सम्पादकीय

हिमाचल में खेल की सांसें-2

Gulabi
10 Aug 2021 5:20 PM GMT
हिमाचल में खेल की सांसें-2
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देशभर के खिलाड़ी अगर हिमाचल में आकर प्रैक्टिस करते हैं, तो इसकी वजह को समझना होगा।

देशभर के खिलाड़ी अगर हिमाचल में आकर प्रैक्टिस करते हैं, तो इसकी वजह को समझना होगा। शिलारू व धर्मशाला में अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों का आगमन, ऐसे अन्य दर्जन भर केंद्रों को विकसित करने का पैमाना हो सकता है, दूसरे कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत बढ़ावा मिले, तो कुछ दमदार खेलों के लिए हिमाचल के अभ्यास मैदान, आबोहवा व प्रशिक्षण अकादमियों से राष्ट्रीय खेलों को सांसें मिलेंगी। हिमाचल की परिस्थितियों में जेएसडब्ल्यू एनर्जी समूह ने एक सराहनीय कार्य शोल्टू में बॉक्सिंग प्रशिक्षण को लेकर किया है, जहां एक सौ बीस बच्चों को पारंगत किया जा रहा है। यह दीगर है कि पिछले दस सालों में कारपोरेट जगत ने सारे देश में खेलों के उत्थान को मात्र 119 करोड़ दिए, लेकिन जेएसडब्ल्यू समूह ने कर्नाटक में इंस्पायर इंस्टीच्यूट ऑफ स्पोर्ट्स की स्थापना करके कुश्ती, बॉक्सिंग, जूडो, एथलेटिक्स व तैराकी पर विश्व का श्रेष्ठतम प्रशिक्षण शुरू किया है और जिसके नतीजे सामने आ रहे हैं। इस संस्थान में 23 औद्योगिक घराने वित्तीय सहयोग कर रहे हैं। हिमाचल भी इस तर्ज पर खेल संस्थान स्थापित करके देश की खेल यात्रा को आगे बढ़ा सकता है।


इतना ही नहीं ट्राईसिटी यानी चंडीगढ़ से सटे बीबीएन से ऐसी परियोजना की शुरुआत हो सकती। हिमाचल के अपने संदर्भों में तमाम पुलिस मैदानों को खेलों, शारीरिक प्रशिक्षण व सैन्य सेवाओं में प्रवेश की तैयारी के लिए सुनिश्चित करते हुए पुलिस विभाग को अपना एक खेल स्कूल या कालेज शुरू कर देना चाहिए। आश्चर्य यह कि प्रदेश के बड़े मैदानों को अन्य कार्यों के लिए बर्बाद किया जा रहा है। सुजानपुर का मैदान निरंतर सिकुड़ता जा रहा है, तो चंबा या नाहन के चौगान तफरीह के लिए इस्तेमाल होने लगे हैं। धर्मशाला के मैदान पर पुलिस का अनावश्यक कब्जा, खेलों से इतर साहबों के दफ्तरों और शौकिया टेनिस कोर्ट के दायरे में सिमटता जा रहा है। प्रदेश के मैदानों को किसी एक खेल विशेष का प्रमुख केंद्र बनाते हुए, इन्हें राष्ट्रीय खेल आयोजनों के मानक से जोड़ना होगा। हिमाचल में ग्रामीण खेलों के साथ-साथ स्कूली वातावरण में खेलों के अध्याय बढ़ाने होंगे ताकि करियर में उत्थान की वजह मैदान भी बने। बड़े मैदानों को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि हर शहर की चारों दिशाओं में सामुदायिक मैदान बनाए जाएं और हर गांव के मैदान को बचाया जाए। राष्ट्रीय स्तर की खेलों में हिमाचली बच्चों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं और खासतौर पर महिला कबड्डी, हैंडबाल और एथलेटिक्स में कुछ परिणाम उत्साहित करते हैं। ऐसे में हिमाचल को उन खेलों के प्रति केंद्रित करना होगा, जो पर्वतीय राज्य होने के कारण यहां की जलवायु व शारीरिक क्षमता के अनुरूप कारगर सिद्ध हो सकती हैं। कुश्ती, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, हाकी, फुटबाल, शूटिंग, साइकिलिंग, बैडमिंंटन, वालीबाल, टेबल टेनिस तथा जिमनास्टिक जैसी खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए निजी अकादमियों व कारपोरेट की मदद से अंतरराष्ट्रीय स्तर की अधोसंरचना व प्रशिक्षण उपलब्ध कराना होगा।


बिलासपुर के मोरसिंघी गांव में अगर स्नेहलता जैसी दीवानगी से कोई हैंडबाल प्रशिक्षण को राष्ट्रीय पैमाने से सींच सकता है, तो प्रदेश में कई चर्चित खिलाड़ी व कोच यह करिश्मा करने को तैयार हैं। आश्चर्य यह कि ओलंपिक में पदक विजेता रहे विजय के सान्निध्य में शूटिंग रेंज ही स्थापित कर दें, तो परिवर्तन आएगा। भारतीय हाकी की कप्तान रही सीता गोसाईं को हमने महत्त्व दिया होता, तो एस्ट्रोटर्फ की गिनती बढ़ जाती और वहां भारतीय टीम के लिए और खिलाड़ी तैयार हो जाते। विडंबना तो स्कूल शिक्षा व शिमला विश्वविद्यालय की खेलों के प्रति बेरुखी से भी जाहिर होती है। हिमाचल के कई पुरुष व महिला खिलाड़ी उच्च शिक्षा व शिक्षा में खेलों को प्रोत्साहित करने की वजह से अमृतसर के गुरुनानक विश्वविद्यालय की तरफ रुख करते हैं, लेकिन हमारे शिक्षण संस्थान खेलों का नेतृत्व नहीं कर पाते। गुरुनानक विश्वविद्यालय अपने समर कैंप का धर्मशाला में अकसर आयोजन करता है, तो परिवेश में कई एथलीट, अन्य खिलाड़ी व साइकिलिंग करते युवा दिखाई देते हैं। पौंग बांध में इसी विश्वविद्यालय व देश की सेनाओं के खिलाड़ी जल क्रीड़ाएं करते हैं, लेकिन हम धूप सेंककर शरीर को आराम देते हैं। बिलासपुर की एक स्नेहलता की बदौलत लड़कियां राष्ट्रीय हैंडबाल टीम की लगातार रीढ़ की हड्डी बन कर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं देश के नाम कर सकती हैं, तो ऐसे उदाहरणों को हिमाचल के सिर का ताज बनाना होगा।

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