सम्पादकीय

रोजगार के अवसर पैदा करने की चुनौती, सरकार ने शीघ्र कदम नहीं उठाए तो बढ़ती ही जाएगी बेरोजगारी

Gulabi
2 Nov 2021 4:44 AM GMT
रोजगार के अवसर पैदा करने की चुनौती, सरकार ने शीघ्र कदम नहीं उठाए तो बढ़ती ही जाएगी बेरोजगारी
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रोजगार के अवसर पैदा करने की चुनौती

भरत झुनझुनवाला। नव इतिहास में कई ऐसे समय आए हैं, जब रोजगार के अवसरों का भारी हनन हुआ है। जैसे कार के आविष्कार से घोड़ागाड़ी का रोजगार समाप्त हो गया अथवा लूम के आविष्कार से हथकरधों का धंधा बंद हो गया, लेकिन अब तक के इतिहास में इसके साथ-साथ नए क्षेत्रों में रोजगार भी पैदा हुए हैं। जैसे हथकरघों के बंद होने के बावजूद कपड़े की मांग बढ़ी और कपड़ा मिलों में भारी संख्या में रोजगार सृजन होते रहे हैं। वर्तमान समय में रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी तकनीकों के माध्यम से रोजगार का हनन हो रहा है। हनन का दूसरा कारण बड़े उद्योगों का प्रभुत्व है। फैक्टियों में आज आटोमेटिक मशीन एवं रोबोट से उत्पादन हो रहा है। जैसे चीनी मिल के लगने से गुड़ बनाने वाले तमाम उद्योगों में रोजगार खत्म हुआ है। अगर वही उत्पादन छोटे उद्योगों में होता, तो ज्यादा रोजगार बनते। फिर भी अभी तक के इतिहास में रोजगार क्षरण और सृजन का संतुलन बना रहा है और कुल रोजगार सृजन होता रहा है। वर्तमान में टैक्सी, होटल जैसे अन्य व्यवसायों और छोटे उद्योगों द्वारा माल आपूर्ति करने में रोजगार बन रहे हैं। ई-कामर्स, मोबाइल रिपेयरिंग, आनलाइन ट्यूशन, डाटा प्रोसेसिंग आदि में भी नए रोजगार पैदा हो रहे हैं।

