सम्पादकीय

तेजस्वी यादव की शादी : जंगलराज के साधू के मुंह से संस्कार की बातें क्यों अच्छी नहीं लगती?

Gulabi
13 Dec 2021 6:36 AM GMT
तेजस्वी यादव की शादी : जंगलराज के साधू के मुंह से संस्कार की बातें क्यों अच्छी नहीं लगती?
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तेजस्वी यादव की शादी
अजय झा.
बिहार के सबसे चर्चित कुंवारे प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की शादी 9 दिसम्बर को क्या हो गयी कि प्रदेश में बवाल मच गया है. तेजस्वी की अपने बचपन के प्यार रिचेल के साथ शादी करने से अगर बिहार की लड़कियां नाराज होतीं तो बात समझी भी जा सकती है, पर सबसे ज्यादा नाराज इस शादी से तेजस्वी के मामा साधू यादव दिख रहे हैं. जिस भाषा का वह प्रयोग कर रहे हैं, साधू यादव ने यह एक बार फिर से साबित कर दिया है कि वह सिर्फ नाम के ही साधू हैं. इसे संयोग ही कहा जाना चाहिए कि पुराने समय में साधू जंगलों में रहते थे और बिहार में साधुवाद जंगलराज में चलता था और उस साधुवाद को आज भी कोई नहीं भूला है.
साधू की नाराजगी का कारण है कि क्यों तेजश्वी ने एक ईसाई लड़की से शादी की है. यह भी कोई बात हुयी. तेजश्वी राष्ट्रीय जनता दल के सबसे बड़े नेता हैं, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और किसी को ताज्जुब नहीं होगा अगर वह भविष्य में बिहार के मुख्यमंत्री भी बन जाएं. सबसे बड़ी बात कि तेजस्वी आज के ज़माने के नेता हैं. उन्हें पूरा हक़ है कि वह अपने मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनें.
कई नेताओं ने अंतर्धार्मिक शादी की
वैसे तेजस्वी कोई पहले नेता नहीं हैं जिसने किसी ईसाई से शादी की हो. राजीव गांधी ने भी एक ईसाई से शादी की थी और प्रियंका गांधी के पति भी ईसाई हैं पर उस पर कोई विवाद नहीं हुआ. होना भी नहीं चाहिए था. और भी कई नेता हैं जिनकी पत्नी का धर्मं अलग है. अगर भारतीय जनता पार्टी की भी बात करें तो स्वर्गीय सिकंदर बख्त अपने ज़माने में बीजेपी के बड़े नेता होते थे और उनकी पत्नी राज शर्मा हिदू थीं, और वर्तमान में बीजेपी के दो सबसे बड़े मुस्लिम नेता मुख़्तार अब्बाद नकवी की पत्नी सीमा और शहनवाज़ हुसैन की पत्नी रेणु भी हिन्दू हैं. कभी भी किसी नेता के जीवनसाथी का दूसरे धर्मं से होना इतना चर्चित नहीं हुआ जितना कि तेजश्वी यादव की पत्नी का एक ईसाई होना. साधू यादव की नाराजगी यही दर्शाता है कि वह दकियानूसी विचारों वाले नेता हैं और बिहार लालू यादव का आभारी है कि उन्होंने अपने मुंहलगे साले को पार्टी से निकाल दिया था. साधू यादव जैसे लोगों के कारण ही बिहार बदनाम है.
