सम्पादकीय

संयम का सौंदर्य

Gulabi Jagat
12 Jan 2025 2:11 PM GMT
संयम का सौंदर्य
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Vijay Garg: जिसे हम मनोविज्ञान की भाषा में 'इगो' कहते हैं, उसे अहं के रूप में जाना जाता है । आज इसके दायरे का विस्तार इस कदर हो रहा है कि हमारे घर- परिवार तक इसकी समस्या से पीड़ित हो रहे हैं। राष्ट्राध्यक्षों के बीच अहं के टकराव के मामलों से पूरा जगत परिचित है, जिसके कारण भीषण युद्धों की मार आम जनता को सहनी पड़ती है। दरअसल, अहं रहित जीवन का उद्देश्य व्यक्ति को सामंजस्यपूर्ण जीवन जीना सिखाना है, ताकि वह पारिवारिक और सामाजिक रूप से उपयोगी बन सके। फ्रायड ने इस दिशा में बहुत काम किया है और वे इसे 'इड, इगो, सुपर इगो' में बांटते हैं। उनका कहना है कि सुपर इगो नैतिकता और समाज के नियमों से संचालित कार्य करने में मदद देती है। जबकि अहंकार की मात्रा अधिक बढ़ जाए तो मनुष्य का विनाश निश्चित है । 'मैं' की यह भावना जहां हमारे सामाजिक मेल-मिलाप में बाधक है, वहीं हमें ईर्ष्यावान और हठी भी बनाती है। व्यक्ति दूसरों के विचार सुनना बंद कर देता है, उसे अहंकार के चलते हर व्यक्ति अपना प्रतिस्पर्धी लगता है जो कई तरह के मनोरोगों को जन्म देता है।
गीता में श्रीकृष्ण ने सब कुछ त्याग कर कर्म यानी कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है, क्योंकि फल की इच्छा व्यक्ति को स्वार्थी और अनाचारी बनाती है । अहंकार संघर्ष का कारण भी बनता है । इतिहास के कई उदाहरण अहंकार के विगलन पर जोर देते हैं। भक्त कवियों ने ईश्वर प्राप्ति के मार्ग मे अहंकार को ही सबसे बड़ी बाधा बताया है। कबीर साफ लिखते हैं- 'जब मैं था तब हरि नाहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं.. !' मशहूर शायर बशीर बद्र ने भी कहा है कि ' शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है, जिस डाल पर बैठे हैं वो टूट भी सकती है ।' मगर आज के युग में शोहरत और पद के अहंकार में चाहे खिलाड़ी हो या फिल्म स्टार या राजनेता, दुर्व्यवहार
करने से बाज नहीं आते।
अहं को रोकने के लिए जहां व्यवहार में आत्मसंयम चाहिए, वहीं योग और ध्यान जैसे उपाय भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं । हम घरों में देखते हैं कि एकल परिवार होने के कारण पति -पत्नी का अहं किसी भी मुद्दे पर टकरा जाता है और वहां कोई सास-ससुर या मां-बाप जैसी इकाई नहीं होती जो समझाइश कर सके। नतीजतन, तेजी से परिवार टूट रहे हैं। हालांकि इसके पीछे कई अन्य कारण हो सकते हैं, लेकिन दिनोंदिन तलाक के मामले अदालतों में बढ़ रहे हैं।
अहं का यह टकराव बच्चों पर भी विपरीत असर डालता है और वे विघटित व्यक्तित्व के साथ कई मनोविकार लेकर जन्म लेते हैं । इसके कारण न केवल मानसिक शांति भंग होती है, बल्कि तनाव भी बढ़ता है, जिससे कई रोग कालांतर में जन्म ले सकते हैं। आज झूठे सम्मान के नाम पर हत्या के मामले देखने में आ रहे हैं। गांव में आज भी दलित जातियों से आने वाले दूल्हों को घोड़ी से उतार दिए जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं । ये सब हमारी झूठी जातिगत श्रेष्ठता के अहंकार के चलते ही हो रहा है।
महिलाओं की कार्यक्षमता को कम आंकना, उनके साथ दुर्व्यवहार करना या छेड़खानी की घटनाएं होना सिर्फ पुरुषगत श्रेष्ठता की भावना के चलते ही हो रहा है। यह अहंकार ही समाज को विघटित कर रहा है और कई नई समस्याओं को जन्म दे रहा है। अहंकार से कार्य क्षमता भी प्रभावित होती है । हम व्यावसायिक और व्यक्तिगत निर्णय सही समय पर नहीं ले पाते। हमारे निर्णय परस्पर ईर्ष्या- द्वेष भाव और प्रतिशोध भावना पर टिके होते हैं और बहुधा गलत साबित होते हैं । फलस्वरूप कई कुंठाएं जन्म ले लेती हैं आगे चलकर । व्यक्ति स्वयं से असंतुष्ट अनुभव करता है और उसका आत्मसंघर्ष शुरू हो जाता है।
अहंकार के चलते हम दूसरों के सुझाव और विचारों पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। एक प्रकार की श्रेष्ठता की ग्रंथि हमारे कान और आंख बंद कर देती है । हमारे 'टीम वर्क' में बाधा उत्पन्न होने लगती है। हमें सबका सहयोग मिलना बंद हो जाता है। इससे न केवल अवसरों का नुकसान होता है, बल्कि समाज में हमारी स्वीकृति भी कम हो जाती है। हमें एक अहंकारी व्यक्ति मान कर लोग हमसे कन्नी काटना शुरू कर देते हैं। हमारे सामने अपने मन की बात कहने में मित्रगण और मातहत कर्मचारी भी हिचकने लगते हैं । फिर हम वास्तविकताओं से परिचित नहीं हो पाते और केवल झूठे लोगों से घिर जाते हैं। भविष्य में इससे हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और हमारा विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। इस सबसे बचने और व्यक्तित्व की इस कमजोरी को दूर करने के लिए जरूरी है कि हम अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करें, सहयोगी और संयमी बनें। आत्म साक्षात्कार करें और स्वयं पर विजय प्राप्त करें, क्योंकि एक अहंकारी व्यक्ति न केवल समाज को अपना योगदान नहीं दे पाता, बल्कि हिटलर की तरह पूरी दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध में धकेल देता है। इसलिए अपने अहं या अहंकार की पोटली को नेपथ्य में रख देने की जरूरत है, क्योंकि उसका बोझ उठाते हुए जीवन यात्रा दुर्गम और कठिन हो जाएगी, सरल और सुखी नहीं
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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