सम्पादकीय

रचनात्मक जोखिम के अक्षर साक्ष्य

Subhi
7 March 2022 5:52 AM GMT
रचनात्मक जोखिम के अक्षर साक्ष्य
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इलियट की कविता ‘द वेस्ट लैंड’ के प्रकाशन के तकरीबन चौदह साल बाद एक कृति हिंदी में आती है। यह कृति चूंकि एक भारतीय कवि ने लिखी, लिहाजा इसमें प्राच्य चिंतन की आधुनिक छटा देखने को मिलती है

Written by जनसत्ता: इलियट की कविता 'द वेस्ट लैंड' के प्रकाशन के तकरीबन चौदह साल बाद एक कृति हिंदी में आती है। यह कृति चूंकि एक भारतीय कवि ने लिखी, लिहाजा इसमें प्राच्य चिंतन की आधुनिक छटा देखने को मिलती है। यह कृति है छायावादी दौर के कवि जयशंकर प्रसाद की। प्रसाद को उनके पाठकों और आलोचकों ने आधुनिक महाकवि तक कहा है। उनकी 1936 में आई कृति 'कामायनी' को रचना विधान और चिंतन विस्तार की दृष्टि से महाकाव्य का दर्जा हासिल है।

दो भाषा और परंपरा से आए कवियों की कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन अक्सर अर्थहीन निष्कर्षों को जन्म देता है। पर जब रचनात्मक संदर्भ बड़ा हो और चिंता के केंद्र में मनुष्य और उसके कल्याण का सभ्यतागत तकाजा हो, तो भाषा और परंपरा की दूरी का कोई मतलब नहीं रह जाता है। यही कारण है कि 'द वेस्ट लैंड' की आलोचकीय चर्चा में 'कामायनी' का जिक्र बार-बार होता है।

'द वेस्ट लैंड' कविता के पांच भाग हैं- द बरियल आफ द डेड, अ गेम आफ चेस, द फायर सरमन, डेथ बाय वाटर, वाट द थंडर सेड। इलियट ने अपने समय तक मौजूद कई ऐतिहासिक और रचात्मक साक्ष्यों और उद्धरणों से मनुष्य की सभ्यतागत नियति और आधुनिकता के विरोधाभास को रेखांकित किया है। यह एक जटिल रचनात्मक प्रयोग है और इसी कारण इलियट को बीसवीं सदी के सबसे बड़े रचनात्मक जोखिम का कवि माना भी गया। अलबत्ता इस महान कवि की यह उपलब्धि रही कि इस जोखिम के साथ उसने अभिव्यक्ति के नए और जरूरी सरोकारों को प्रभावशाली रचनात्मक स्वीकृति दिलाई।

प्रसाद छायावादी दौर के कवि हैं। उनकी काव्य चेतना में कहीं भी आवेग नहीं है। वे संवेग और संवेदना का संतुलन साधना जानते हैं। इसलिए 'कामायनी' में जब वे जल प्रलय के बाद सृष्टि निर्माण की मानवीय प्रक्रियाओं पर बात करते हैं तो वहां एक स्पष्ट बोध और चरणबद्धता दिखाई पड़ती है। इस महाकाव्य में 'चिंता' से शुरू होकर 'आनंद' तक 15 सर्गों में जहां जीवन का दार्शनिक विस्तार है, वहीं इसमें वे विरोधाभास भी हैं जो चेतना और ऐंद्रिकता के बीच मनुष्य के भटकाव की नियति रचते हैं।

'कामायनी' की एक बड़ी खासियत उसके रचना विधान में मनोवैज्ञानिकता को मिला महत्व है।दरअसल, प्रसाद आधुनिक मनुष्य के बोध और गंतव्य को सांस्कृतिक लिहाज से देखते-परखते हैं। यह भी कि वे तमाम मानवीय दुर्बलताओं और विचलनों की बात करते हुए भी कभी इतने क्षुब्ध नहीं होते कि अपने काव्यात्मक उपादानों को असहज और दुरूह बना दें।

इलियट के रचनात्मक जोखिम और प्रसाद की काव्य दृष्टि को एक साथ देखें तो परंपरा के उत्तरायण और दक्षिणायन का फर्क साफ दिखता है। इलियट आधुनिक सभ्यतागत विरोधाभासों और उसके हिंसक नतीजों के प्रति खासे कुपित मालूम पड़ते हैं जबकि प्रसाद के पास आधुनिक मानवीय जीवन और उसके अभीष्ट को देखने-समझने के लिए काल और रहस्य का सुचिंतित दार्शनिक आधार है।

'कामायनी' में हम देखते हैं कि जीवन प्रवृत्तियों के निरंतर विरोध के बाद मनु में निर्वेद जगा और श्रद्धा के प्रकाश से यही निर्वेद दर्शन और रहस्य का ज्ञान प्राप्त कर अंत में आनंद का साकार रूप लेता है। 'कामायनी' इस लिहाज से भी एक युगांतकारी रचनात्मक साक्ष्य है, जो कविता और मनुष्यता के बीच संवाद की भाषा कैसी हो, इसका समेकित उत्तर देती है। यह भी कि यह कृति काल की सनातन अवधारणा के साथ ज्यादा सुस्पष्टता के साथ अपना काव्यात्मक दायित्व निभाती है।


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