सम्पादकीय

ड्रोन पर सवार आतंकवाद

Gulabi
29 Jun 2021 11:42 AM GMT
ड्रोन पर सवार आतंकवाद
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जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर रविवार तड़के हुआ आतंकी हमला नुकसान चाहे ज्यादा न कर पाया हो, लेकिन

जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर रविवार तड़के हुआ आतंकी हमला नुकसान चाहे ज्यादा न कर पाया हो, लेकिन भविष्य की तैयारियों के लिहाज से यह बेहद गंभीर घटना है। इसे सिर्फ एक और आतंकी वारदात के रूप में नहीं लिया जा सकता। जैसी कि आशंका जताई जा रही है, यह हमला ड्रोन के जरिये हुआ। अगर यह सच है तो इसे आतंकी हमलों के तरीकों में महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत माना जाना चाहिए। जम्मू एयरफोर्स स्टेशन की भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से दूरी करीब 14-15 किलोमीटर है। इससे पहले तक सीमा पार से ड्रोन अधिकतम 12 किलोमीटर तक ही घुसपैठ कर सके थे, लेकिन घटनास्थल को उनके दायरे से बाहर नहीं माना जा सकता। दूसरी ओर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ड्रोन को भारतीय सीमा के अंदर से ही संचालित किया जा रहा हो। सुरक्षा विशेषज्ञ आंतकी हमलों में ड्रोन के इस्तेमाल की आशंका पहले से जताते रहे हैं। यह आतंकी संगठनों के लिए कई लिहाज से सुविधाजनक भी है। एक तो इसमें वारदात को अंजाम देने वाले आतंकियों के मारे या पकड़े जाने का डर नहीं होता, दूसरे यह कम खर्चीला भी है। इसलिए ड्रोन के जरिये हमले देश के अंदर छोटे-छोटे ग्रुप्स के जरिए भी करवाए जा सकते हैं।

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इन हमलों में सीमा पार के आतंकी संगठनों की संलिप्तता को उजागर करना भी थोड़ा मुश्किल हो जाएगा। ड्रोन चूंकि कम ऊंचाई पर उड़ते हैं, इसलिए अक्सर राडार की जद में भी नहीं आते। ऐसे में विशेषज्ञों का यह आकलन निराधार नहीं है कि भविष्य में ड्रोन हमलों की संख्या में इजाफा हो सकता है। सुरक्षा तंत्र की एक बड़ी चुनौती इन संभावित हमलों से बचने और समय रहते इन्हें नाकाम करने के तरीके विकसित करने की होगी। लेकिन फिलहाल सबसे अहम है इन हमलों की टाइमिंग। हमले से दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के प्रमुख दलों और नेताओं के साथ लंबी बैठक की, जिससे वहां का माहौल बदलने की उम्मीद बंधी है। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाए जाने और आगे चलकर राज्य का दर्जा बहाल होने की चर्चा शुरू हो गई है। माहौल में ऐसा पॉजिटव बदलाव आतंकी तत्वों की बेचैनी बढ़ा दे, यह पूरी तरह स्वाभाविक है। ऐसे में चाहे शोपियां में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हो या जम्मू एयरफोर्स स्टेशन का ब्लास्ट या फिर जम्मू में आईईडी के साथ लश्कर-ए-तैयबा के संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी- ये आतंकवाद के अब तक के पैटर्न की ही पुष्टि करते हैं। जाहिर है, आतंकी तत्वों के खिलाफ मुहिम में रत्ती भर भी ढील नहीं दी जा सकती, लेकिन ऐसा भी कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे आतंकी तत्वों को लगे कि उनकी कार्ययोजना सफल हो रही है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो जम्मू कश्मीर में बातचीत या चुनावों की प्रक्रिया पर इन घटनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ने देना फिलहाल हमारी सफलता की एक बड़ी कसौटी होगा।
क्रेडिट बाय NBT
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