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जनता से रिश्ता वेबडेस्क।देश के साथ आपसी सम्बन्धों की स्थिति क्या रही है और दोनों देशों के नागरिकों पर इसका किस हद तक प्रभाव पड़ा है। पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों की ऐसी धार्मिक उन्माद से भरी कार्रवाइयों का दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों पर क्या असर पड़ता है? कुछ इतिहासकारों का मत है कि यदि पाकिस्तान की मांग पर संयुक्त भारत में रह रही समस्त मुस्लिम जनता के बीच ही जनमत संग्रह कराया गया होता तो परिणाम पाकिस्तान के निर्माण के विरुद्ध आता क्योंकि तब स्वतन्त्रता संग्राम लड़ रही कांग्रेस पार्टी में एक से बढ़ कर एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे जिनमें मौलाना अब्दुल कलाम आजाद व सीमान्त गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं। इनके अलावा उत्तर प्रदेश के हाफिज मुहम्मद इब्राहीम से लेकर बंगाल के बहुत से मुस्लिम नेता थे जो पाकिस्तान के निर्माण के विरुद्ध अलख जगा रहे थे मगर इन सबसे अलग जम्मू-कश्मीर में शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के नेतृत्व में इस रियासत में राजशाही को समाप्त करने का आन्दोलन चल रहा था और इस आन्दोलन में पाकिस्तान के निर्माण का जबर्दस्त विरोध हो रहा था। स्वयं शेख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान के निर्माण से कुछ दिन पहले श्रीनगर में आयोजित एक विशाल जनसभा में कहा था, ''जब तक मेरे जिस्म में खून का एक कतरा भी बाकी है तब तक पाकिस्तान वजूद में नहीं आ सकता।'' यह सब पक्का मय सबूत का इतिहास है जिसे कोई नहीं बदल सकता मगर उस समय मुस्लिम लीग के नेता मुहम्द अली जिन्ना ने अंग्रेज सरकार के 'कैबिनेट मिशन' को पलीता लगाते हुए 1946 में सीधी कार्रवाई (डायरेक्ट एक्शन) का आह्वान किया और पूरे देश को हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आग में झोंक दिया।