सम्पादकीय

ये तो वादाखिलाफी है

Gulabi
8 Dec 2020 4:35 PM GMT
ये तो वादाखिलाफी है
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यह बात किसी अधिकारी या सामान्य मंत्री ने नहीं, बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही थी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह बात किसी अधिकारी या सामान्य मंत्री ने नहीं, बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही थी। उन्होंने राष्ट्र से वादा किया था कि जैसे ही कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार होगी, उसे सभी भारतीयों को लगाया जाएगा। कई महीने पहले उन्होंने कहा था कि सभी भारतीयों को उसे लगाया जाएगा, इसकी तैयारी की जा रही है। लेकिन अब सरकार ने कह दिया है कि संभव है सबको टीका ना दिया जाए। पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि सरकार ने कभी भी यह नहीं कहा था कि देश में सभी लोगों का टीकाकरण किया जाएगा। ये अजीब मसला है। अगर प्रधानमंत्री का कहना सरकार का कहना नहीं है, तो फिर किसकी बात पर लोग भरोसा करेंगे?


भूषण ने सरकार की इस राय का खुलासा किया कि अगर एक आवश्यक संख्या में लोगों को टीका दे दिया जाए, तो वायरस के प्रसार की चेन टूट जाएगी।
आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने भी कहा है कि एक बार प्रसार की चेन टूट गई, तो फिर सबको टीका देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिन्हें संक्रमण हो चुका है और जो ठीक हो चुके हैं, सरकार के अनुसार ऐसे लोगों को टीका देने की जरूरत पर अभी पूरी दुनिया में चर्चा चल रही है। बहरहाल, मुख्य सवाल है कि क्या इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार है? क्या सबको टीका दिए बिना महामारी से छुटकारा मिलेगा? और यह कैसे तय होगा कि किसे टीका दिया जाएगा और किसे नहीं? जो जानकारियां सामने हैं उनके मुताबिक कोविड को हरा चुके सभी लोगों की भी अवस्था एक जैसी नहीं होती। कुछ लोगों के शरीर में एंटीबॉडी विकसित होती हैं और कुछ लोगों में नहीं भी होती हैं। एंटीबॉडी शरीर में विकसित हो जाने के बाद भी उनसे व्यक्ति को कोविड-19 से स्थायी सुरक्षा मिल जाती हो, इसका भी प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। एंटीबॉडी कितने दिनों तक शरीर में रहती हैं, इस पर भी विवाद है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि एंटीबॉडी संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों के शरीर में सिर्फ कुछ ही हफ्तों तक रही। इतनी सारी जानकारी के अभाव में टीका सिर्फ सीमित संख्या में लोगों को लगाने का निर्णय पर अचरज और आक्रोश के अलावा और क्या हो सकता है? यहां ये भी गौरतलब है कि विकसित देश अपने सभी नागरिकों को वैक्सीन लगवाने का एलान कर चुके हैं। तो भारत सरकार इस जिम्मेदारी से पीछे क्यों हट रही है?


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