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- शुक्रिया मी लॉर्ड
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं से जुडे़ मामलों की सुनवाई के दौरान जजों को अतिरिक्त संवेदनशीलता बरतने की जो सलाह दी है, वह इंसाफ के तकाजे से ही नहीं, इंसानियत के लिहाज से भी एक सराहनीय पहल है। भारत की न्याय-व्यवस्था अपनी निष्पक्षता, निर्भीकता और वैज्ञानिक सोच के लिए दुनिया भर में सराही जाती है और मूल्यों के क्षरण के इस दौर में इन्हीं वजहों से अपने नागरिकों की निगाह में भी उसकी गरिमा बरकरार है। पर विगत कुछ समय में अदालती कार्यवाही के दौरान कुछ ऐसी टिप्पणियां सामने आईं और मीडिया में सुर्खियां बनीं, जो न केवल लैंगिक समानता की सांविधानिक अपेक्षा के विपरीत थीं, बल्कि किसी भी सभ्य समाज को कुबूल नहीं हो सकतीं। सुकून की बात है कि देश की आला अदालत ने इसे गंभीरता से लिया है। उसने बार कौंसिल से भी कहा है कि कानून के पाठ्यक्रमों में यौन अपराधों और लैंगिक संवेदनशीलता के पाठ शामिल किए जाएं।