सम्पादकीय

Team India: एमएस धोनी जैसा जुआ विहारी पर क्यों नहीं खेला जा सकता?

Rani Sahu
18 Jan 2022 1:19 PM GMT
Team India: एमएस धोनी जैसा जुआ विहारी पर क्यों नहीं खेला जा सकता?
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हनुमा विहारी के बारें में आपका क्या ख़्याल है

हनुमा विहारी के बारें में आपका क्या ख़्याल है? जब टीम इंडिया के लिए नए टेस्ट कप्तानों के विकल्प की चर्चा हो रही है तो कोई भी आंध्रप्रदेश के इस बल्लेबाज़ का नाम तक क्यों नहीं ले रहा है? हां, ये बात तो सही है कि विहारी तो पंत की तरह स्टार नहीं है, या फिर उन्हें भविष्य का सितारा नहीं माना जाता है. के एल राहुल की तरह वो भारत के लिए तीनों फॉर्मेट में नहीं खेलतें हैं. लेकिन, सिर्फ इसके चलते क्या उनकी दावेदारी को खारिज किया जा सकता है. मुझे याद है कि कुछ महीने पहले टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर और पिछले साल तक मुख्य चयनकर्ता रहे एम एस के प्रसाद ने ये बात कही थी कि विहारी की क्रिकेट सोच में भविष्य के कप्तान की झलक मिलती है.

