सम्पादकीय

आतंक और दोस्तीः साथ-साथ?

Subhi
2 April 2021 2:04 AM GMT
आतंक और दोस्तीः साथ-साथ?
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तो जैसी अकटलें थीं, वह होने लगा है। भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी रोकने से संबंधों में सुधार की हुई शुरुआत अब फिर से व्यापार शुरू करने तक पहुंच गई है।

तो जैसी अकटलें थीं, वह होने लगा है। भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी रोकने से संबंधों में सुधार की हुई शुरुआत अब फिर से व्यापार शुरू करने तक पहुंच गई है। जल्द ही यह सुधार क्रिकेट संबंधों में दिखेगा। फिर राजनीतिक स्तर पर भी ये दिखे, इस बात की पूरी संभावना है। मगर इस बीच गौर की एक बात यह है कि पाकिस्तान की इमरान खान सरकार अपनी तरफ से अपने 'मुख्य मुद्दे' पर सख्त रुख बनाए हुए है। इस घटनाक्रम पर गौर कीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान दिवस पर इमरान खान को खत लिखकर शुभकामनाएं दी थीं। अपने संदेश में उन्होंने "भरोसे के ऐसे वातावरण की जरूरत" बताई थी, जिसमें आतंक और शत्रुता ना हो। इमरान ने अब उस खत का जवाब दिया। अपने खत में उन्होंने यह भी लिखा कि पाकिस्तान दिवस उस दिन का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है, जिस रोज 'हमारे संस्थापकों ने एक ऐसे देश की स्थापना की थी, जिसमें सभी लोग सुरक्षित और शांति से रह सकें।' क्या ये बात एक बार फिर से दो-राष्ट्र के सिद्धांत के जताना नहीं है? और क्या यह एक तरह से भारत के आज के हालात पर कटाक्ष करना नहीं है?

मगर भारत सरकार ने उस पर कोई प्रतिक्रिया नही दी। इमरान ने अपने खत को सिर्फ भारत- पाकिस्तान संबंधों तक सीमित नही रखा। बल्कि लिखा- "पाकिस्तान के लोग भारत समेत सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगी रिश्ते चाहते हैं।" इमरान ने लिखा- "हमें विश्वास है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए भारत और पाकिस्तान मुख्य मुद्दे जम्मू-कश्मीर सहित सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे। सकारात्मक और समाधान लायक बातचीत के लिए अनुकूल माहौल का बनना जरूरी है।" बहरहाल, अब पाकिस्तान ने भारत से कपास और शक्कर का आयात शुरू करने का फैसला किया है। इससे भारत के उन कारोबारियों को लाभ होगा, जिनका इस कारोबार में हित है। संभव है जल्द ही स्टील का कारोबार भी दोनों देशों में शुरू हो जाए। उससे उस कारोबार में निहित स्वार्थों रखने वाले उन प्रभावशाली कारोबारियों को लाभ होगा, जो पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच पुल बनने की भूमिका निभा चुके हैँ। लेकिन असल सवाल अपनी जगह हैः आखिर आतंकवाद और मधुर संबंध- दोनों साथ- साथ कैसे चल सकते हैं? या अब पाकिस्तान भारत सरकार की नजर में आतंकवाद को प्रश्रय देने वाला देश नहीं रहा?


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