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उग्रवादियों के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान विश्वसनीय नहीं
नगालैंड में सुरक्षा बलों के हाथों उग्रवादियों के धोखे में एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों की मौत एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। यह घटना यही बताती है कि जिस खुफिया तंत्र के भरोसे उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है वह विश्वसनीय नहीं है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि सुरक्षा बलों ने जिस खुफिया सूचना को भरोसेमंद माना वह एक तरह से फर्जी निकली और उसके चलते वे एक घातक गलती कर बैठे। यह ठीक है कि इस घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं और मृतकों के परिजनों को न्याय देना सुनिश्चित करने का वचन दिया जा रहा है, लेकिन केवल इतना पर्याप्त नहीं है।
आवश्यक यह है कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी गलती न हो। इसके लिए एक ओर जहां खुफिया तंत्र को मजबूत और विश्वसनीय बनाना होगा वहीं यह भी देखना होगा कि सुरक्षा बल अपने अभियान को आगे बढ़ाने के पहले उपलब्ध सूचनाओं की पुन: पुष्टि करें। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। इसके कैसे घातक नतीजे सामने आए, यह आक्रोशित जनता की ओर से की गई हिंसा से पता चलता है। इस हिंसा में सुरक्षा बलों के कई वाहन जला दिए गए। चूंकि इसका अंदेशा है कि नगालैंड और पड़ोसी राज्यों में सक्रिय उग्रवादी एवं अलगाववादी संगठन इस घटना का बेजा लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं इसलिए राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी आहत लोगों को सांत्वना देने का काम कहीं अधिक तत्परता से करना होगा।
चूंकि नगालैंड पहले से ही अशांत क्षेत्र घोषित है इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस घटना के बाद अशांति और अस्थिरता फैलाने वाले तत्व बेलगाम न होने पाएं। ऐसे तत्वों के साथ उन नेताओं से भी सचेत रहना होगा जो इस घटना को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश में जुट गए हैं। यह पहली बार नहीं है जब सुरक्षा बलों से कोई गलती हुई हो। सटीक खुफिया जानकारी के अभाव अथवा उग्रवाद एवं आतंकवाद के खिलाफ अभियानों की तय प्रक्रिया की अनदेखी के कारण ऐसी गफलत पहले भी हुई है। इसके चलते केवल निर्दोष लोगों की ही जानें नहीं गईं, बल्कि कई बार सुरक्षा बलों को भी क्षति उठानी पड़ी है। दोनों ही स्थितियां स्वीकार्य नहीं। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि नगालैंड की घटना के बाद उग्रवाद एवं अलगाववाद से जूझ रहे सुरक्षा बलों की नीति-रणनीति की नए सिरे से समीक्षा की जाए। नि:संदेह नक्सलवाद, पूर्वोत्तर के उग्रवाद और कश्मीर के आतंकवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान जोखिम भरे होते हैं, लेकिन यह जोखिम तब और बढ़ जाता है जब गलतियों से सबक सीखने से इन्कार किया जाता है।
दैनिक जागरण
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