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- कसौटी पर राहत
बीते लगभग दो साल से कोरोना विषाणु के संक्रमण से पैदा हुई महामारी ने समूचे देश और दुनिया भर में कितना और कैसा कहर ढाया है, यह जगजाहिर है। अफसोस की बात यह है कि हमारे देश में महामारी से बड़ी संख्या में हुई लोगों की मौतों के बाद मृतकों के परिवारों की मदद को लेकर कई राज्यों की सरकारों का रवैया बेहद उदासीन रहा। जबकि कोरोना संक्रमण को महामारी घोषित किया गया था और उसकी चपेट में जान गंवाने वालों के परिवारों की हर संभव मदद करना और उन्हें अपेक्षित मुआवजा देना सरकारों का कर्तव्य था। इस उपेक्षा भाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निराशा और नाराजगी जाहिर की और कई राज्य सरकारों को इस मसले पर सख्त निर्देश दिए।
अदालत ने कोविड-19 से हुई मौतों की कम संख्या और खारिज किए गए आवेदनों की अधिक संख्या को लेकर केरल और बिहार जैसी कुछ राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा कि पात्र लोगों को अनुग्रह राशि दी जानी चाहिए और सिर्फ तकनीकी कारणों से मुआवजे के किसी दावे को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।
यह अपने आप में बेहद दुखद है कि एक तरफ लोग महामारी से बचाव के लिए किए गए इंतजामों में कमी के चलते इसका शिकार हुए, मरीजों की जान गई, वहीं सरकार की ओर से मदद के नाम पर जो व्यवस्था की गई, उसकी प्रक्रिया की जटिलता या उसमें लापरवारी के चलते पीड़ित परिवारों को उससे कोई खास राहत नहीं मिल सकी। हालत यह है कि सरकार ने कोरोना से हुई मौतों के मामलों में पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे की जो रकम तय की थी, वह मुहैया कराने के मामले में भी कई स्तरों पर खामियां सामने आर्इं।
इसका अंदाजा अदालत के इस रुख से लगाया जा सकता है कि उसने आंध्र प्रदेश और बिहार सरकार के मुख्य सचिवों से यह स्पष्टीकरण देने को कहा कि कोविड-19 से मृत्यु के मामलों में परिजनों को पचास हजार रुपए की अनुग्रह राशि का वितरण उनके राज्यों में कम क्यों हुआ! यही नहीं, अदालत ने बिहार की ओर से दिए गए आंकड़ों को खारिज किया और कहा कि ये आंकड़े वास्तविक नहीं हैं। पीठ ने साफ तौर पर बिहार सरकार के वकील से कहा कि हमें भरोसा नहीं हो रहा कि बिहार में कोविड की वजह से केवल बारह हजार लोगों की जान गई।
निश्चित रूप से यह हैरानी की बात है कि केरल, आंध्र प्रदेश जैसे जिन राज्यों में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद काफी रही, मगर मुआवजे के लिए दावे बहुत कम सामने आए। सरकार ने अपनी ओर से ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की कि जिन लोगों की मौत का कारण कोविड-19 के रूप में दर्ज किया गया, उनके परिवारों की ओर से एक सहज प्रक्रिया के तहत मुआवजे का दावा आए और वह उन्हें मिल भी सके? यह बेवजह नहीं है कि अदालत ने विधिक सेवा प्राधिकरणों से कोविड-19 से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों से संपर्क करने और मुआवजा दावों का पंजीकरण और वितरण उसी तरह करने को कहा, जिस तरह 2001 में गुजरात में आए भूकम्प के दौरान किया गया था।