तो फिर क्यों नहीं विहारी के नाम पर गंभीर चर्चा हो रही है? सिर्फ इसलिए कि उन्होंने महज 13 टेस्ट भारत के लिए खेलें हैं? या इसलिए कि वो दक्षिण भारत से आते हैं और वो भी आंध्र प्रदेश जैसे टीम के लिए रणजी ट्रॉफी खेलते हैं? भारतीय क्रिकेट का इस बात का गवाह रहा है कि कैसे कप्तानी के मामले में हमेशा नार्थ ज़ोन और वेस्ट जोन को प्राथमिकता देने का रिवाज़ है. वो तो भला हो जगमोहन डालमिया का, जिन्होंने सौरव गांगुली को मौका दिया और बाद में ईस्ट ज़ोन से एक और कप्तान आया जो भारतीय इतिहास का सबसे कामयाब कप्तान बना. महेंद्र सिंह धोनी पर भी तो एक वक्त मुख्य चयनकर्ता दिलीप वेंगसरकर ने जुआ ही खेला था तो ऐसे में कुछ इसी तरह का जुआ विहारी पर क्यों नहीं खेला जा सकता है?
विहारी का टैम्प्रामेंट शानदार है, शांत स्वभाव वाले खिलाड़ी हैं, काफी मिलनसार हैं और अल्टीमेट टीम मैन के तौर पर उन्हें देखा जाता है. उनके साथ किसी भी तरह का विवाद का कोई नाता नहीं है और विराट कोहली जैसे हाई-प्रोफाइल कप्तान के बाद शायद फिलहाल भारतीय क्रिकेट को विहारी जैसे ही लो-प्रोफाइनल वाले कप्तान की ज़रुरत है. विहारी ने पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सिडनी टेस्ट के दौरान अनफिट होने के बावजूद टीम को एक निश्चित हार से बचाने में अहम भूमिका निभायी थी. उस दौरे से पहले ही कप्तान विराट कोहली से जब सीरीज़ के सबसे शानदार बल्लेबाज़ की भविष्याणी करने को पूछा गया तो उन्होंने बिना हिचके विहारी का ही नाम लिया था.
कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि विहारी तो भारतीय टेस्ट टीम का नियमित हिस्सा भी नहीं होते हैं तो उन्हें भला कप्तानी की इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी जा सकती है. जब तक अंजिक्या रहाणे और चेतेश्वर पुजारा का मिड्ल ऑर्डर में खेलना एकदम पक्का हुआ करता था तब तो ये बात समझ में आती है लेकिन अब भारतीय टेस्ट क्रिकेट के नए युग में विहारी मिड्ल ऑर्डर के लिए ना सिर्फ नियमित तौर पर खेलेंगे बल्कि भविष्य की योजना में एक अहम किरदार भी साबित होंगे.
34 की औसत से मूल्यांकन की भूल मत करें
28 साल के इस युवा बल्लेबाज़ को टेस्ट क्रिकेट में उनके सिर्फ 34 की औसत और एक शतक से मूल्यांकन करने की भूल मत करें. अपने 13 में से सिर्फ 1 मैच उन्होंने भारत में खेले. उनके दर्ज टेस्ट इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज़, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे मुल्कों में आयें हैं जहां पर हाल के सालों में बल्लेबाज़ी करना हर बेहतरीन बल्लेबाज़ के लिए भी काफी सहज नहीं रहा है. विहारी ने तो टीम के लिए 2018 के दौरे पर ओपनर की भूमिका तक निभायी. विहारी के पास फर्स्ट क्लास क्रिकेट में आंध्रप्रदेश की कप्तानी का अच्छा अनुभव है और जिन्होंने भी उनके साथ खेला है या करीब से देखा है, उनकी लीडरशीप से प्रभावित हुआ है.
कुंबले जैसी अंतरिम भूमिका अश्विन को क्यों नहीं?
अगर चलिए विहारी का विकल्प आपको बहुत क्रांतिकारी लग रहा है तो रविचंद्रण अश्विन की दावेदारी के बारे में आपकी क्या राय है? अनिल कुंबले के बाद भारतीय इतिहास के सबसे बड़े मैच-विनर को आखिर क्यों नहीं अंतरिम कप्तान के तौर पर ज़िम्मेदारी दी जा सकती है? अगले महीने फरवरी में भारत को श्रीलंका के खिलाफ़ घर में 2 मैच खेलने हैं और उसके बाद इंग्लैंड में सिर्फ एक टेस्ट और फिर साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरे पर आयेगी. यानि कि 2022 में भारतीय टीम का टेस्ट कार्यक्रम बहुत चुनौतीपूर्ण नहीं है और ऐसे में अश्विन निश्चित तौर पर वही भूमिका निभा सकतें है जो धोनी के टेस्ट कपत्ना बनने से पहले कुंबले ने निभायी थी.
अश्विन की बेहतरीन क्रिकेट सोच से हर कोई परिचित है और आईपीएल में पंजाब के लिए वो कप्तानी का लोहा भी मनवा चुके हैं. ऐसे में अगर विहारी ना ही सही लेकिन अश्विन को तो निश्चित तौर पर आजामया जा सकता है.
रोहित को लेकर भी संभलने की आवश्यकता
मेरी निजी राय तीन प्रबल दावेदारों के ख़िलाफ़ अलग अलग वजह से हैं. रोहित शर्मा निश्चित तौर पर शानदार कप्तान साबित हो सकते हैं लेकिन उन्हें भी तीनों फॉर्मेट की कप्तानी देकर भार बढ़ाया नहीं जाना चाहिए. रोहित मुंबई इंडियंस के लिए दो महीने आईपीएल की भी कप्तानी करते हैं और ऐसे में उन्हें सिर्फ सफेद गेंद की ज़िम्मेदारी दी जाए तो वो 2022 में टी20 वर्ल्ड कप और 2023 में वन-डे वर्ल्ड कप जिताने के बारे में सही तरीके से अपनी योजनाओं को बना सकते हैं. रोहित के साथ हाल के सालों में फिटनेस की भी समस्या रही है और ऐसे में अगर उन्हें टेस्ट क्रिकेट से आराम भी समय समय पर देने के बारे में सोचा जा सकता है.
काफी कुछ गंभीरता से विचार करने की ज़रुरत है
राहुल के साथ समस्या ये है कि उन्होंने अभी तक एक टेस्ट और एक फर्स्ट क्लास क्रिकेट में कप्तानी की है. आईपीएल में पंजाब के लिए भी उन्होंने कप्तान के तौर पर झंडे नहीं गाढ़ें तो ऐसे में उन्हें सिर्फ इस बात के लिए कप्तानी दे दी जानी चाहिए क्योंकि वो तीनों फॉर्मेट में खेलतें है? पंत फिलहाल एक बड़े मैच-विनर की तरह उभर रहें हैं. अगर उन्हें 24 साल की उम्र में एक और ज़िम्मेदारी दे दी जाए तो ज़रुरी नहीं है कि हर कोई धोनी की तरह तिहरी भूमिका में सुपरहिट ही हो जाए. हमने ये देखा है कि ऐडम गिल्क्रिस्ट ने ऑस्ट्रेलिया के लिए सिर्फ चुनिंदा मैचों में कप्तानी की और तभी वो अपनी स्वच्छंदता को आखिरी मैच तक बरकरार रख पाए. पंत से भी भारत को वैसे ही भूमिका की उम्मीद है. इसलिए भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ताओं को नए टेस्ट कप्तान चयन से पहले काफी कुछ गंभीरता से विचार करने की ज़रुरत है.
विमल कुमार
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