सम्पादकीय

आतंकी मंसूबे

Subhi
30 Dec 2022 4:44 AM GMT
आतंकी मंसूबे
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वहां सुरक्षाबलों की चौकसी, सघन तलाशी और सरहद पर कड़ी नजर रखने का ही नतीजा है कि अब दहशतगर्दों का मनोबल काफी कमजोर हुआ है। मगर अब भी वे अपनी साजिशों को अंजाम देने की भरसक कोशिश करते देखे जा रहे हैं। कुछ-कुछ अंतराल पर कोई न कोई वारदात करके वे अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिश करते हैं।

Written by जनसत्ता: वहां सुरक्षाबलों की चौकसी, सघन तलाशी और सरहद पर कड़ी नजर रखने का ही नतीजा है कि अब दहशतगर्दों का मनोबल काफी कमजोर हुआ है। मगर अब भी वे अपनी साजिशों को अंजाम देने की भरसक कोशिश करते देखे जा रहे हैं। कुछ-कुछ अंतराल पर कोई न कोई वारदात करके वे अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिश करते हैं। उसी कड़ी में जम्मू से श्रीनगर की तरफ जा रहे चार आतंकियों को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया। ये चारों एक ट्रक में छिप कर जा रहे थे। उनके पास से भारी मात्रा में हथियार और कारतूस बरामद हुए हैं।

हथियारों की प्रकृति को देखते हुए कहा जा रहा है कि उनमें कोई कमांडर स्तर का आतंकी रहा हो सकता है। यह निस्संदेह सुरक्षाबलों की बड़ी कामयाबी है कि उन्होंने घाटी में किसी बड़ी साजिश को अंजाम से पहले ही रोक दिया। इसे महज संयोग नहीं माना जा सकता कि जिस दिन गृहमंत्री जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं की समीक्षा बैठक करने वाले थे, उसी दिन तड़के मुठभेड़ की यह घटना हुई। आतंकवादी ऐसे मौकों पर अपनी मौजूदगी जाहिर करने का मौका कभी नहीं चूकते।

छिपी बात नहीं है कि कश्मीर में दहशतगर्दी को पोसने वाला पाकिस्तान है। भारत से लगी सीमा पर उसने आतंकी प्रशिक्षण शिविर खोल रखे हैं, जिसमें तैयार हुए आतंकियों को वह मौका देख कर भारतीय सीमा में प्रवेश कराने की कोशिश करता है। इसके अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं, जो विश्व मंचों पर भी साझा किए जा चुके हैं। ताजा मुठभेड़ में मारे गए दहशतगर्द भी पाकिस्तान से भारत में घुसे थे। सड़क मार्ग के जरिए पाकिस्तान से तिजारत बंद है, इसलिए मालवाहकों में छिपा कर उधर से हथियार और दूसरे साजो-सामान भेजना मुश्किल हो गया है।

इसके लिए अब सीमा से सटे क्षेत्रों में ड्रोन का सहारा लिया जाने लगा है। मगर पाकिस्तान की तरफ से की गई ऐसी अनेक कोशिशें नाकाम की जा चुकी हैं। फिर लगातार अत्याधुनिक संचार सुविधाओं से निगरानी रखी जाने की वजह से सीमा पार कर भारत में घुसना कठिन होता गया है। ऐसे में आतंकी कुछ ऐसे रास्ते चुनने लगे हैं, जिधर से चकमा देकर भारतीय सीमा में घुसा जा सकता है। चिंता की बात है कि तमाम उपायों और चौकसी के बावजूद उनके मंसूबों पर पानी फेरना मुश्किल बना हुआ है। घाटी में दहशतगर्दी की जड़ें खत्म नहीं हो पा रहीं।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समीक्षा बैठक में एक बार फिर दहशतगर्दी को जड़ से उखाड़ फेंकने की वचनबद्धता दोहराई गई। मगर पिछले कुछ महीनों में लक्षित हिंसा और सुरक्षाबलों के काफिले को निशाना बना कर किए गए हमलों को देखते हुए दावा करना मुश्किल है कि कब तक इस समस्या पर काबू पाया जा सकेगा। दरअसल, पाकिस्तानी शह के अलावा चिंता की बात यह भी है कि खुद घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को लेकर नकार की भावना नहीं पैदा हुई है। अब भी युवाओं को दहशतगर्दों के साथ जुड़ाव से रोकना कठिन बना हुआ है।

इन गुमराह नौजवानों को किस तरह मुख्यधारा से जोड़ा जाए, इस दिशा में गंभीरता से विचार की जरूरत है। जब तक घाटी के लोगों का मन नहीं बदलेगा, दहशतगर्दों के मंसूबे जिंदा रहेंगे। आतंकवाद के साथ लड़ाई अक्सर नागरिकों के खिलाफ चली जाती है। इस संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कोई व्यावहारिक रणनीति बनाने की जरूरत है।


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