सम्पादकीय

फ्रांस पर आतंकी हमला

Gulabi
31 Oct 2020 12:59 PM GMT
फ्रांस पर आतंकी हमला
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फ्रांस में आतंकवाद का जो वीभत्स चेहरा हमें इन दिनों देखने को मिल रहा है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फ्रांस में आतंकवाद का जो वीभत्स चेहरा हमें इन दिनों देखने को मिल रहा है, वह दुनिया की कई राजनीतिक स्थापनाओं पर तो उंगली उठाता ही है, साथ ही, उन तरीकों पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है, जो चरमपंथ से निपटने के लिए अपनाए जाते हैं। अभी कुछ ही समय पहले की बात है, जब तक सीरिया और इराक के कुछ इलाकों में अल बगदादी और उसका संगठन आईएसआईएस काबिज था, तो ऐसा लगता था कि दुनिया ने आतंकवाद के खिलाफ कमर कस ली है। यह सभी जानते थे कि आईएसआईएस जिस तरह का तंत्र चला रहा है, वह ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है, और एक दिन वह ध्वस्त भी हो गया। उसके ध्वस्त होते ही यह मान लिया गया कि समस्या खत्म हो चुकी है। हालांकि, वह सोच और वह मानसिकता, जिसने आईएसआईएस को पैदा किया था और दुनिया भर के चरमपंथी सोच वाले लोगों को एक जगह जमा किया था, उसे खत्म करने के लिए कहीं कुछ नहीं किया गया। यही तरीका हमें अफगानिस्तान में भी दिखाई देता है। कभी अफगान तालिबान के खिलाफ दुनिया भर में कोड़े फटकारने वाला अमेरिका अब उनके साथ ही समझौते की कोशिशों में लगा हुआ है। चरमपंथी विचारधारा से लड़ना तो दूर, इस लड़ाई में जिन्होंने साथ दिया था, उनके हितों की भी अनदेखी की जा रही है।

इसलिए आज फ्रांस में जिस तरह से आतंकवादी घटनाएं दिख रही हैं, उस पर क्षोभ तो व्यक्त किया जा सकता, लेकिन आश्चर्य नहीं। कुछ एक चरमपंथी और आतंकवादी नेताओं व कार्यकर्ताओं को जरूर निशाना बनाया गया, लेकिन कट्टरपंथी मानसिकता को जिस तरह से नजरंदाज किया गया, उसके चलते ऐसे खतरे बने हुए थे। फ्रांस को लेकर पूरी दुनिया में पिछले दो सप्ताह से जो हो रहा है, उसमें कई देशों की सरकारें भी परोक्ष रूप से कट्टरता के साथ खड़ी दिखाई दी हैं, जो यह भी बताता है कि कट्टरपंथ का दबाव दुनिया में हर जगह बढ़ रहा है। फ्रांस में कट्टरपंथ को रोकने की बातें तो बहुत हुईं, लेकिन प्रतीकात्मक पाबंदियों को लगाने के अलावा बहुत कुछ नहीं हुआ। उल्टे स्कॉर्फ पहनने पर रोक जैसे कदमों से बहुत-सी महिलाओं के लिए मुख्यधारा में शामिल होने के अवसर खत्म कर दिए गए। किसी भी तरह की कट्टरता के खिलाफ लड़ाई जटिल होती है, जो लंबे धैर्य की मांग करती है। लेकिन न कहीं यह लड़ाई दिखती है और न ही उसे खत्म करने का धैर्य। हां, एक खतरनाक अधीरता जरूर दिखाई देती है, जो हालात को बिगाड़ने का काम करती है। कट्टरता तो कम नहीं हो रही, लेकिन यह अधीरता आग में घी जरूर डाल रही है।

फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनुएल मैक्रॉ ने कहा है कि उनका देश आतंक के आगे झुकेगा नहीं। उसे झुकना भी नहीं चाहिए। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों ने इस लड़ाई में फ्रांस का समर्थन किया है और यह संदेश दिया है कि वे उसके साथ खड़े हैं। भारत किसी भी देश में आतंकवाद के खिलाफ हमेशा से ही खड़ा रहा है, क्योंकि वह भी आतंकवाद का दंश झेलता आया है। इसलिए यहां यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि जब कभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत में सक्रिय आतंकी गुटों पर पाबंदी का सवाल आता है, तो पश्चिम के देश किस हद तक हमारे साथ खड़े होते हैं? अगर इस रवैये को खत्म किया जा सके, तो दुनिया आतंक के खिलाफ लड़ाई ज्यादा अच्छी तरह से लड़ सकेगी।

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