लिए ऐतिहासिक उद्धरण कहा कि प्रधानमंत्री सितवेनी रबुका के नेतृत्व वाली सरकार देश में हिंदी को मजबूत करने के लिए सभी संभव कदम उठा रही है।
फिजीजी में हिंदी को आधिकारिक भाषा का स्तर स्तर है। उन्होंने जानकारी दी कि फिजी में हिंदी भाषा का प्रसार और प्रसार पिछले 140 वर्षों से हो रहा है और हमारे पूर्वज अपने साथ रामायण व गीता के साथ अपनी संस्कृति भी साथ लाये थे। बिमान प्रसाद ने स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा कि पिछले 10-15 वर्षों में हिंदी के प्रचार-प्रसार को कमजोर बनाया गया, लेकिन मौजूदा सरकार ने हिंदी को मजबूत बनाने के लिए ठोस कदम उठाये हैं।
इस सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के कई हिंदी संबंध और लेखकों ने भाग लिया और देश-विदेश में हिंदी के प्रचार, प्रसार व विकास के लिए काम कर रहे हैं 25 आपस में जुड़े हुए कार्यों को सम्मानित किया गया। इस सम्मेलन की खास बात यह थी कि विदेशी प्रतिनिधियों के अलावा अहिंदी राज्यों के हिंदी विद्वान भी मौजूद थे। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार हिंदी दुनिया की 10 आकाशगंगाओं में से एक है। द्विपक्षीय का आगमन समय में भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्व और बढ़ता जा रहा है।
ही साथ, भाषा और संस्कृति की अहमियत भी ज्यादा होगी। फिजेटी जैसी चीजें हिंदी के खास जो कहती हैं, उनसे रूबरू होती है। सबसे बड़ी चुनौती कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में हिंदी को प्रासंगिक रखने की है। हिंदी और अन्य भारतीय आकाशगंगा को कलात्मक फिशियल इंटेलिजेंस को अपनाना होगा, तभी वे प्रासंगिक बनी रह सकती हैं। सबसे अहम बात यह है कि उन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा, अन्यथा उनकी पिछड़ने का खतरा है।
भारत की लगभग 40 प्रजातियों की मातृभाषा है। अंग्रेजी, मंदारिन और स्पैनिश के बाद हिंदी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी भाषा है, पर यह राष्ट्रभाषा नहीं है। यह राजभाषा का स्तर मिला है। राजभाषा वह भाषा होती है, जिसमें सरकारी कामकाज होता है। हम सब जानते हैं कि नैनो की भाषा अंग्रेजी है या यूं कहें कि ल्यूटन दिल्ली की अंग्रेजी है यानी ज्यादातर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही होता है। हिंदी भाषी भी अंग्रेजी में दिखने की पुरजोर कोशिश करते नजर आते हैं।
गुलामी के दौर में अंग्रेजी प्रभु वर्ग की भाषा थी और हिंदी दासों की। यह ग्रंथि आज भी देश में बनी हुई है। कई लोग तर्क देते हैं कि अंग्रेजी ज्ञान-विज्ञान की भाषा मिल जाती है, जबकि रूस, जर्मनी, जापान और चीन जैसे देशों ने यह साबित कर दिया है कि अपनी मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान के अध्ययन में कोई प्रासंगिकता नहीं है। इस सम्मेलन में जापान से आएं 81 वर्षीय हिंदी के विद्वान तामियो मिजोकामी से काफी सुखद था।
वे हर दिन अपने कोट पर भारत सरकार द्वारा दिए गए पद्मश्री का तमागाये मिले। वे जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में 40 साल तक हिंदी पढ़ाते थे और ग्रहण छोड़ देते थे और उसी समय मानद प्रोफेसर के रूप में जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि जब जापानी और जर्मन भाषा में काम करते हुए कई वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार जीत सकते हैं तो हिंदी में काम कर भारतीय वैज्ञानिक ऐसी उपलब्धि क्यों हासिल नहीं कर सकते।
लेकिन खतरनाक बात यह है कि विश्व हिंदी सम्मेलन या अन्य ऐसी घटनाओं में हिंदी के सैकड़ों पर गंभीर विमर्श नजर नहीं आता है। इस सम्मेलन में लेने का भी आलम था। कौन-कौन से सत्र में कौन-कौन भाग ले रहे हैं, इसकी क्या विशेषताएं हैं, इसका सत्र के शुरू होने तक किसी को पता नहीं था। विमर्श का फल क्या निकला, यह नहीं लगता कि इसका किसी को पता चलेगा।
विदेश मंत्रालय और घटना समिति में समन्वय का अभाव था। विदेश मंत्रालय का भले ही हिंदी विभाग हो, उसकी कार्यभाषा अंग्रेजी ही है। मंत्रालय के ज्यादातर निर्देश अंग्रेजी में ही थे। यह स्वीकार कर लेने में कोई हर्ज नहीं है कि कोई भी सरकार आई, नई विधियों को आप नहीं बदल सकते। यह भी कटु सत्य है कि हमारे कथित हिंदी चाहने वालों और सरकारी हिंदी को बड़ा नुकसान होगा।
अगर सरकारी अनुवाद का प्रसार-प्रसार हो जाए, तो हिंदी का टूटना कोई रोक नहीं सकता। आम बोलचाल की हिंदी के स्थान पर आप सरकारी हिंदी का दुराग्रह करेंगे, तो आप हिंदी को ही नुकसान पहुंचाएंगे। मैं इससे भी सहमत हूं कि अगर हिंदी का ऐसा शब्द है, जिससे बात साफ हो जाती है, तो बेवजह अंग्रेजी उपलब्ध का उपयोग करना उचित नहीं है। हिंदी में अद्भुत माधुर्य है. मुहावरे और लोकोक्तियाँ और उसे समृद्ध करते हैं।
ऐसा महसूस होगा कि मौजूदा मोदी सरकार हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर गंभीर है। कुछ समय पहले गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदीभाषियों को संदेश दिया था कि जब तक हम अन्य लोक आकाशगंगा के शब्दों को स्वीकार करके हिंदी को सर्वग्राही नहीं बनाते हैं, तब तक इसका वास्तविक प्रचार-प्रसार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने जानकारी दी थी कि सेंट्रल कैबिनेट का 70 सेंट ड्राफ्ट अब हिंदी में तैयार किया गया है।

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सोर्स: prabhatkhabar

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