अपने बहन-बहनोई को भी नहीं छोड़ा साधू यादव ने
बिहार के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है समाज का जातिवाद के नाम पर बंटवारा. इसे दुर्भाग्य ही माना जाना चाहिए कि चुनावों में किसी प्रत्याशी की योग्यता नहीं देखी जाती बल्कि उसकी जाति ही उसकी योग्यता होती है. रिचेल बिहार की नहीं है और यदुवंशी भी नहीं हैं. पर अगर ईसाई हैं तो क्या हो गया ? क्या भविष्य में बिहार में चुनावी मुद्दा यही होने वाला है कि तेजस्वी की पत्नी का किस धर्म से नाता है? गुस्से में साधू ने अपने भांजे को चरित्रहीन तक कह डाला. यहां तक तो सही है कि अब बिहार को समझ में आया कि क्यों तेजस्वी का अधिकांश समय दिल्ली में गुजरता था. उम्मीद यही की जानी चहिये कि जब अब वह अपनी पत्नी के साथ पटना में रहेंगे तो उनका फोकस अब बिहार और बिहार की राजनीति पर ज्यादा होगा. साधू यादव ने तो अपने दीदी और जीजा तक की आलोचना कर दी यह कह कर कि उन्होंने अपने बच्चों को संस्कार नहीं दिया. रिचेल के बारे में ज्यादा तो पता नहीं है पर कहा जाता है कि वह पूर्व में एयर होस्टेस थीं. पर साधू ने उन्हें बार डांसर तक कह डाला जो घोर आपत्तिजनक है. यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि जब तेजस्वी बिहार अपनी पत्नी के साथ आएं तो उनका स्वागत जूतों से होना चाहिए क्योंकि तेजस्वी ने किसी यदुवंशी लड़की की जगह एक ईसाई से शादी की है.
इस शादी से तेजस्वी की छवि और चमकेगी
खबर यह भी है कि तेजस्वी के माता-पिता लालू यादव और राबड़ी देवी भी इस बात से खुश नहीं थे कि उनकी पुत्रवधू एक ईसाई है. अगर यह सच है तो तेजश्वी बधाई के पात्र हैं. अगर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए तो इसका सबसे बड़ा कारण था कि उन्हें लालू यादव के पुत्र के रूप में ही देखा गया था. राजनीति में आने और अपनी जगह बनाने के लिये उनका लालू यादव का पुत्र होना काफी था. पर अब लालू यादव का पुत्र होना ही तेजस्वी के लिए एक अभिशाप सबित होने लगा है. बिहार की जनता को डर था कि तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनते ही बिहार में एक बार फिर से जंगलराज वापस आ जाएगा और साधू यादव जैसे लोगों की एक बार फिर से तूती बोलने लगेगी. माता-पिता के विरोध के बावजूद अगर तेजस्वी ने किसी अन्य धर्म या जाति की लड़की से शादी की है तो उससे उनकी छवि सुधरेगी और लोगों में भरोसा बढेगा कि तेजस्वी अब जातिवाद से ऊपर उठ कर सोचेंगे, जिसकी बिहार को सख्त जरूरत है. दुर्भाग्यवश वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बावजूद इसके कि उनकी छवि विकास पुरुष की है, जातिगत राजनीति ही करते रहे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता कि तेजस्वी में काफी प्रतिभा है. कम से कम इतना तो तय है कि तेजस्वी को बिहार की जनता सिर्फ इसलिए रिजेक्ट नहीं करेगी क्योंकि उनकी पत्नी हिन्दू या यदुवंशी नहीं हैं. उन्हें बिहार की जनता उनकी योग्यता पर परखेगी ना कि इस कसौटी पर कि उनकी पत्नी पूजा करने मंदिर या गिरिजाघर जाती है.
बता दें कि मैं कभी भी तेजस्वी का फैन नहीं था पर अब लगने लगा है कि बिहार को शायद किसी ऐसे ही प्रगतिशील सोचवाले नेता की जरूरत थी, ताकि एक बिहारी को बिहारी के रूप में जाना जाए ना कि उनकी जाति के आधार पर.
साधू यादव एक एक बार बिहार विधानपरिषद, बिहार विधानसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं. आरजेडी से निकाले जाने के बाद वह कई बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और फिर कभी जीत नसीब नहीं हुयी. साधू यादव के अनुसार तेजस्वी कृष्ण बनने चले थे और क्रिस्चियन बन गए. तेजश्वी क्रिस्चियन तो नहीं बने पर साधू यादव अब कंस मामा जरूर बन गए हैं. शुक्र है कि बिहार की राजनीति में अब कंस मामा यानि साधू यादव को कोई पूछने वाला भी नहीं है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ऑर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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