इतिहास और वर्तमान समय में अंतर यह है कि इस समय जनसंख्या बढ़ रही है। ई-कामर्स आदि में जितने नए रोजगार बन रहे हैं, उससे बहुत ज्यादा संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। बीते सात दशकों में पेनिसिलिन और एंटी-बायोटिक्स जैसी दवाओं और उच्च पैदावार वाली गेहूं के प्रजातियों के आविष्कार से जन स्वस्थ सुधरा है और जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। इस कारण आज बड़ी संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। श्रम की मांग में वृद्धि कम और आपूर्ति में वृद्धि अधिक हो रही है। अत: बेरोजगारी बढ़ रही है और वेतन कम हो रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 2012 से 2018 के बीच तीन गुना हो गई। 2018 में अपने देश में 15 से 24 वर्ष के युवाओं के बीच 28.5 प्रतिशत बेरोजगार थे, जो विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अधिकतम थी। 2012 से 2018 के बीच संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के वेतन में महंगाई के असर को काटने के बाद 1.7 प्रतिशत की गिरावट आई।
एपीजे स्कूल आफ मैनेजमेंट दिल्ली के शिक्षाविदों के अनुसार, देश की जीडीपी में एक प्रतिशत की वृद्धि होने पर रोजगार में 0.18 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। अत: 10 प्रतिशत की वर्तमान आर्थिक विकास दर पर देश में रोजगार में 1.8 प्रतिशत की ही वृद्धि होगी। सेंटर फार मानीटरिंग इंडियन इकोनामी के अनुसार, देश में इस समय 40 करोड़ लोग कार्यरत हैं। अत: 1.8 प्रतिशत की दर से 72 लाख रोजगार उत्पन्न होंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2018 में संगठित क्षेत्र में 70 लाख लोग प्रोविडेंट फंड में जुड़े थे। कहा जा सकता है कि इतने नए रोजगार पैदा हुए। समस्या यह है कि इसके सामने हर वर्ष 120 लाख नए श्रमिक श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। अत: वर्तमान 10 प्रतिशत की उच्च विकास दर पर भी हर वर्ष 48 लाख युवा बेरोजगारों की कतार में जुड़ते ही जाएंगे। इसलिए 10 प्रतिशत की उच्च विकास दर पर भी बेरोजगारी की समस्या बढ़ती ही जाएगी। विशेष चिंता का विषय यह भी है कि दूसरे देशों की तुलना में रोजगार सृजन में हम बहुत पीछे हैं।
इस परिस्थिति में सरकार को तीन कदम उठाने चाहिए। पहला यह कि शिक्षा का झुकाव उन क्षेत्रों की तरफ मोड़ना चाहिए, जहां मशीनें, कंप्यूटर और रोबोट काम नहीं कर सकते। जैसे स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएं और पर्यटन। समस्या यह है कि शिक्षा मूलत: सरकारी नौकरियों को हासिल करने का अस्त्र मात्र रह गई है। अनुभव बताते हैं कि अधिकांश युवाओं को हुनर से कोई लगाव नहीं रह गया है। वे नर्सिग जैसी स्वास्थ्य सेवा, आनलाइन ट्यूशन जैसी शिक्षा सेवा और विदेशी भाषा सीखने जैसी पर्यटन सेवा में रुचि नहीं रखते हैं। शिक्षा के माध्यम से वे मात्र उस प्रमाण पत्र को हासिल करना चाहते हैं, जिससे वे सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकें। इस प्रवृत्ति का कारण यह है कि सरकारी नौकरियों के वेतन अधिक हैं। इसके चलते दूसरा काम अधिकांश युवाओं को रास नहीं आ रहा है।
सरकारी माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक का सामान्य वेतन आज करीब 70,000 रुपये प्रतिमाह है, जबकि प्राइवेट अस्पताल में नर्स का वेतन 12,000 रुपये प्रतिमाह और संस्कृत जानने वाले कर्मकांडी पंडित का वेतन 8,000 रुपये प्रतिमाह है। इसलिए युवाओं को नर्सिग और संस्कृत में कोई रुचि नहीं है। सरकारी नौकरी न मिलने के कारण वे बेरोजगारों की कतार में जुड़ते जा रहे हैं। सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे युवाओं में सरकारी नौकरियों के प्रति रुझान कम हो और वे नर्सिंग और संस्कृत जैसे हुनर हासिल करने में रुचि लें।
दूसरे कदम के रूप में सरकार को संगठित क्षेत्र में श्रम कानूनों को ढीला करना चाहिए। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी एशिया के जिन देशों में श्रमिकों को भर्ती करने और हटाने के कानून आसान थे, वहां पर रोजगार अधिक बने। इसलिए सरकार को श्रम कानून को सरल करना चाहिए। तीसरे कदम के रूप में सरकार को छोटे उद्योगों को वित्तीय समर्थन देना चाहिए। छोटे उद्योगों द्वारा ही अधिक संख्या में रोजगार सृजन किए जाते हैं। इस दिशा में जीएसटी में परिवर्तन करना चाहिए और छोटे उद्योगों पर जीएसटी की दर को कम करना चाहिए। वर्तमान में जीएसटी की एक दर होने से अर्थव्यवस्था में कुछ गति अवश्य आ रही है, लेकिन उस तेजी के बावजूद रोजगार सृजन कम ही हो रहा है। कह सकते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था की रेलगाड़ी तेज रफ्तार से चल रही है, परंतु उसमें यात्री कम ही बैठे हैं। इसी प्रकार हमारी जीडीपी 10 प्रतिशत की तेज रफ्तार से बढ़ तो रही है, परंतु रोजगार कम ही पैदा हो रहे हैं। सरकार यदि ये कदम शीघ्र नहीं उठाएगी तो देश में बेरोजगारी बढ़ती ही जाएगी।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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