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Written by जनसत्ता; बांग्लादेश की प्रधानमंत्री अभी भारत दौरे पर हैं। जब दो देशों का आपसी मिलन होता है तो उसमें कई तरह की वैश्विक समस्याओं पर बातचीत होती है। लेकिन बांग्लादेश की मौजूदा हालात सामान्य रूप में नहीं। इसलिए बांग्लादेशी प्रधानमंत्री भारत से आपसी सहयोग की उम्मीद लेकर ही भारत आई होंगी। बांग्लादेश के साथ कई विचारों पर मंथन होगा, लेकिन बांग्लादेश और भारत के बीच आपसी विचार में यह भी चर्चा होना चाहिए कि बीते कुछ सालों में बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर किस किस प्रकार का अत्याचार हुआ ओर बांग्लादेश सरकार ने उनकी किस प्रकार मदद की।
गौरतलब है कि रूस ओर यूक्रेन के युद्ध के दौरान वहां फंसे भारतीय मूल के नागरिकों के साथ बांग्लादेशी नागरिकों का भी रक्षण भारत सरकार ने किया था। उससे पहले कोरोना महामारी के दौरान भी कोविड टीका और स्वास्थ्यवर्धक दवाइयों की नियमित खेप भारत बांग्लादेश तक पहुंचाता रहा। भारत जब हमेशा मित्रता की भाषा बोलता है तो बांग्लादेश भारत को क्या पारितोष दे रहा है। इन सब मसलों पर भी दोनों देशों को अपने विचार स्पष्ट
हाल ही में बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा आयोजित एक समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने बताया कि उनके कार्यकाल के पहले चार दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने 1,842 मामलों का निपटारा किया है। उल्लेखनीय है कि पद भार संभालने के बाद न्यायाधीश ललित ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित 70,310 मामलों के त्वरित निपटारे को अपनी प्राथमिकता बताया था। न्याय देना एक पेचीदा काम है। जहां न्याय में अत्यधिक देरी न्याय से वंचित करने के समान है, वहीं न्याय देने में जल्दबाजी घातक भी हो सकती है।
विधिशास्त्र कहता है कि सौ आरोपी भले ही छूट जाएं, मगर एक निर्दोष को सजा न हो। यही वजह है कि अक्सर निचली अदालतों के फैसले हाई कोर्ट, हाई कोर्ट के फैसले सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की छोटी पीठों के फैसले बड़ी पीठ बदल देती हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को पूरी जिम्मेदारी से ये सुनिश्चित करना होगा की मामलों का त्वरित निपटान न्यायपूर्ण ढंग से हो। ऐसा न हो की छोटी पीठों द्वारा निपटाए गए मामले वापस बड़ी पीठों के पास आ जाएं और मुकदमें चक्करघिन्नी की तरह अदालत में ही घूमते रहें। हालांकि यह सही है कि वक्त पर और पीड़ित को इंसाफ मिलना ही न्याय की अवधारणा को जमीन पर उतारेगा।
हाल ही साइरस मिस्त्री की सड़क दुर्घटना में हुई मृत्यु पर राजनीतिक एवं ओद्योगिक, सभी वर्गों ने खेद व्यक्त किया। अब प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं मर्सिडीज की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को लेकर। कई लोग इस मृत्यु का कारण सीट बेल्ट के उपयोग नहीं किए जाने को बता रहे हैं, पर एक बात तय है कि करोड़ों खर्च करके उपभोक्ता बड़े ब्रांड की गाड़ियां केवल आपात स्थिति में सुरक्षा को दृष्टिगत रखकर खरीदता है। इस प्रकरण से एक बात साफ है, कि करोड़ों खर्च करने के बाद भी ये बड़ी विदेशी गाड़ियां सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित नहीं कर पा रही हैं। शायद इस प्रकरण का असर इस कार निर्माता कंपनी की साख पर अवश्य पड़ेगा।