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आदित्य चौपड़ा। भारत के शेयर बाजार की गाथा भी अजब-गजब रही है। इसका उबाल या तेजी प्रायः किसी न किसी स्कैम अर्थात मायाजाल से टूटता रहा है। चाहे वह हर्षद मेहता कांड हो या एमएस शूज घपला, हर मामले में साधारण व आम निवेशक ही माथे पर चोट खाता रहा है। हर्षद मेहता कांड में बही की चालाकी के साथ बैंकों की हुंडियों का दुरुपयोग किया गया था और बाजार को मांग व सप्लाई के समीकरण से बांध कर ऊंचा चढ़ाया गया था। एमएस शूज मामले में इनसाइडर ट्रेडिंग के नये कारनामें दर-पेश आये थे। मगर ये कांड तब हुए थे जब भारत का पूंजी बाजार अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों से जुड़ने की प्रक्रिया में था। अब 2021 चल रहा है और ये कांड नब्बे के दशक में हुए थे। पूंजी बाजार में इस समय दुनिया के बड़े वित्त निवेशक मौजूद हैं और वे शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं। लगातार भारत का प्रत्यक्ष विदेशी मुद्रा कोष बढ़ रहा है। इसमें से 80 प्रतिशत से अधिक पूंजी बाजार में ही अधिकाधिक मुनाफे की गरज से निवेशित होता है। इस निवेश के कई कारण होते हैं। इसका एक पक्ष राजनीतिक भी होता है। इसका अर्थ यहां राजनीतिक स्थिरता से होता है। दूसरा पक्ष आर्थिक नीतियों का होता है अर्थात देश की सरकार अधिकाधिक निजीकरण को बढ़ावा देती है या नहीं। भारत इन दोनों ही मोर्चों पर संस्थागत विदेशी वित्तीय निवेशकों की कसौटी पर खरा उतर रहा है।