सम्पादकीय

महिला-पुरुष की समान संख्या का मामला गुणवत्ता और प्रतिभा को खारिज नहीं कर सकता, इसके लिए सामाजिक विचार प्रक्रिया में अंतर जरूरी

Rani Sahu
29 Nov 2021 6:02 PM GMT
महिला-पुरुष की समान संख्या का मामला गुणवत्ता और प्रतिभा को खारिज नहीं कर सकता, इसके लिए सामाजिक विचार प्रक्रिया में अंतर जरूरी
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महिला-पुरुष की समान संख्या का मामला गुणवत्ता और प्रतिभा को खारिज नहीं कर सकता

जयप्रकाश चौकसेताजा आंकड़े जाहिर हुए हैं कि पुरुषों और महिलाओं की संख्या अब लगभग समान हो गई है परंतु लिंग भेद का जहर जस का तस कायम है। गोया की महिलाओं को तथाकथित कमतरी का एहसास कराया जाता है। मसलन कहीं आते-जाते, ट्रेन-बस में सवार होते हुए महिला को पहले प्रवेश के लिए कहा जाना भी एक तरह से उन्हें कमतर जताने को ही रेखांकित करता है। सह शिक्षा संस्थाओं की संख्या भी कम है। फिल्म जगत में भी महिला कलाकारों को पुरुष कलाकारों से कम मेहनताना दिया जाता है।

चुनाव लड़ने वालों की संख्या पर नज़र डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि यह आंकड़ा भी पुरुष प्रधान रहा है। सभी प्राचीन किताबों में भी महिला-पुरुष के बीच भेदभाव ही वर्णित किया गया है। अदालतों में महिला जजों की संख्या भी बहुत कम है। फौज में भी महिलाओं की भर्ती की आज्ञा हाल में ही दी गई है। अनुष्का शर्मा की फिल्म 'एन.एच-10' में प्रस्तुत किया गया है कि एक अपराध दल का संचालन उस परिवार की महिला ही करती है। विधवा होने के बाद उसने यह संचालन प्रारंभ किया है।
अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम की बहन ने भी भाई की जगह ली थी और उससे प्रेरित फिल्म भी बनाई गई है। एक महिला ने अपनी योग्यता से ऊंचा पद हासिल किया तो कहा गया कि इस दल में यह महिला ही एकमात्र पुरुष है। इस वक्तव्य में भी महिला को कमतर जताने की बात इशारे में अभिव्यक्ति की गई है। अपवाद, नियम को ही सत्य प्रमाणित करते हैं। एक प्रसिद्ध साहित्यकार महिला ने कहा है कि परिवार में लड़की को अलग कमरा नहीं दिया जाता, जबकि उसके भाइयों के घर में अपने-अपने कक्ष होते हैं।
लेखिका जेन आस्टिन ने कागज व कलम किसी अन्य के माध्यम से प्राप्त किए थे और परिवार के सोने जाने के बाद वह प्रकाश को सीमित करके सबसे छुपते-छुपाते कमरे में लिखती थी। वह लेखन के समय हर आहट पर चौंक जाती और डर कर अपने कागज कलम छुपा देती थी। एक प्रसिद्ध फिल्मकार ने सितारा महिला से विवाह पूर्व यह शर्त रखी थी कि शादी के बाद वह अभिनय छोड़ देगी। उस महिला कलाकार को विवाह के कुछ समय पश्चात एक सफल फिल्मकार ने भूमिका अभिनीत करने का आमंत्रण दिया।
नतीजतन वे पति-पत्नी दशकों से अलग रहते हैं। उन्होंने विधिवत तलाक नहीं लिया है परंतु उनका अलगाव बना हुआ है। संगीतकार उषा खन्ना ने माधुर्य रचा परंतु उन्हें पुरुष संगीतकारों के समान अवसर नहीं मिले। क्या ऐसा समय आएगा जब संसद में लगभग समान संख्या में महिला और पुरुष मौजूद होंगे? हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। गुजिश्ता दौर में संगीत जगत के सारे वादक पुरुष ही होते थे। वैसे गायन क्षेत्र में महिलाओं ने जरूर सफलता पाई है। लता मंगेशकर आशा भोंसले ने मोहम्मद रफी मन्ना डे और मुकेश से अधिक गीत गाए हैं।
दरअसल, संख्या और रिकॉर्ड के आंकड़ों से परे गुणवत्ता और प्रतिभा महत्वपूर्ण है। प्रतिभा क्षेत्र में कोई लिंग भेद या रंगभेद नहीं किया जाता। शोभना समर्थ ने अपनी एक पुत्री तनुजा को ऐसी परवरिश दी कि वह पुरुषों से बराबरी करती थी। उनकी बड़ी बहन नूतन की परवरिश अलग ढंग से की गई थी। एलिजाबेथ टेलर अपने पति रिचर्ड बर्टन के समान मेहनताना लेती थीं। उन दोनों द्वारा अभिनीत फिल्म ' 'हू इज अफ्रेड ऑफ वर्जीनिया वुल्फ'' थी।
बहरहाल,आंकड़ों का अध्ययन आवश्यक है परंतु उससे कोई ठोस नतीजा नहीं निकाला जा सकता है। तुलना करना भी किसी विचार या मनुष्य को समझने का साधन मात्र है। वर्तमान में अभिनेत्रियां भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू अभिनय के लिए अपना मुंह मांगा पारिश्रमिक पाती हैं। सृजन का कार्य जुनून का होता है, जिसमें लिंग भेद या रंग भेद कोई अर्थ नहीं रखते। महिला और पुरुष की समान संख्या का मामला गुणवत्ता और प्रतिभा को खारिज नहीं कर सकता। इसके लिए सामाजिक विचार प्रक्रिया में अंतर आना चाहिए।
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