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- बूढ़ी सियासत के दांत
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यह श्रेय पंडित सुखराम को जाता है कि वह उम्र के इस द्वार पर हारे नहीं हैं और अभी भी अपनी विरासत को सींचने की कोशिश में लगे हैं। कमोबेश हिमाचल की सियासत में बुजुर्गों के पालने अपने घर के चिरागों को ही हवाओं से बचाने में लगे रहे। शांता कुमार इस दृष्टि से भले ही भिन्न हैं, लेकिन अपनी मौजूदगी को वह भी नजरअंदाज नहीं होने देते। मसलन मंडी की सियासत का रुख सुकेती नदी के सूखने या ब्यास में बढ़ते प्रदूषण जैसा है। विडंबना यह है कि पंडित सुखराम की सियासत न तो ब्यास के घाट पर और न ही सुकेती के पाट पर अपने कपड़े सुखा पा रही है। इसीलिए वह मंडी लोकसभा के उपचुनाव में पोते आश्रय शर्मा के भविष्य को सींचते हुए यह भूल रहे हैं कि उनसे आगे निकलकर अब मंडी से कोई मुख्यमंत्री बन चुका है या पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विरासत में कांग्रेस का सूर्योदय हो सकता है। कभी अपने दोनों बाजुओं में मंडी की सियासत भरने वाले पंडित जी अब बेटे अनिल शर्मा को काले पानी की 'सजा' में सजा देखते हैं, तो दूसरी ओर पोते के माथे पर कांग्रेस की लकीरें पढ़ते हुए अधीर हो जाते है। परिवारवाद के कई अनसुलझे मुहावरे हम बूढ़ी सियासत के आंगन में बिखरे देख सकते हैं।
divyahimachal
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