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भारत के लिए कार्बन मार्केट की भूमिका महत्वपूर्ण होगी
आरती खोसला 2022 भारत के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साल होने जा रहा है। अभी पिछले महीने ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (सीओपी-26) के दौरान 'पेरिस एग्रीमेंट आर्टिकल-6 रूलबुक' के पारित होने के बाद कार्बन मार्केट के महत्व, उससे जुड़ी संभावनाओं और चुनौतियों को लेकर विचार-विमर्श का दायरा काफी बढ़ा है। भारत के परिप्रेक्ष्य में कार्बन मार्केट की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, मगर इसके साथ ही कई चुनौतियां भी खड़ी होंगी।
'पेरिस एग्रीमेंट आर्टिकल-6 रूलबुक' को आखिरकार मंजूरी मिलने का मतलब है कि दुनिया के विभिन्न देश अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजारों का इस्तेमाल करके अपने-अपने यहां प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती करें। पारदर्शिता के जरिए समाप्ति होना ग्लासगो वार्ता की एक सफलता है। इससे विकासशील देशों में निजी पूंजी के प्रवाह के रास्ते भी खुलेंगे। भारत में अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण का काम अच्छे तरीके से हो रहा है।
यह देखने वाली बात होगी कि वह सीओपी-26 के बाद उत्पन्न स्थितियों से किस तरह तालमेल बनाकर आगे बढ़ता है। दुनिया में दो तरह के कार्बन मार्केट हैं। एक वह जिन्हें पेरिस समझौते के तहत बनाया गया है और दूसरा स्वैच्छिक बाजार है। सीओपी-26 शिखर बैठक में पारित किए गए आर्टिकल-6 में तीन खास चीजें हैं। पहला आर्टिकल 6.2 है जो दो देशों के बीच कारोबार के बारे में है।
आर्टिकल 6.4 जो अंतरराष्ट्रीय कार्बन मार्केट के बारे में है और आर्टिकल 6.8 गैर बाजार दृष्टिकोण के बारे में है। आर्टिकल 6.2 प्रौद्योगिकीय रूप से तटस्थ है और इसमें किन्हीं विशेष प्रौद्योगिकियों के बारे में कोई जिक्र नहीं है। आर्टिकल 6.4 में सभी की दिलचस्पी होगी। इसके लिए एक सुपरवाइजर कमेटी बनी है जो इस आर्टिकल को लागू करने पर नजर रखेगी।
साथ ही नए कार्बन मार्केट की भी निगरानी करेगी। आर्टिकल 6.8 के तहत नॉन-मार्केट एप्रोच के लिए एक कमेटी बनाई गई है जो डी-कार्बनाइजेशन से संबंधित कदमों को आगे बढ़ा सके। भारत की बात करें तो महिंद्रा कंपनी ने वर्ष 2040 तक खुद को कार्बन न्यूट्रल बनाने का लक्ष्य तय किया है। उनके ग्रुप की एक कंपनी ने पहले ही कार्बन मार्केट विकसित किया है और वह इसका फायदा ले रही है।
महिंद्रा की कुछ मौजूदा परियोजनाएं, जिन्हें वह कार्बन ऑफसेट के तौर पर रख रहे हैं, और उन्हें मैकेनिज्म के तौर पर रूपांतरित करके स्वैच्छिक कार्बन मार्केट में तब्दील करने का सोच रहे हैं। भारत के सामने चुनौती यह है कि उसके व्यापार जगत के पास कार्बन ऑफसेट को लेकर स्पष्टता नहीं है। उदाहरण के तौर पर वह जिसे ऑफ सेट करना चाहते हैं वह कार्बन आखिर कितने टन है।
इसके अलावा चालू लागत भी एक रुकावट है। एक बात यह भी है कि मांग के मुकाबले भारी मात्रा में कर्ज उपलब्ध है। इस वजह से उसकी कीमत काफी कम होती है। इससे कॉरपोरेट्स के सामने मुश्किलें खड़ी होती हैं। इसी कारण अनेक कंपनियों ने स्वच्छ विकास संबंधी प्रोजेक्ट खत्म कर दिए हैं। बहुत सारे निवेश ऐसे हैं जिनका दीर्घकाल में उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिलता है और कंपनियों को आगे चलकर कुछ नहीं मिलता।
कई कंपनियों का मुख्य ध्यान स्कोप-3 एमिशन पर है। महिंद्रा लाइफ सपेस डेवलपर्स ने नेट जीरो इमारतें बनाने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि यह बहुत मुश्किल लक्ष्य है। मगर, विज्ञान आधारित लक्ष्यों को महत्वाकांक्षी होना चाहिए। समग्र उत्सर्जन कम करने के लिए कार्य योजना बनाए जाने की जरूरत है। उन्होंने 63% एमिशन रिडक्शन का लक्ष्य रखा है ताकि नेटजीरो पर निशाना लगा सकें। इसके लिए वह वॉलंटरी ऑफसेट ढूंढ रहे हैं। सभी कंपनियों का ध्यान प्रदूषण कारी तत्वों के उत्सर्जन में समग्र कमी लाने पर है।
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